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सुनिएगा, एक अच्छी रचना…: कैसे करूँ शिक़वा या गुज़ारिश तुमसे

समीर शिवाजीराव पाटिल, भोपाल, मध्य प्रदेश

जब मैंने तुमसे सिर्फ तुम्हारा समर्पण माँगा,
सच कहूं तो केवल अपना सुख ही चाहा था।
जो मैं सच्चा रिझवार हो जाता प्रियवर,
अगन में तुम्हारी जलकर फ़ना न हो जाता।।

तेरे सिवा मेरे लिए किसी और का होना,
बिन तेरे भी रात-दिन, मौसमों का बदलना।
सब करते इशारा कि क़ाबिल नहीं मैं तुम्हारे,
पर कहो, मैंने कब ऐसा दावा किया था।।

अपनी बेग़ैरती का खुद शिकार हूँ मैं।
कैसे करूँ शिक़वा या गुज़ारिश तुमसे।। 

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(नोट : #अपनीडिजिटलडायरी के शुरुआती और सुधी-सदस्यों में से एक हैं समीर। भोपाल, मध्य प्रदेश में नौकरी करते हैं। उज्जैन के रहने वाले हैं। पढ़ने, लिखने में स्वाभाविक रुचि रखते हैं। वैचारिक लेखों के साथ कभी-कभी उतनी ही विचारशील कविताएँ, व्यंग्य आदि भी लिखते हैं। डायरी के पन्नों पर लगातार अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराया करते हैं।)

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