फैसला, जिसमें देर भी गजब की और अंधेर भी जबर्दस्त!

विजय मनोहर तिवारी की पुस्तक, ‘भोपाल गैस त्रासदी: आधी रात का सच’ से, 4/12/2021

…भोपाल के लिए आज का दिन कुछ खास है। राजधानी की नई जिला अदालत से आज एक खास फैसला आने वाला है। एक ऐसा फैसला जिसमें देर भी गजब की है और अंधेर भी जबर्दस्त। यह 25 साल पुरानी भोपाल की भयानक गैस त्रासदी का मामला है, जिस पर दुनिया भर की निगाहें हैं। मीडिया खासतौर से उत्साहित है।…चीफ ज्युडिशियल मजिस्ट्रेट (सीजेएम) मोहन पी. तिवारी के कोर्ट रूम से आने वाली खबरों का सबको बेसब्री से इंतजार है। वे ही फैसला सुनाने वाले हैं।

…फैसले की घड़ी में इस मामले से जुड़ी पुरानी जानकारियां ही अखबार के पन्नों पर हैं। इनसे हादसे की कुछ कड़ियां हाथ लगेंगी। जैसे, घटना की रात हनुमानगंज थाने में एफआईआर दर्ज हुई। यूनियन कार्बाइड कारखाने में लापरवाही के इस मामले में पांच लोगों को आरोपी बनाया गया था। दो-तीन दिसंबर 1984 की दरम्यानी रात गैस रिसी। पहले ही हफ्ते में सरकारी आंकड़ों में मरने वालों की तादाद 260 थी। जबकि गैरसरकारी आंकड़ों के मुताबिक 8,000 लोग मारे जा चुके थे। हादसे के तीन दिन के बाद तत्कालीन केंद्र सरकार ने मामला सीबीआई के सुपुर्द कर दिया था। 30 नवंबर 1987 को चालान अदालत में पेश हुआ। यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन के तत्कालीन चेयरमैन वॉरेन एंडरसन समेत 12 लोगों को आरोपी बनाया गया। एंडरसन फरार है। 15 हजार से ज्यादा लोग गैस के कारण मौत के शिकार हुए। दुनिया की भीषणतम औद्योगिक त्रासदी में शुमार हादसे के इस मामले की सुनवाई 23 साल तक चली है। 13 मई को आखिरी सुनवाई हुई। आज सात जून को फैसले की घड़ी है। 

तब तक हम फाइल के पुराने पन्नों को टटोल लेते हैं। 

1989 में पीड़ितों ने मुआवजे के लिए मामले अदालत में लगाए । बाद में इनकी ओर से केंद्र सरकार ने मुआवजे की खातिर मुकदमा अमेरिका की अदालत में लगाया। वहां यूनियन कार्बाइड की तरफ से आपत्ति पेश की गई कि यह मामला अमेरिकी कोर्ट के क्षेत्राधिकार में आता ही नहीं है। केंद्र सरकार ने मामले वापस लिए और भोपाल में सिविल सूट लगाया। तत्कालीन जिला जज एमडब्ल्यू देव ने अंतरिम मुआवजे के तौर पर 710 करोड़ रुपए के भुगतान के आदेश दिए थे। कार्बाइड ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी, जहां मुआवजे की राशि कुछ कम हो गई। सुप्रीम कोर्ट में अंतरिम आदेश पर सुनवाई के दौरान 14 फरवरी 1989 को दोनों पक्षों ने समझौता किया। इसमें यह तय हुआ कि यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन अमेरिका और यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड समझौता राशि का भुगतान करेंगे। समझौते में यह भी तय किया गया कि इसके बाद गैस त्रासदी से जुड़े सभी सिविल और आपराधिक प्रकरण खत्म हो जाएंगे। कार्बाइड ने उधर जेब ढीली की और इधर सारे मामले समेट लिए गए। 

इसके बाद कुछ संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में एक रिव्यू पिटीशन लगाकर मांग की कि आपराधिक प्रकरण खत्म नहीं किया जा सकता। इस पर तीन अक्टूबर 1991 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि आपराधिक प्रकरण चलेगा। इस आदेश के बाद भोपाल की जिला अदालत में एडीशनल डिस्ट्रिक्ट जज (एडीजे) वजाहत अली शाह की कोर्ट ने आरोप तय किए। आरोपियों ने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। 

1996 में सुप्रीम कोर्ट का आदेश आया कि आरोपियों के खिलाफ इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) की धारा 304-ए में मामला चलाया जाए। इसके बाद ही इस मामले की अदालती सुनवाई का सिलसिला शुरू हुआ, जिसके फैसले की बारी अब आई है। सुप्रीम कोर्ट में मुआवजे के लिए समझौता हुआ, तब मरने वालों की संख्या 3,000 और प्रभावितों की तादाद 1,02,000 बताई गई थी। इन आंकड़ों के आधार पर 470 मिलियन डॉलर यानी 715 करोड़ रुपए में समझौता किया गया। जब मुआवजा बंटा तब मरने वालों की तादाद 15,274 और प्रभावितों की तादाद 5,74,000 मानी गई। 

प्रदेश सरकार द्वारा लीज डीड निरस्त होने के बाद 19 जुलाई 1998 को कार्बाइड प्रबंधन 67 एकड़ के फैक्टरी परिसर में फैले 18 हजार मीट्रिक टन टॉक्सिक सिल्ट और अन्य घातक रसायन छोड़कर चला गया। गैस हादसे के पहले भी कई मामले सामने आए थे। 25 दिसंबर 1981 को फैक्टरी के कर्मचारी अशरफ लाला की फास्जीन गैस के रिसाव में जान चली गई थी। 1982 में वेस्ट वर्जीनिया से आई टीम ने भी फैक्टरी के मुआयने में 32 खामियां पाई थीं। एमआईसी प्लांट, जहां से गैस रिसी, वहां 16 खामियां तब देख ली गई थीं। 

अब जबकि फैसला आने वाला है तो यूनियन कार्बाइड प्रबंधन के कर्ताधर्ता आरोपी केशुब महेंद्रा और विजय गोखले कल यानी रविवार छह जून की रात हवाई जहाज़ से मुंबई से भोपाल आ गए हैं। दूसरे आरोपो एसपी चौधरी और किशोर कामदार सुबह ही आ गए थे। चौधरी अपने किसी मित्र के यहां मालवीय नगर में और कामदार किसी होटल में ठहरे। इनके अलावा जे. मुकुंद, केवी शेट्टी भी भोपाल पहुंच गए हैं। एसआई कुरैशी के बारे में कोई खबर नहीं है। 

मैं सोच रहा हूं कि इनमें से किसी को गजाला का ख्याल होगा? शायद मैं जज्बाती हो रहा हूं। बड़े कारोबार और ऊंची सियासत में दिल की नहीं सुनी जाती। दिमाग की चलती है। जितना बड़ा कारोबार, जितनी बड़ी सियासत, उतना ठोस दिमाग सात समंदर पार सुरक्षित एंडरसन इनमें सबसे ठोस दिमाग वाला होगा। जिसने ठाठ से अपना उद्योग चलाया और इतनी बड़ी त्रासदी के बाद जिसे अदालत तक आने की जहमत भी कभी नहीं उठानी पड़ी। गलबहियां डाले हमारे सत्ताधीशों ने भी उससे कदमताल करते हुए यह साबित किया कि उनके पास दिल जैसी कोई चीज नहीं है। होता तो पसीजने के प्रूफ कहां हैं? मुझे हैरत है कि नेता मरते हैं तो खबरों में अक्सर दिल का दौरा पड़ना क्यों बताया जाता है? डॉक्टरों को बारीकी से देखना चाहिए। हो सकता है कि दिल माशूकाओं के लिए ही रिजर्व रहता हो। जरूरतमंदों के लिए नो एंट्री। 

बहरहाल, इस मामले में तीन हजार दस्तावेज बतौर सबूत पेश किए और 178 लोगों के बयान हुए। कुल 12 आरोपी हैं, जिनसे 1,026 सवाल किए गए। यह मामला हनुमान गंज थाने के तत्कालीन प्रभारी सुरेंद्रसिंह ठाकुर ने भारतीय दंड विधान को 304-304 278429426 के तहत दर्ज किया था। सीबीआई ने छह दिसंबर 1954 को छानबीन शुरू की थी और एंडरसन समेत 12 आरोपी बनाए गए थे। 

अदालत की फाइल में दर्ज 12 आरोपी ये हैं- 1. वॉरन एंडरसन तत्कालीन चेयरमैन यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन, 39, रिडगेवरी रोड, डेनबरी कॉलेक्टिकट यूएसए-0681712. केशुब महिंदा, तत्कालीन चेयरमैन यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल), फ्लैट नंबर-9-10, सेंट हेलंस कोर्ट जो देशमुख मार्ग, मुंबई। 3. विजय गोखले, तत्कालीन मेनेजिंग डायरेक्टर, यूसीआईएल, 15, माधेव रोड, मुंबई 14, किशोर कामदार उत्कालीन वाइस प्रेसिडेंट, इंचार्ज, एपी डिवीजन, यूसीआईएल, क्षितिज १० वॉ फ्लोर, फ्लैट-191, नेपियन सी रोड. मुंबई। 5. जे. मुकुंद, तत्कालीन वक्र्क्स मैनेजर, एपी डिवीजन, यूसीआईएल, 6-डी, लैंडसेंड डाऊनग्रेसी रोड, मुंबई। 6. आरबी रायचौधरी, तत्कालीन असिस्टेंट वर्क्स मैनेजर, एपो डिवीजन यूसीआईएल, सत्या फ्लैट-10, 15 वां रोड, बांद्रा वेस्ट मुंबई। 7. एसपी चौधरी, तत्कालीन प्रोडक्शन मैनेजर, एपी डिवीजन, यूसीआईएल 12 वा अकोर पार्क, मौरा सोसायटी के पीछे, शंकर सेठ रोड, पुणे। 8. केवी शेट्टी, तत्कालीन प्लांट सुप्रिंटिडेंट यूसीआईएल, भोपाल। 9. एसआई कुरैशी, तत्कालोन प्रोडक्शन असिस्टेंट, एपी डिवीजन, यूसीआईएल, भोपाल। 10. यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन, 39, रिडगेबरी रोड, डेनबरी कॉनेक्टिकट यूएसए। 11. यूनियन कार्बाइड ईस्टर्न इंडिया (हांगकांग), 16 वां माला, न्यू वर्ल्ड ऑफिस बिल्डिंग (ईस्ट विंग), हांगकांग। 12. यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल), 1, मेडिल्टन रोड, कोलकाता। कानूनी पेचीदगियों के चलते इस मामले में मोस्ट वांटेड वॉरेन एंडरसन फरार है। आरवी रायचौधरी मर चुके हैं। आखिरी तीन कंपनियों से कोई अदालत पेश नहीं हुआ।
(जारी….)
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(नोट : विजय मनोहर तिवारी जी, मध्य प्रदेश के सूचना आयुक्त, वरिष्ठ लेखक और पत्रकार हैं। उन्हें हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार ने 2020 का शरद जोशी सम्मान भी दिया है। उनकी पूर्व-अनुमति और पुस्तक के प्रकाशक ‘बेंतेन बुक्स’ के सान्निध्य अग्रवाल की सहमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर यह विशेष श्रृंखला चलाई जा रही है। इसके पीछे डायरी की अभिरुचि सिर्फ अपने सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक सरोकार तक सीमित है। इस श्रृंखला में पुस्तक की सामग्री अक्षरश: नहीं, बल्कि संपादित अंश के रूप में प्रकाशित की जा रही है। इसका कॉपीराइट पूरी तरह लेखक विजय मनोहर जी और बेंतेन बुक्स के पास सुरक्षित है। उनकी पूर्व अनुमति के बिना सामग्री का किसी भी रूप में इस्तेमाल कानूनी कार्यवाही का कारण बन सकता है।)
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श्रृंखला की पिछली कड़ियाँ 
1. गैस त्रासदी…जिसने लोकतंत्र के तीनों स्तंभों को सरे बाजार नंगा किया!

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