समीर शिवाजी राव पाटिल, भोपाल मध्य प्रदेश
देर रात भूखे कुत्तों को पैकबंद फूड लिए घूमते हैं शफ़ीक़।
वह बेक़सूर जानवरों के मुर्दा ज़िस्मों से बना होता है।।
नेकी-पुण्य कमाने के लिए जो लगते हैं लंगर-भंडारे।
कचरे से दोने पत्तल खाकर वहाँ गाएँ दम तोड़ती हैं।।
रहमोकरम पर जिनके पनपते हैं, कई यतीम-लावारिस
उनके ज़ेहनी ऐशगाहों के नीचे अक्सर क़त्लख़ाने हुआ करते हैं।।
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#अपनीडिजिटलडायरी के साथ उसकी शुरुआत से ही जुड़े समीर शिवाजीराव पाटिल ने ये लाइनें लिखी हैं। उनकी इन लाइनों में जो ‘माया’ है न, वो हम सबके सजदे में झुकी है, ऐसा आभास देती है। उसके यूँ झुक जाने से हमें लगता है कि हमने उसे जीत लिया है। लेकिन इस ‘माया’ से भी भला कोई जीत सका है?
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नीलेश द्विवेदी की आवाज़ में आपने इन लाइनों को #अपनीडिजिटलडायरी के पॉडकास्ट #डायरीवाणी पर सुना। #अपनीडिजिटलडायरी…. बस, एक पन्ना ज़िन्दगी।