शिखा पांडे, अहमदाबाद, गुजरात से, 16/10/2020
एक कहानी छोटी सी….
उस रोज पेशे से स्कूल शिक्षक सीमा अपनी कक्षा के बच्चों की कॉपियाँ जाँचने के लिए घर ले आई थीं। घर के रोज़मर्रा के कामों से फ़ारिग होने के बाद इत्मीनान से वह बैठक में कॉपियाँ जाँचने बैठी थीं। पति बगल में अपने मोबाइल पर वीडियो गेम खेलने में व्यस्त थे। हमेशा ही रहते थे। बहरहाल, जाँचने के लिए अभी पहले बच्चे की कॉपी का पहला पन्ना ही सीमा ने खोला ही था कि कुछ समय बाद उनके हाथ कॉंपने लगे। आँख से आँसू बहने लगे। आगे सब धुँधला सा गया।
स्कूल में सीमा ने बच्चों को एक निबन्ध लिखने के लिए कहा था। इसका शीर्षक था, “मेरी इच्छा” (My Wish)। जिस पहले बच्चे की कॉपी सीमा के हाथ में आई थी, उसकी ‘इच्छा’ की पहली कुछ लाइनें पढ़ने के बाद उनका ये हाल हो गया था कि पास बैठे पति का ध्यान भी उनकी तरफ़ बरबस खिंच गया। उन्होंने पूछा, “क्या हुआ? रो क्यूँ रही हो?” ज़वाब में सीमा ने बताया कि उन्होंने अपनी कक्षा के बच्चों को निबन्ध लिखने के लिए कहा था। तो पति ने पूछा, “अरे, तो इसमें रोने की क्या बात है?”, “आपको भी रोना आ जाएगा। अगर आप इस बच्चे के निबन्ध की शुरुआती लाइनें ही पढ़ लेंगे तो!”, सीमा ने कुछ तेज आवाज़ में कहा। “पर बताओ तो सही, ऐसा क्या लिखा है इसमें?” पति ने फिर जोर दिया। इस पर सीमा ने वे लाइनें पढ़कर बता दीं। लिखा था, “मेरे माता-पिता को मोबाइल फोन बहुत प्यारा है। उसे वे हर जगह ले जाते हैं। उसकी देखभाल करते हैं। जरा सा यहाँ-वहाँ हो जाए तो परेशान हो जाते हैं। यहाँ तक कि शाम को जब मेरे पापा दफ़्तर से घर लौटते हैं, तब भी आराम करने के बजाय मोबाइल के साथ समय बिताते हैं। उनके पास जब वक़्त होता है तो वे मोबाइल पर ही कोई खेल खेलते रहते हैं। मेरे साथ नहीं खेलते। माँ भी अपना खाली वक़्त ज्यादातर मोबाइल पर ही बिताती है। मेरे साथ खेलने, मेरे सवालों का ज़वाब देने के लिए उनके पास भी समय नहीं होता। इसलिए मेरी इच्छा है कि मैं एक मोबाइल फोन बनूँ। ताकि अपने माता-पिता के साथ रह सकूँ। उनके साथ वक्त बिता सकूँ। वे मुझे अपना समय दे सकें।”
अब स्तब्ध रह जाने की बारी सीमा के पति की थी। वह ख़ुद भी तो यही सब करते थे। दिल धक् रह गया उनका। जैसे किसी ने रंगे हाथ चोरी पकड़ ली हो। किसी आशंका से उनके दिल की धड़कनें बढ़ गईं थीं। फिर भी उन्होंने साहस बटोरकर सीमा से पूछ ही लिया, “नाम क्या है बच्चे का, जिसने ये लिखा है?” सवाल सुनते ही सीमा की रुलाई और तेज हो गई। पति ने हौसला दिया तो सीमा ने सिसकते हुए बताया, “ज़ियाना”। नाम सुनते ही सीमा के पति ढाँढस भी आँखों से बह गया।
ज़ियाना, उन दोनों की इकलौती बेटी का नाम था!
———–
(शिखा गृहिणी हैं। उन्होंने यह कहानी ऑडियो के स्वरूप में व्हाट्स ऐप पर #अपनीडिजिटलडायरी को भेजी है।)
आज रविवार, 18 मई के एक प्रमुख अख़बार में ‘रोचक-सोचक’ सा समाचार प्रकाशित हुआ। इसमें… Read More
मेरे प्यारे बाशिन्दे, मैं तुम्हें यह पत्र लिखते हुए थोड़ा सा भी खुश नहीं हो… Read More
पाकिस्तान के ख़िलाफ़ चलाए गए भारत के ‘ऑपरेशन सिन्दूर’ का नाटकीय ढंग से पटाक्षेप हो… Read More
अगर आप ईमानदार हैं, तो आप कुछ बेच नहीं सकते। क़रीब 20 साल पहले जब मैं… Read More
कल रात मोबाइल स्क्रॉल करते हुए मुझे Garden Spells का एक वाक्यांश मिला, you are… Read More
यह 1970 के दशक की बात है। इंग्लैण्ड और ऑस्ट्रेलिया के बीच प्रतिष्ठा की लड़ाई… Read More