शिवाजी ‘महाराज’ : किहाँ किहाँ का प्रथम मधुर स्वर….

बाबा साहब पुरन्दरे द्वारा लिखित और ‘महाराज’ शीर्षक हिन्दी में प्रकाशित पुस्तक से

बात अप्रैल-2005 की है। जीवन में पहली बार ‘जाणता राजा’ महानाटक के माध्यम से छत्रपति शिवाजी के जीवन-चरित्र को सामने से देखने का मौक़ा मिला था। महाराष्ट्र के मशहूर नाटककार, इतिहासकार बाबा साहब पुरन्दरे ने यह नाटक लिखा और निर्देशित किया है। दुनियाभर में 1,550 से ज़्यादा बार खेला गया है यह नाटक। खुले मैदान पर 20-30 हजार दर्शकों के सामने। भव्य सैट। सजीव हाथी-घोड़े। लगभग 200-250 लोगों की नाटक मंडली। इनमें 150 के क़रीब तो कलाकार ही। बाकी सहयोगी। सब मिलकर नाटक को ऐसा जीवन्त, भव्य और प्रभावी रूप देते कि कोई भी दर्शक एक बार देखकर जीवनभर इसकी स्मृतियों को अपने ज़ेहन में सहेज लेता। मैंने भी यही किया। साथ ही, शिवाजी के जीवन पर बाबा साहब पुरन्दरे की लिखी क़िताब भी सहेज ली, जो उसी वक़्त मिली थी। हिन्दी में ‘महाराज’ के नाम से प्रकाशित इस क़िताब में छत्रपति शिवाजी के जीवन-चरित्र को उकेरतीं छोटी-छोटी कहानियाँ हैं। आज शिवाजी की जयन्ती (बहुमत के हिसाब से 19 फरवरी मानी गई है) के दिन से #अपनीडिजिटलडायरी के पाठकों को ये कहानियाँ शब्दश: समर्पित हैं। आभार सहित, रोज, श्रृंखला के रूप में। क़िताब पूरी होने तक…. (प्रेषक : नीलेश) 
——
सादर प्रणाम!

छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन अपने आप में एक महाकाव्य है, महान् सत्यकथा, महान् उपन्यास है। परमेश्वर द्वारा रचा गया महानाटक है। कविवर मैथिलीशरण गुप्तजी प्रभु रामचन्द्रजी के चरित्र के बारे में कहते हैं, “राम तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है। कोई कवि बन जाए, सहज सम्भाव्य है।।” 

बिल्कुल यही बात शिवछत्रपति के बारे में भी कही जा सकती है। हमने संकल्प किया कि शिवाजी की महान् जीवनी को किसी अच्छे चित्रकार द्वारा, चित्ररूप में ढालेंगे। महाराष्ट्र के मँझे हुए चित्रकार श्री दीनानाथ दलालजी ने बड़े प्रेम से, आनन्द से यह काम स्वीकारा। दीनानाथ जी के सालभर के अध्ययन एवं परिश्रम का प्रतिफल है, शिवछत्रपति की यह चित्रमय जीवनी। चित्रों के नीचे की, चित्र विषय की ऐतिहासिक जानकारी, मैंने लिखी है। यह पुस्तक पहले मराठी में मुद्रित हुई। मुझे बड़ी खुशी है कि फिर यह हिन्दी में भी प्रकाशित हुई है। 

दुःख है तो केवल इस बात का कि पुस्तक की मराठी या हिन्दी आवृत्ति प्रकाशित होने से पहले ही, चित्रकार श्री दीनानाथ दलालजी हृदयविकार से अचानक ही चल बसे। नहीं तो, इस सुन्दर कलाकृति को देखकर दीनानाथजी फूले नहीं समाए होते। पर होनी के आगे किसी की कुछ नहीं चलती। 

दीनानाथ जी की चित्रकला आज उन्हीं को सादर अर्पण कर रहा हूँ।

बाबासाहेब पुरन्दरे
लेखक
——–
किहाँ-किहाँ का प्रथम मधुर स्वर, सुनकर नारि जमात। गाने लगीं मनोहर सोहर, खिले बदन जल-जात॥ 

मार्गशीर्ष मास में (नवम्बर 1629) जिजाऊ (शिवाजी की माता) शिवनेरी (किला) पर रहने आई। उनकी तबीयत की देखभाल के लिए तजुरबेकार दाईयाँ तथा वैद्य किले में ही रह रहे थे। इसके सिवा भोंसले घराने के पुश्तैनी नौकर भी शहाजीराजे ने किले में रख छोड़े थे। उनमें से मल्हारभट राजोपाध्ये, नारोपन्त हणमन्ते, गोमाजी नाइक वग़ैरा निष्ठावान् लोग तो वक़्त आने पर अपनी जान तक क़ुर्बान करते। जिजाऊसाहब की प्रसूति को अब ज़्यादा दिन नहीं थे। जच्चा का कमरा तैयार किया गया था। अन्दर से चूने की सफेदी की गई थी। दीवार पर कुमकुम से स्वस्तिक तथा अन्य मंगल चिह्न बनाए गए थे। खिड़कियों में पर्दे लगे हुए थे। दरवाज़े के दोनों तरफ मंगल देवताओं के चित्र बनाए गए थे। आठों पहर दीप ज्योतियों से कमरा आलोकित रहता। पानी के कलश, दवाईयाँ और ज़रूरी सामान कमरे में हर वक़्त मौज़ूद रहता। ज़मीन पर सफेद सरसों छिड़काई गई थी। जिजाऊसाहब के क़दम अब बहुत धीरे-धीरे उठते थे।

माघी पूनम धूमधाम से मनाई गई थी। फाल्गुन की प्रतिपदा और द्वितीया डफली-एकतारी के ताल सुर में चली गईं। वद्य (कृष्ण पक्ष की) तृतीया आई। उस दिन शुक्रवार था। रात के पहले प्रहर में जिजाऊसाहब के पेट में दर्द होने लगा। शिवनेरी के मुख पर उत्सुकता, आनन्द तथा चिन्ता के भाव झलगने लगे। सभी का ध्यान जच्चाघर की तरफ लगा हुआ था। उत्सुकता का पार न था। और फिर जच्चाघर से आनन्द से झूमती ख़बर आई, “बेटा हुआ है।” नगाड़ों की आवाज़ ने पुत्रजन्म को ख़ुशख़बरी का ऐलान किया। सवातीन सौ सालों से भयप्रद कालचक्र के बाद शिवनेरी पर यह महान् भाग्यशाली क्षण आया था। शालिवाहन शक संवत के 1551वे वर्ष में, शुक्लनाम संवत्सर, उत्तरायण की फाल्गुन वद्य तृतीया को जिजाऊसाहब भोंसले की कोख से एक प्रकाशपुंज दुनिया में आया। शिशिर ऋतु में, हस्त नक्षत्र के सिंह लग्न में, शुक्रवार, सूर्यास्त के बाद, रात के अन्धेरे में यह भाग्यशाली बालक पैदा हुआ। सफल सौभाग्य सम्पन्न, सदा सुहागन माँ के इस बेटे ने जन्म लिया तब जन्मपत्री में पाँच ग्रह अनुकूल थे। उच्च स्थान पर थे।

उदार ममतालु जिजाऊ के सुन्दर, सुलक्षणी पुत्र हुआ। पुत्रजन्म की ख़ुशख़बर हँसती, नाचती हुई किले की इस ओर से उस छोर तक थिरक आई। किले में, तलहटी के गाँवों में शक्कर बाँटी गई। शक्कर की एक थैली शहाजीराजे की तरफ़ भी रवाना हुई। राजे इस समय दर्याखान रोहिले के साथ लड़ रहे थे। ख़बर सुनकर हुलस उठे वह भी।

शिवजन्म की खुशी से नदियाँ, ठंडी हवा, ग्रह-तारे सभी खुशी से झूम उठे थे। शिवनेरी पर जिजाऊ के इर्द-गिर्द सखी-सहेलियाँ, तजुरबेकार दाईयाँ इकट्ठी हुईं। हिदायतें देने लगीं। किले में मंगलगान के स्वर गूँजने लगे।
———– 
(नोट : यह श्रृंखला #अपनीडिजिटलडायरी पर विशिष्ट सरोकारों के तहत प्रकाशित की जा रही है। उद्देश्य सिर्फ़ इतना है कि महाराष्ट्र के जाने-माने नाटककार, इतिहासकार बाबा साहब पुरन्दरे ने जीवनभर शिवाजी महाराज के जीवन-चरित्र को सामने लाने का जो अथक प्रयास किया है, उसकी कुछ जानकारी #अपनीडिजिटलडायरी के पाठकों तक भी पहुँचे। इस सामग्री पर #अपनीडिजिटलडायरी किसी तरह के कॉपीराइट का दावा नहीं करती। इससे सम्बन्धित सभी अधिकार बाबा साहब पुरन्दरे और उनसे सम्बद्ध लोगों के पास सुरक्षित हैं।)

सोशल मीडिया पर शेयर करें
Neelesh Dwivedi

Share
Published by
Neelesh Dwivedi

Recent Posts

‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह रो रहा था क्योंकि उसे पता था कि वह पाप कर रहा है!

बाहर बारिश हो रही थी। पानी के साथ ओले भी गिर रहे थे। सूरज अस्त… Read More

24 hours ago

नमो-भारत : स्पेन से आई ट्रेन हिन्दुस्तान में ‘गुम हो गई, या उसने यहाँ सूरत बदल’ ली?

एक ट्रेन के हिन्दुस्तान में ‘ग़ुम हो जाने की कहानी’ सुनाते हैं। वह साल 2016… Read More

2 days ago

मतदान से पहले सावधान, ‘मुफ़्तख़ोर सियासत’ हिमाचल, पंजाब को संकट में डाल चुकी है!

देश के दो राज्यों- जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में इस वक़्त विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया चल… Read More

3 days ago

तो जी के क्या करेंगे… इसीलिए हम आत्महत्या रोकने वाली ‘टूलकिट’ बना रहे हैं!

तनाव के उन क्षणों में वे लोग भी आत्महत्या कर लेते हैं, जिनके पास शान,… Read More

5 days ago

हिन्दी दिवस :  छोटी सी बच्ची, छोटा सा वीडियो, छोटी सी कविता, बड़ा सा सन्देश…, सुनिए!

छोटी सी बच्ची, छोटा सा वीडियो, छोटी सी कविता, लेकिन बड़ा सा सन्देश... हम सब… Read More

5 days ago

ओलिम्पिक बनाम पैरालिम्पिक : सर्वांग, विकलांग, दिव्यांग और रील, राजनीति का ‘खेल’!

शीर्षक को विचित्र मत समझिए। इसे चित्र की तरह देखिए। पूरी कहानी परत-दर-परत समझ में… Read More

6 days ago