गोस्वामी तुलसीदास, जिन्होंने अकबर जैसे धरती के सर्वोच्च शासक को अकेले चुनौती दी!

शिव कुमार, हापुड़, उत्तर प्रदेश

जिसका स्वभाव उदारता, सहिष्णुता और  शान्तिवादिता न हो, उसके हाथों से अगर सर्वधर्म समभाव और समन्वयवाद की ढपली बजने ही न लगे बल्कि उसका कीर्तन घर-घर होने लगे, तब समझिए उस राष्ट्र की मूल पहचान और जातीय अस्मिता सचमुच खतरे में पड़ गई है।

जब तक जीत सको युद्ध, तलवार और शक्ति मर्दन से जीतो। साम्राज्यवादी एजेंडे के प्राथमिक अभियान को सामने रखकर जीतो और जब एक निश्चित भूभाग पर अच्छी खासी पैठ हो जाए, तब उदारता और मानवतावाद का मुखौटा लगाकर एक खास धार्मिक राजनीतिक उद्देश्य पूरा करो।

मध्यकाल में अकबर के शासन काल को और चाहे जिस दृष्टिकोण व तौर तरीकों से पढ़ें समझें पर यह न भूलें कि उसने अपनी उदारता और शान्तिप्रियता की नीति से एक बर्बर और कट्टर जाति/धर्म/नस्ल से पहचानी जाने वाली कौम का उदात्त चेहरा प्रस्तुत करने की कोशिश की। इसमें वह बहुत सफल भी रहा। उसकी इस सहयोग और आत्मीय सम्बन्ध भावना और मेल-मिलाप की शासकीय नीति के परिणाम एक सशक्त राजपूत जाति के लिए और प्रकारान्तर से हिन्दू जनता के लिए बहुत नुकसानदेह साबित हुए। अकबर के आने के पूर्व राजपूतों के शौर्य, अभिमान और देशज रक्त की उबाल से जातीय गौरव और सांस्कृतिक दर्प की अनुगूँज कम से कम अक्षुण्ण तो थी। लेकिन अकबर की उदारवादी और समन्वयकारी नीतियों से राजपूतों का प्रतिरोध नपुंसक और भोथरा होता गया। धीरे धीरे उनकी नसों में स्वतन्त्रता का खौलता रक्त और स्वाभिमान दीप बुझता चला गया। 

यह तो सर्वविदित व सार्वभौमिक तथ्य है कि शासक वर्ग के जीवन आचरण और कर्म सन्देश ही अन्ततोगत्वा उसके अनुसरणकर्ता जनमानस के भी आचरण कर्म के अपरिहार्य हिस्से बनने लगते हैं, कुछ समय बाद। और मध्यकाल में इस्लाम के प्रखर दौर में ऐसा ही विकराल और प्रच्छन्न दौर हिन्दू जाति के सम्मुख आया था, जब मुग़ल वंश के भीतर उदारता और बन्धुता की छद्म नीतियों की आड़ में इस्लाम का दिग्विजयी अभियान बहुत तेजी से जनता के हृदय और अन्तःकरण को प्रभावित करने लगा था। इस बात को स्थूल और भौतिक लालसा व तामझाम में सरोबार आपादमस्तक डूबे हिन्दू शासक वर्ग समझ ही नहीं सकते थे। उनका तो उनके आत्मकेन्द्रित स्वार्थमूलक आचरण से देश की मूल अस्मिता का क्रमिक विलोपन हो रहा था। हिन्दू समाज का पोस्ते के विष के मानिन्द अनवरत इस्लामीकरण हो रहा था।

हालाँकि इस सूक्ष्म पर सबसे गम्भीर मसले को सांस्कृतिक योद्धा या समाज की मूल नब्ज टटोलने में सिद्धहस्त सहृदय कवि पढ़ गुन पाते हैं। समाज की इस पीड़ा और कराहती आत्मा के स्वर को वही कायदे से वाणी दे पाते हैं। पूरे मध्यकाल में इसीलिए अकबर जैसे धरती के सर्वोच्च शासक को यदि अकेले किसी ने सबसे सशक्त और सारवान चुनौती दी, तो वह थे गोस्वामी तुलसीदास। उन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के चरित्र और जीवन को महानतम कर्म वैभव से संयुक्त करके उस चतुर रणनीतिक अभियान के वेग को शमित कर डाला, जिसे अकबर इस्लाम के बेहद मानवीय चेहरे के साथ हिन्दू जनता के भीतर परोसते हुए आगे बढ़ रहा था।

तुलसीदास को इसीलिए मैं “कल्चरल हीरो” मानता हूँ और उनके सृजनात्मक कर्म को सबसे असरदार सांस्कृतिक अभियान। उन्होंने हिन्दू जनता की मूल आत्मा और नब्ज में विराजमान उसके अखण्ड हीरो मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का नूतन चारित्रिक अभिनिवेश करते हुए उसके सम्मुख किसी भी लौकिक सत्ता और लिबरल सम्राट के कद को बहुत बौना साबित कर दिया। कहाँ इतिहासबद्ध नायक (टाइम बाउंड हीरो) और कहाँ कालातीत नायक( टाइमलेस हीरो)। कहीं कोई मुकाबला और स्पर्द्धा की गुंजाइश ही न छोड़ी।

वास्तविक सांस्कृतिक कर्म वह होता है जिसके माध्यम से भीषणतम जीवन संकट और पहचान से विस्थापित हो रही किसी जाति के मौलिक चरित्र और आत्मबिम्बों को साबुत बचा लेने का आत्मविश्वास सृजित कर दिया जाता है। ऐसा राजमार्ग बना दिया जाता है कि फिर संकट आते रहते हैं और वह जाति उससे जूझते भिड़ते अपने उद्देश्य पथ पर चलती जाती है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने सांस्कृतिक साहित्यिक कर्म से यही किया है। 

इसीलिए मेरा मत है कि तुलसी और उनके राम को ऐसे भी पढ़ना चाहिए।
——- 
(नोट : शिव कुमार जी हापुड़ उत्तर प्रदेश में जिला समाज कल्याण अधिकारी हैं। इस तरह के विषयों पर लिखने में उनकी स्वाभाविक रुचि है। उनका यह लेख उनकी अनुमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर दर्ज किया गया है।) 

सोशल मीडिया पर शेयर करें
From Visitor

Share
Published by
From Visitor

Recent Posts

तिरुपति बालाजी के लड्‌डू ‘प्रसाद में माँसाहार’, बात सच हो या नहीं चिन्ताजनक बहुत है!

यह जानकारी गुरुवार, 19 सितम्बर को आरोप की शक़्ल में सामने आई कि तिरुपति बालाजी… Read More

5 hours ago

‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह रो रहा था क्योंकि उसे पता था कि वह पाप कर रहा है!

बाहर बारिश हो रही थी। पानी के साथ ओले भी गिर रहे थे। सूरज अस्त… Read More

1 day ago

नमो-भारत : स्पेन से आई ट्रेन हिन्दुस्तान में ‘गुम हो गई, या उसने यहाँ सूरत बदल’ ली?

एक ट्रेन के हिन्दुस्तान में ‘ग़ुम हो जाने की कहानी’ सुनाते हैं। वह साल 2016… Read More

2 days ago

मतदान से पहले सावधान, ‘मुफ़्तख़ोर सियासत’ हिमाचल, पंजाब को संकट में डाल चुकी है!

देश के दो राज्यों- जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में इस वक़्त विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया चल… Read More

3 days ago

तो जी के क्या करेंगे… इसीलिए हम आत्महत्या रोकने वाली ‘टूलकिट’ बना रहे हैं!

तनाव के उन क्षणों में वे लोग भी आत्महत्या कर लेते हैं, जिनके पास शान,… Read More

5 days ago

हिन्दी दिवस :  छोटी सी बच्ची, छोटा सा वीडियो, छोटी सी कविता, बड़ा सा सन्देश…, सुनिए!

छोटी सी बच्ची, छोटा सा वीडियो, छोटी सी कविता, लेकिन बड़ा सा सन्देश... हम सब… Read More

6 days ago