….देखो, मरना मत, कोशिश करना कि किसी और के मुक़म्मल इश्क़ की कहानी में तुम्हारा भी किरदार चमके

कुंदन शोभा शर्मा, उज्जैन, मध्य प्रदेश से

ख़ुशनसीब होते हैं वे लोग, जिन्हें उनकी मोहब्बत नसीब होती है, लेकिन उनसे ज्यादा ख़ुशनसीब वे प्रेमी होते हैं, जिन्हें उनकी मोहब्बत कभी नहीं मिल पाती। कभी समाज का बन्धन, कभी परिवार का भय, कभी क्या तो कभी क्या। जिन्हें नसीब नहीं होता अपना प्रेमी, वे प्रेम के वह मायने समझते हैं, जिसे हम मुक़म्मल इश्क़ के साथ कभी नहीं जान पाते। वे प्यार समझते हैं। वे प्यार जीते हैं। यक़ीनन प्रेम में असफल लड़के, बाद में बन जाते हैं किसी और के सबसे अच्छे पति और प्रेम में असफल लड़कियाँ, किसी अनजान चेहरे की एक बहुत अच्छी पत्नी।

वे ढूँढ़ते हैं अपने साथी में अपने प्रेमी का चेहरा, जो तमाम कोशिशों के बाद भी शायद कभी नहीं मिलता। मुझे व्यक्तिगत रूप से उपन्यासों में, कहानियो में वह प्रेम कहानी ही अच्छी लगती है, जिनमें इश्क़ कभी पूरा नही हुआ। जिन प्रेम कहानियो में इश्क़ ठहर जाता है किसी मोड़ पर और दे देता है आपको ढेर सारे सवाल और अफसोस, वह प्रेम कहानी वेदना से परिपूर्ण होकर भी कितनी पवित्र होती है। जिन्हें मिल गई मोहब्बत वे उलझ जाते हैं ज़माने की रस्मों में। लेकिन जिनके प्यार को नसीब नहीं होता ठिकाना वे ताउम्र ढ़ँढ़ते हैं, एक जंग उस प्यार के लिए, जो अपने-अपने समय मे लड़ रहा होता है क्रूर समाज से। कभी अपने दोस्तों में, अपने परिवार में, अपने बच्चों में।

अस्ल में प्यार को अगर किसी ने सदियों से सींचा है और ज़िन्दा रखा है, तो ये वही टूटे दिल वाले लोग हैं। वरना जिनका इश्क़ मुक़म्मल हुआ, उन्होंने तो इसे सूली पर ही चढ़ा दिया। मुक़म्मल इश्क़ की कहानियाँ दम तोड़ देती हैं। लेकिन टूटे दिल की कहानियाँ किसी त्रासदी की यादों की माफ़िक़ ज़िन्दा रहती हैं। वे कहानियाँ सालों बाद भी किसी की जु़बान पर आती हैं तो लगता है अब छाले फूट पड़ेंगे। और बहने लगेगा वह पीप, जो सालों से सहेजा गया है, किसी को पल-पल मारकर। वे कहानियाँ देती हैं हवाएँ उन बातों को भी, जो कभी किसी बन्द कमरे में हुई ही नहीं।

बहुत नाज़ुक होते हैं, वे अधूरी प्रेम-कहानियों वाले लोग। कभी मिलिए तो उनसे पूछिए कैसे हँसते है वे? कैसे किसी की शादी की शहनाई सुन लेते है? कैसे कहते हैं- हम ठीक हैं? कैसे कह देते हैं- अब कोई फ़र्क नहीं पड़ता? कैसे मान लेते हैं- अब याद नहीं आती? कैसे कह देते हैं- हम रोते नहीं? वे कभी सच नहीं बोलते कि हम सोते नहीं। शव बन चुके होते हैं वे, जिनका इश्क़ उन्हें नही मिलता। और वे शिव बनकर कोशिश में रहते हैं कि उनके दोस्तों को, कजिन्स को, पड़ोस में रहने वाले बिट्टू को, यहाँ तक कि अपने बच्चों को भी वह इश्क़ मिले, जिसके सपने उन्हें सोने नहीं देते।

वेलेंटाइन डे, 14 फरवरी, आज के दिन एक चेहरा बार-बार याद आता है। वो है डिम्पल चीमा जी का। या यूँ कहें कि कलियुग की राधा का। वह राधा, जिसके माधव कभी नहीं आएँगे। परमवीर चक्र विजेता शहीद विक्रम बत्रा जी की प्रेमिका डिम्पल चीमा। शहीद विक्रम ने कहा था, “मैं ज़रूर आऊँगा। तिरंगा फहरा कर आऊँगा या तिरंगे में लिपट कर आऊँगा। लेकिन आऊँगा ज़रूर।” विक्रम आए। तिरंगे में लिपट कर आए। फ़र्ज़ निभाकर आए। देश का कर्ज़ चुकाकर आए। अपना वादा निभाकर आए। अपना वादा निभाने आए। अब बारी थी डिम्पल की। डिम्पल ने भी रिश्ता निभाया। विक्रम के बराबर निभाया या उससे भी कहीं ज़्यादा। डिम्पल ने जो वादा विक्रम से कभी किसी पल किया था, हमेशा विक्रम का बना रहने का, उसे निभाती चली जा रही हैं वे, आज भी।

कृष्ण तो कभी नहीं आए। लेकिन राधा हमेशा उनके नाम से और कान्हा हमेशा राधा के नाम से जाने जाते रहेंगे। कभी देखो किसी जोड़े को हँसते-मुस्कुराते तो दुआ करना- ये ऐसे ही रहे ताउम्र। और जो देख लो या जान लो कि किसी को नहीं मिला है उसका इश्क़ तो उससे ऐसे पेश आना, जैसे वह ज़िन्दा दफ़न हुआ है। वह स्वाहा कर चुका है, अपने  एहसास। क़ोशिश करना उसका कंधा बनने की। प्रेम में हारे हुए चेहरे सबसे ज्यादा प्यारे होते हैं। उन्हें सबसे ज़्यादा प्यार की ज़रूरत होती है। 

जिन्हें अपने हिस्से का इश्क़ मिल चुका है, उन्हें भविष्य के लिए शुभकामनाएँ, जवानी की दहलीज़ पर खड़े लड़के-लड़कियो! तुम्हें वह एहसास मुबारक, जो तुम्हें अभी सोने नहीं देते। जब इश्क़ नहीं मिलेगा, तो तुम में से बहुतों को अफ़सोस भी होगा। तुम्हें लगेगा कि अब मंजिल फ़ाँसी का फंदा है। ट्रेन की पटरी है या सल्फास की गोली। लेकिन देखो, मरना मत, अपने उन तमाम एहसासों को जीना। भरपूर जीना। मरते दम तक जीना।

तुमसे पहले भी बहुत आए थे। तुम्हारे बाद भी आते रहेंगे। इसलिए क़ोशिश करते रहना कि किसी और के मुक़म्मल इश्क़ की कहानी में तुम्हारा भी किरदार चमके… लव यू ऑल… © “कुंदन”।
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(कुंदन जी, उज्जैन में रहते हैं। मूल रूप से मध्य प्रदेश के ही शुजालपुर के रहने वाले हैं। पुलिस विभाग के साथ जुड़कर जीवन-शैली से जुड़ी समस्याओं के निदान के काम किया करते हैं।) 
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कुंदन जी के पिछले लेख 

1- ख़ुदकुशी के ज्यादातर मामलों में लोग मरना नहीं चाहते… वे बस चाहते हैं कि उनका दर्द मर जाए

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