ज़ीनत ज़ैदी, दिल्ली
भारत अपनी संस्कृति, मिलनसारता और अपनत्त्व के लिए जाना जाता है। इसलिए क्योंकि शायद बचपन से ही भारतीयों को रिश्ते निभाना सिखाया जाता है। वे जानते है कि एक संयुक्त परिवार में भी कैसे ख़ुद को ढाल लेना है। हर रिश्ते की गरिमा को कैसे बचाए रखना है। हालाँकि अब शायद वह संस्कृति ख़त्म हो रही है या दरकना शुरू हो गई है। अब हमारे बीच रिश्ते तो हैं, लेकिन उनमें अपनापन गायब हो चुका हैl
हाल ही के दो महीनों के भी पेश आई कुछ घटनाएँ हमारे रिश्तों में आ रहे खोखलेपन की जीती-जागती मिसाल हैं। हरियाणा के हिसार का एक वीडियो सोशल मीडिया में खूब चर्चा में रहा। उसमें एक बेटी अपने माँ को ऐसी यातनाएँ देती हुई नज़र आई थी, जो हम किसी कैदी को भी देना पसन्द नहीं करेंगे। उस बेटी ने अपनी माँ को बिस्तर से गिराकर मारा। उनके बाल नोंचे। उनके पैरों पर दाँतों से काट लिया। इतने पर भी उसका मन नहीं भरा तो अपनी माँ काे डराते हुए बोली, “यह मज़ेदार है। मैं तुम्हारा खून पी जाऊँगी।”
इसी तरह, मध्य प्रदेश के मुरैना में दो बेटियों ने अपने पिता को हैवानियत के साथ डंडों से पीटा। उनक माँ ने भी इस मार-पीट में बेटियों की मदद की। बेटियों द्वारा पिता के उत्पीड़न का वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। शायद किसी पड़ोसी ने बना लिया था। इस घटना के बाद पिता ने आत्महत्या कर ली थी। ऐसी ख़बरें सुनकर कोई भी इंसान सोच में पड़ जाए कि हमारा समाज कितना गिर चुका है! माँ-बाप तक को नहीं बख्श रहा है। जबकि इंसान का सबसे नाज़ुक रिश्ता उसके मां-बाप के साथ ही होता है?
सुनने में आया था कि इन दोनों ही मामालों का ताल्लुक ज़मीन-ज़ायदाद के मामलों से जुड़ा था। मगर सोचने की बात है कि क्या ज़मीन का एक टुकड़ा औलाद को माँ-बाप की जान लेने तक नीचे गिरा सकता है? पैसे की लालच में आदमी क्या इतना अन्धा हो चुका है कि रिश्तों की संवेदनशीलता को भुला बैठा है?
आईआईटी इंजीनियर अतुल सुभाष, नौसेना अधिकारी सौरभ राजपूत और मुंबई के निशान्त त्रिपाठी, ये वह लोग हैं जिन्होंने गुज़रे ती महीनों के अन्दर आत्महत्या कर ली। कारण? पत्नियों द्वारा किया गया उत्पीड़न, एक बड़ी रकम की माँ या कोई और दुनियावी ख़्वाहिश। तो क्या रिश्ते इतने सस्ते हो गए हैं?
हमारे समाज में हम यह तक नहीं जानते कि हमारे पड़ोस में रहने वाला इंसान किसी मुसीबत में तो नहीं है। हम अपनी ज़िन्दगी में इतने मशरूफ होते जा रहे हैं कि अगर हमारी पड़ोसी अकेला मर भी जाए तो हमें तब पता चलता है कि जब उसके घर से बदबू आने लगती है।
सोचने-समझने की बात है कि आज जब इन घाटनाओ का शिकार कोई और है तो हम चुप साधे बैठे हैं। लेकिन याद रखिए, इस बदलती दुनिया में कल को ऐसा कुछ हमारे घर में भी हो सकता है। इसीलिए अगर हम चाहते हैं कि ऐसा न हो तो उठें और बच्चों को रिश्तों के मायने सिखाएँ। उन्हें उनकी ज़िम्मेदारियाँ और उनके फ़र्ज़ बताएँ। उन्हें पूरा करने की उनमें आदत डालें। नहीं तो ऐसा न हो कि कहीं बहुत देर हो जाए।
जय हिन्द
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(ज़ीनत #अपनीडिजिटलडायरी के सजग पाठक और नियमित लेखकों में से हैं। दिल्ली के आरपीवीवी, सूरजमलविहार स्कूल में 12वीं कक्षा में पढ़ती हैं। लेकिन इतनी कम उम्र में भी अपने लेखों के जरिए गम्भीर मसले उठाती हैं।अच्छी कविताएँ भी लिखती है। वे अपनी रचनाएँ सीधे #अपनीडिजिटलडायरी के ‘अपनी डायरी लिखिए’ सेक्शन या वॉट्सएप के जरिए भेजती हैं।)
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