लगता है, अपना खाने-पीने का कोटा खत्म हो गया है!

एक संतरा सामने है, एक सेवफ़ल, एक बड़ा सा पपीता, एक कीवी, कुछ बेर रखे हैं। मैं सोचता हूँ कि आज भोजन न करूँ। इन चीज़ों से अपनी…

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मैं काल का ग्रास बनने से बचा हुआ हूँ, अन्धकार को सूरज का ग्रास बनाकर!

दिल्ली। साल 2021, मई का महीना, 10 तारीख। बीती रात बारिश हुई है। इसे बारिश कहना गलत होगा। बादलों ने धधकती दिल्ली के कलेजे पर…

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मैं थककर मौत का इन्तज़ार नहीं करना चाहता…

सामने एक मराठी परिवार था, जिसमें एक बुजुर्ग साथ रहते थे। बाद में मालूम पड़ा कि वे अकेले ही थे। जीवन संग्राम अकेले ही लड़ते…

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एक कहानी ; उम्मीद के दीए की…

  वक़्त मुश्किल है। एक अदृश्य दुश्मन (कोरोना) है, जिसने मानवता के ख़िलाफ़ जंग छेड़ रखी है। हमारे घरों में घुसकर हमारे अपनों को वह…

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“हम बताते हैं”… एक अघोषित नकारात्मक वाक्य में छुपी सकारात्मकता

बात तो पुरानी है, लेकिन आजकल फिर से यही वाक्य सुनने को मिल रहा है तो याद आ गई। और मैं डायरी के पन्ने पर…

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महामारी की मारः किसकी ज़िम्मेदारी, कौन तय करे?

कल दीपक शर्मा जी की 23 तारीख की डायरी पढ़ी। निश्चित रूप से वाराणसी की घटना समेत पूरे देश की समस्या दुखद है। किन्तु इसके…

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हे राम! अब यूँ करो-ना, नहीं सहा जाता तेरे राज्य में

डायरी के इस पन्ने पर पड़ी तारीख अपने आप में सारी कहानी कहती है। यह ऐसी तारीख है, जब देश में कोरोना के मामले पहली बार…

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आज मैं मुआफ़ी माँगने पलटकर पीछे आया हूँ, मुझे मुआफ़ कर दो

कहानियाँ रास्तों में बिखरी पड़ी थीं। कविताएँ पेड़ों पर लदी रहती थीं। धूल के हर कण में चलते-फिरते चरित्र नज़र आते थे। उसे लगता कि…

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मेट्रोनामाः इस क्रूरतम समय में एक सुन्दरतम घटना

रोज़ाना की तुलना में आज मेट्रो सूनी है। इतना सूनापन डराता है। हालाँकि आज दिल्ली में कर्फ्यू है। लेकिन ज़िन्दगी तो चल ही रही है। कुछ…

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ज्ञान हमें दुःख से, भय से मुक्ति दिलाता है, जानें कैसे?

हर साल एक लड़के के माता-पिता उसे गर्मी की छुट्टी के लिए दादी के घर ले जाते थे, और वे दो हफ़्ते बाद उसी ट्रेन…

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