आकाश कुमार सिंह, छपरा, बिहार से, 28/3/2021
होली त्यौहार है रंग का, उमंग का। पर अगर दिलों में कड़वाहट घुली हो तो जीवन में न कोई उमंग रह जाती है, न रंग। इसीलिए हर साल होली आती है। हमारे बीच की कड़वाहट मिटाने के लिए। रंग और उमंग चढ़ाने के लिए। हालाँकि एक होली के दिन तो शायद यह सम्भव हो भी जाता हो, मगर क्या साल के पूरे 365 दिन, हर दिन हम कड़वाहट भूलकर रंग, उमंग के साथ रह पाते हैं? ज़वाब इसका बहुतों के लिए मुश्किल हो सकता है।
शायद इसीलिए जो कवि ह्दय होता है, वह ऐसी कामना करता है, हमेशा के लिए, जैसी कि बिहार के युवा कवि और लेखक आकाश ने अपनी कविता में की है। जिस जज़्बात के साथ उनहोंने यह कविता लिखी है, उतने ही जज़्बाती लहज़े में उनके एक अज़ीज़ दोस्त ने इन लिखे हुए शब्दों को आवाज़ भी दी है। जिसे पढ़ने का मन करे, उसके लिए नीचे कविता के बोल हैं। और जिसे सुनने का मन हो, उसके लिए साथ में ऑडियो क्लिप भी…
कुछ ऐसा कीजिए उपाय
इस बार मजा आ जाए
पिलाइए भंग ऐसा
कि रंग जम जाए।
कुछ ऐसा कीजिए उपाय
हम तनिक भी ना शरमाएँ
चटाइए रस ऐसा
मन मस्त मगन हो जाए।
कुछ ऐसा कीजिए उपाय
सारी कड़वाहट दूर हो जाए
मिलाइए हाथ ऐसे
कि दिलों में मिठास घुल जाए।
कुछ ऐसा कीजिए उपाय
किसी मोड़ पर वो मिल जाएँ
मिल जाएँ फिर नज़रें ऐसे
कि उनकी नज़रों में समा जाएँ
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(आकाश ने भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली से हिन्दी पत्रकारिता की पढ़ाई की। समाचार चैनलों की नौकरी की पर पसंद नहीं आई तो छोड़ दी। इन दिनों छपरा में पुष्प वाटिका चलाते हैं। यह कविता उन्होंने अपने एक मित्र के जरिए #अपनीडिजिटलडायरी को व्हाट्सएप सन्देश के रूप में भेजी है। ‘डायरी’ के अपने सामाजिक, सांस्कृतिक, भाषायी सरोकार को देखते हुए )