टीम डायरी ; 31/8/2020
देश के पूर्व राष्ट्रपति ‘भारत रत्न’ प्रणब मुखर्जी का सोमवार, 31 अगस्त को निधन हो गया। वे 84 साल के थे। इसी महीने उन्हें दिल्ली स्थित सैन्य अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वहाँ उनके मस्तिष्क की शल्य चिकित्सा (ऑपरेशन) हुई थी। उसके बाद से उनकी हालत लगातार ख़राब होती गई। आख़िरी समय में उनके फेंफड़ों में संक्रमण हो गया था। इससे उनकी हालत में सुधार हो पाना सम्भव नहीं हो सका।
मुखर्जी अपने लम्बे राजनीतिक करियर में सात बार सांसद चुने गए। उन्होंने देश के अलग-अलग प्रधानमंत्रियों के साथ रक्षा, विदेश और वित्त मंत्रालय सहित केन्द्र के कई बड़े महकमाें की ज़िम्मेदारी संभाली। वे 2012 में देश के राष्ट्रपति चुने गए। इस पद पर वे 2017 तक रहे। मुखर्जी देश के ऐसे नेताओं में गिने जाते रहे, जिन्हें सभी राजनैतिक दलों के लोग पसन्द करते थे। यहाँ तक कि मूल रूप से कांग्रेसी नेता रहे प्रणब मुखर्जी को वैचारिक तौर पर कांग्रेस से एकदम अलग संगठन- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में भी पसन्द किया जाता था। मुखर्जी को 2018 में आरएसएस स्वयंसेवकों के तृतीय वर्ष प्रशिक्षण वर्ग के समापन के मौके पर बुलाया गया था। तमाम सवालों बावज़ूद वे उस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए नागपुर स्थित संघ मुख्यालय गए थे। केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने उन्हें 2017 में देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से नवाजा था। कहा जाता है कि उनके राजनीतिक जीवन में दो मौके ऐसे भी आए, जब वे प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए। एक- जब 1984 में इन्दिरा गाँधी की हत्या हुई। दूसरा- जब 2004 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की सरकार बनी। इन मौकों पर पहली बार राजीव गाँधी और दूसरी बार डॉक्टर मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री की कुर्सी नसीब हुई थी।
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