विदेशी है तो बेहतर ही होगा, इस ‘ग़ुलाम सोच’ को जितनी जल्दी हो, बदल लीजिए!

निकेश जैन, इन्दौर, मध्य प्रदेश

विदेशी है तो बेहतर ही होगा!

आम तौर पर हम भारतीयों की यही सोच होती है कि अगर कोई सामान विदेश में बना है तो वह स्थानीय उत्पाद से अच्छा ही होगा। इस तरह की सोच के विकसित होने में हमारी कोई गलती भी नहीं है। इसलिए क्योंकि मुझे लगता है कि लम्बे समय से विदेशी उत्पाद भारतीय उत्पादों की तुलना में बेहतर रहे भी हैं।

वास्तव में भारत में अच्छे उत्पाद बनाए भी नहीं गए। लेकिन भारत में आज कई शानदार उत्पाद बन रहे हैं। वह चाहे सॉफ्टवेयर हों या कपड़े। फिल्में हों या मूलभूत ढाँचे की बात। बैंकिंग, वित्तीय तकनीक, जैसे अनेक क्षेत्र हैं, जहाँ भारतीय उत्पाद अब विदेशी उत्पादों से बेहतर साबित हो रहे हैं। फिर चाहे वह समग्र पेशकश का मसला हो या फिर विक्रय और सेवा का। उनका मूल्य भी प्रतिस्पर्धात्मक रूप से कम रहता है। 

तो फिर हमारे समाज को अब यह विचार को क्यों पकड़े रहना चाहिए कि ‘विदेशी है तो बेहतर ही होगा’? यह गुलामी की मानसिकता है। और मुझे लगता है कि इसने पर्याप्त समय गुजार लिया है। 

अब हमें यह समझना होगा कि अगर भारत को वाकई दुनिया में महाशक्ति के तौर पर उभरना है, स्थापित होना है तो इस तरह की ‘गुलाम मानसिकता’ को जितनी जल्दी हो सके, छोड़ना होगा। 

और वह कैसे? 

निष्पक्षता के साथ भारतीय उत्पादों को अवसर देकर।  

यह मेरा विचार है, आप भी सोचिए!

———–  

निकेश का मूल लेख 

विदेशी है तो बेहतर ही होगा!

It’s a general thinking a majority of Indians are biased with! If something is made in foreign country must be better than a local product….

It’s not really our fault because I think it was a fact for a very long time that foreign products were better than Indian products. In fact India didn’t make many anyways.

But today India is making many many products and in terms of quality production India has come a long way – be it software, clothing, movies, infrastructure, banking, fintech etc. etc.

In fact I find Indian products doing much better than their competition in many areas when you look at them in terms of overall offering including pricing and after sales service.

So why is this bias that “विदेशी है तो बेहतर ही होगा !” is still prevailing in the society?

It’s a colonial hangover which takes its own time!

But if India needs to become a world power then Indians need to speed up and get rid of this hangover rather quickly…

How?

By giving an Indian product a fair (read unbiased) chance!

Thoughts? 

——- 

(निकेश जैन, शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी- एड्यूरिगो टेक्नोलॉजी के सह-संस्थापक हैं। उनकी अनुमति से उनका यह लेख अपेक्षित संशोधनों और भाषायी बदलावों के साथ #अपनीडिजिटलडायरी पर लिया गया है। मूल रूप से अंग्रेजी में उन्होंने इसे लिंक्डइन पर लिखा है।)

——

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25 – उत्तराखंड में 10 दिन : एक सपने का सच होना और एक वास्तविकता का दर्शन!
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