सरकार घबराई हुई थी, साफतौर पर उसकी साठगांठ यूनियन कार्बाइड से थी!

विजय मनोहर तिवारी की पुस्तक, ‘भोपाल गैस त्रासदी: आधी रात का सच’ से, 7/7/2022

जनवरी 1985। नए साल के तीसरे दिन करीब दस हजार लोगों ने मुख्यमंत्री निवास को घेरा। टीला जमालपुरा से लंबा मार्च करके ये लोग आए थे, लेकिन अर्जुनसिंह ने मिलने से इंकार कर दिया। मुख्यमंत्री बाहर नहीं आए। यह अंतरराष्ट्रीय खबर थी। पांच दिन बाद सीएम ने तीन लोगों को बातचीत के लिए बुलाया। लेकिन इन्होंने कहा कि सौ का प्रतिनिधिमंडल मिलेगा। तीन नहीं। पहली मांग थी- बचे हुए जहर में कौन से रसायन है, कैसे इन्हें खत्म किया जाएगा और सफाई कब तक होगी? छोला नाका के लियाकत अली ने पूछा कि हुजूर यह तो बताइए कि कौन सा रसायन कितनी मात्रा में है? सीएम ने कहा कि वे सीएसआईआर के डॉ. वर्द्धराजन से इस बारे कहेंगे। लेकिन इन नुमाइंदों ने उनसे कह दिया कि इस सरकारी संस्था पर उन्हें भरोसा नहीं है। मीडिया को भी नहीं है। सीएम ने पूछा कि फिर आप चाहते क्या हैं? लियाकत अली ने जवाब दिया-हमारे वैज्ञानिक आएंगे। वे रसायनों का अध्ययन करके रिपोर्ट देंगे। सीएम ने मना कर दिया। नौ जनवरी 1985 को यूनियन कार्बाइड के रिसर्च सेंटर पर धरना हुआ। इसे फौरन बंद करने की मांग हुई। इस केंद्र को आयकर में सौ फीसदी की छूट मिली थी। अनिल सद्गोपाल कहते हैं कि वियतनाम की लड़ाई में अमेरिका ने जिन घातक रसायनों का इस्तेमाल किया था, उसके पापपूर्ण परीक्षण इसी केंद्र में हुए थे।

प्रो. हीरेश चंद्र मेडिकल कॉलेज में फोरेंसिक प्रमुख और मेडिको लीगल इंस्टीट्यूट के संचालक थे। उन्होंने मोर्चे के स्वयंसेवी डॉक्टरों को बुलाकर बताया कि जो घातक रसायन लोगों के शरीर में मौजूद हैं, उसकी काट के लिए सोडियम थायोसल्फेट ही एंटीडोट है। 15 दिसंबर से मरीजों को यही इंजेक्शन दिए जा रहे थे। इस इंजेक्शन के बाद शरीर का जहर पेशाब के रास्ते थायोसाइनेट के रूप में बाहर आता था। इसे मापने के लिए स्पेक्ट्रो फोटो मीटर की जरूरत थी। इसकी दो ही मशीनें आईसीएमआर के पास थी, जिनसे काम लिया जा रहा था। लेकिन राज्य सरकार और आईसीएमआर ने इसे रुकवा दिया। जबकि इंजेक्शन उपलब्ध थे, लोगों को राहत भी मिल रही थी। मोर्चे ने इसकी रिपोर्ट प्रकाशित कर दी। जहर के ये सबूत मुआवजे के दावों में यूनियन कार्बाइड के खिलाफ मददगार साबित होने वाले थे। मोर्चे ने सीएम से कहा कि ऐसी सौ मशीनों की जरूरत है। उन्हीं दिनों गांधी भवन में देश भर के वैज्ञानिकों की कॉन्फ्रेंस बुलाई गई। गैस प्रभावित बस्तियों में 60-70 समितियां बनीं। अब्दुल जब्बार तब राजेंद्रनगर समिति के संयोजक थे, जो बाद में पीड़ितों की नुमाइंदगी में अग्रणी बनकर उभरे। षडंगी बनारस हिंदू विवि के इंजीनियर हैं। वे वैज्ञानिक परीक्षणों के काम में जुटे थे। अनिलजी बताते हैं कि इतना काम हो चुकने तक सरकार हमसे नफरत करने लगी थी। सरकार की तरफ से जनवरी मध्य में दुनिया को यह बताया गया कि मामला खत्म हो चुका है, राहत दी जा चुकी है। यूनियन कार्बाइड के वैज्ञानिकों के हवाले से ज्ञान दिया गया कि गैस का लंबा असर नहीं होगा।…

इस बीच अर्जुनसिंह पंजाब के राज्यपाल बनकर रुखसत हो गए। मोतीलाल वोरा नए मुख्यमंत्री बने। सोडियम थायोसल्फेट बड़ा मामला बन चुका था। वोराजी से फिर कहा गया कि सौ स्पेक्ट्रो फोटोमीटर चाहिए। या तो आप मंगाइए या हमें अधिकृत कीजिए। हम देश भर के संस्थानों से उधार मांगेंगे। लेकिन वे इसके लिए राजी नहीं हुए। पांच साल तक दो मशीनों से ही काम लिया जाता रहा। मोर्चे ने हार नहीं मानी। तीन सौ महिलाओं ने पेशाब की बोतलें हाथ में लेकर प्रदर्शन किया। बोतलों पर लिखा- इसकी जांच करके बताओ कितना थायोसाइनेट है? आखिरकार यूनियन कार्बाइड के खाली मैदान पर टेंटों में एक जनस्वास्थ्य केंद्र खोल दिया गया, जो एक साल चला। यहां से इंजेक्शन दिए गए। रसायनों की जांचें शुरू हुई। हर हफ्ते का रिकॉर्ड मीडिया के सामने पेश किया जाता रहा। पर्याप्त आंकड़े इकट्ठे हो चुके थे। सरकार घबराई हुई थी। साफतौर पर उसकी साठगांठ यूनियन कार्बाइड से थी। जून की 25 तारीख। आधी रात के वक्त पुलिस ने केंद्र पर धावा बोला। डॉक्टरों को गिरफ्तार कर लिया। मरीजों का रिकॉर्ड और उपकरण जब्त हो गए। पकड़े गए डॉक्टरों में मुंबई के डॉ. निश्चित वोरा भी थे। मोर्चे के नुमांइदे सरकार के इस रवैए को लेकर सीधे सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। गैस हादसे के किसी भी मामले में देश की सबसे बड़ी अदालत में यह पहली याचिका थी। मांग थी- केंद्र फिर से शुरु हो, उपकरण और रिकॉर्ड वापस दिए जाएं और वैज्ञानिक निष्कर्षों को सुना जाए। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर केंद्र शुरू तो हो गया लेकिन सरकार ने वैज्ञानिक आंकड़ों का वह रिकॉर्ड कभी वापस नहीं किया।…

मामले की सुनवाई होती रहीं। आखिरकार कोर्ट ने भी माना कि कुछ गड़बड़ है। सीएसआईआर, आईसीएमआर, सरकारें और स्वास्थ्य विभाग वैज्ञानिक तथ्यों को छुपाने में लगे थे। सब मिलकर यूनियन कार्बाइड के हित में सक्रिय थे। सुप्रीम कोर्ट ने एक समिति बना दी। सात सदस्यीय इस समिति में जनता के प्रतिनिधि के रूप में खुद अनिल सद्गोपाल और कलकत्ता की ड्रग एक्शन फोरम के संचालक डॉ. सुजीत दास भी शामिल हुए। दो ही बैठकें हुईं और ऊपर से फरमान आ गया कि जानकारियां सार्वजनिक न की जाएं। यूनियन कार्बाइड की लैब समेत अस्पतालों से भी जरूरी जानकारियां लेने पर भी समिति के बाकी पांच सदस्यों को एतराज था। पांच सदस्यों ने मिलकर चार पेज की रिपोर्ट के जरिए लीपापोती की तैयारी कर दी। जनता की ओर से रखे गए इन दो सदस्यों ने अपनी रिपोर्ट अलग से सुप्रीम कोर्ट में देने का फैसला किया। समिति दो फाड़ हो गई। ज्यादातर लोग सरकारी इरादों की पूर्ति के पक्ष में थे। सिर्फ दो लोग वैज्ञानिक आधार पर मामले की तह में जाना चाहते थे।

1987 में अदालत में चार सौ पेज का दस्तावेज इन सदस्यों पेश किया। यह अंतरिम रिपोर्ट थी। इसमें कहा गया कि पीड़ितों के शरीर में सिर्फ एमआईसी ही नहीं है। बल्कि विघटित रसायन भी हैं। सोडियम थायोसल्फेट एंटीडोट के रूप में कारगर है, जो भीतर के जहर को थायोसाइनेट के रूप में बाहर निकालता है। लेकिन इन तथ्यों को सरकार नजरअंदाज करती रही है। हैरानी की बात यह थी कि सरकार की तरफ से सिर्फ शून्य दशमलव तीन फीसदी मरीजों को ही यह इंजेक्शन मिला। यह आंकड़े यूनियन कार्बाइड के खिलाफ एक मजबूत आधार हैं। यूनियन कार्बाइड की रटी-रटाई दलील यह थी कि गैस का असर सिर्फ आंखों और फेफड़ों की सतह तक सीमित है। इससे भीतर नहीं है, क्योंकि एमआईसी पानी के संपर्क में आते ही खत्म हो जाती है। एक साल बाद 1988 में 50 पेज की अंतिम रिपोर्ट भी अदालत में पेश कर दी गई। इसमें केंद्रीय स्तर पर एक राष्ट्रीय चिकित्सा राहत एवं पुनर्वास आयोग बनाने का सुझाव रखा गया, जिसके लिए जजों व वैज्ञानिकों के नाम भी सुझाए गए। सुप्रीम कोर्ट ने इस दिशा में कोई कदम तय नहीं किए। 
(जारी….)
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(नोट : विजय मनोहर तिवारी जी, मध्य प्रदेश के सूचना आयुक्त, वरिष्ठ लेखक और पत्रकार हैं। उन्हें हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार ने 2020 का शरद जोशी सम्मान भी दिया है। उनकी पूर्व-अनुमति और पुस्तक के प्रकाशक ‘बेंतेन बुक्स’ के सान्निध्य अग्रवाल की सहमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर यह विशेष श्रृंखला चलाई जा रही है। इसके पीछे डायरी की अभिरुचि सिर्फ अपने सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक सरोकार तक सीमित है। इस श्रृंखला में पुस्तक की सामग्री अक्षरश: नहीं, बल्कि संपादित अंश के रूप में प्रकाशित की जा रही है। इसका कॉपीराइट पूरी तरह लेखक विजय मनोहर जी और बेंतेन बुक्स के पास सुरक्षित है। उनकी पूर्व अनुमति के बिना सामग्री का किसी भी रूप में इस्तेमाल कानूनी कार्यवाही का कारण बन सकता है।)
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श्रृंखला की पिछली कड़ियाँ  
42. लेकिन अर्जुनसिंह वादे पर कायम नहीं रहे और राव पर उंगली उठा दी
41. इस मुद्दे को यहीं क्यों थम जाना चाहिए?
40. अर्जुनसिंह ने राजीव गांधी को क्लीन चिट देकर राजनीतिक वफादारी का सबूत पेश कर दिया!
39. यह सात जून के फैसले के अस्तित्व पर सवाल है! 
38. विलंब से हुआ न्याय अन्याय है तात् 
37. यूनियन कार्बाइड इंडिया उर्फ एवर रेडी इंडिया! 
36. कचरे का क्या….. अब तक पड़ा हुआ है 
35. जल्दी करो भई, मंत्रियों को वर्ल्ड कप फुटबॉल देखने जाना है! 
34. अब हर चूक दुरुस्त करेंगे…पर हुजूर अब तक हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठे थे? 
33. और ये हैं जिनकी वजह से केस कमजोर होता गया… 
32. उन्होंने आकाओं के इशारों पर काम में जुटना अपनी बेहतरी के लिए ‘विधिसम्मत’ समझा
31. जानिए…एंडरसरन की रिहाई में तब के मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री की क्या भूमिका थी?
30. पढ़िए…एंडरसरन की रिहाई के लिए कौन, किसके दबाव में था?
29. यह अमेरिका में कुछ खास लोगों के लिए भी बड़ी खबर थी
28. सरकारें हादसे की बदबूदार बिछात पर गंदी गोटियां ही चलती नज़र आ रही हैं!
27. केंद्र ने सीबीआई को अपने अधिकारी अमेरिका या हांगकांग भेजने की अनुमति नहीं दी
26.एंडरसन सात दिसंबर को क्या भोपाल के लोगों की मदद के लिए आया था?
25.भोपाल गैस त्रासदी के समय बड़े पदों पर रहे कुछ अफसरों के साक्षात्कार… 
24. वह तरबूज चबाते हुए कह रहे थे- सात दिसंबर और भोपाल को भूल जाइए
23. गैस हादसा भोपाल के इतिहास में अकेली त्रासदी नहीं है
22. ये जनता के धन पर पलने वाले घृणित परजीवी..
21. कुंवर साहब उस रोज बंगले से निकले, 10 जनपथ गए और फिर चुप हो रहे!
20. आप क्या सोचते हैं? क्या नाइंसाफियां सिर्फ हादसे के वक्त ही हुई?
19. सिफारिशें मानने में क्या है, मान लेते हैं…
18. उन्होंने सीबीआई के साथ गैस पीड़तों को भी बकरा बनाया
17. इन्हें ज़िन्दा रहने की ज़रूरत क्या है?
16. पहले हम जैसे थे, आज भी वैसे ही हैं… गुलाम, ढुलमुल और लापरवाह! 
15. किसी को उम्मीद नहीं थी कि अदालत का फैसला पुराना रायता ऐसा फैला देगा
14. अर्जुन सिंह ने कहा था- उनकी मंशा एंडरसन को तंग करने की नहीं थी
13. एंडरसन की रिहाई ही नहीं, गिरफ्तारी भी ‘बड़ा घोटाला’ थी
12. जो शक्तिशाली हैं, संभवतः उनका यही चरित्र है…दोहरा!
11. भोपाल गैस त्रासदी घृणित विश्वासघात की कहानी है
10. वे निशाने पर आने लगे, वे दामन बचाने लगे!
9. एंडरसन को सरकारी विमान से दिल्ली ले जाने का आदेश अर्जुन सिंह के निवास से मिला था
8.प्लांट की सुरक्षा के लिए सब लापरवाह, बस, एंडरसन के लिए दिखाई परवाह
7.केंद्र के साफ निर्देश थे कि वॉरेन एंडरसन को भारत लाने की कोशिश न की जाए!
6. कानून मंत्री भूल गए…इंसाफ दफन करने के इंतजाम उन्हीं की पार्टी ने किए थे!
5. एंडरसन को जब फैसले की जानकारी मिली होगी तो उसकी प्रतिक्रिया कैसी रही होगी?
4. हादसे के जिम्मेदारों को ऐसी सजा मिलनी चाहिए थी, जो मिसाल बनती, लेकिन…
3. फैसला आते ही आरोपियों को जमानत और पिछले दरवाज़े से रिहाई
2. फैसला, जिसमें देर भी गजब की और अंधेर भी जबर्दस्त!
1. गैस त्रासदी…जिसने लोकतंत्र के तीनों स्तंभों को सरे बाजार नंगा किया! 

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Neelesh Dwivedi

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