समीर शिवाजीराव पाटिल, भोपाल मध्य प्रदेश
निसर्ग में अनुस्यूत परमतत्त्व जिस ऋतु-पर्यावरण, आचार-विचार, आहार-विहार चक्र से मानवता में प्रवाहित हाेता है उसके विज्ञान के ज्ञान को भी धर्म कहते हैं। हमारे जीवन में यह प्रत्यक्ष है- पर्व, व्रत और उत्सवों के जरिए।
वसंत के रंग, रूप, गन्ध, नाद और भाव की वेला चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि गुढी पाडवा, युगादि-उगादि के नाम से मनाया जाता है। यह विक्रमी संवत के शालिवाहन संवत का तिथि पर्व मात्र नहीं, जिसे सम्राट विक्रमादित्य या फिर आगे महाराज शालिवाहन ने शकों पर विजय की स्मृति पर आरंभ करवाया। उन्होंने तो संवत्सर उस तिथि से आरम्भ किया, जिससे प्रजापति ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना शुरू की। यह हमारी सनातन परम्परा का सातत्य है। कहते इसी दिन से चतुर्युगी के पहले भाग ‘सतयुग’ का आरम्भ हुआ था। इसी कारण इस दिन को युगादि भी कहते हैं। कन्नड़, तेलुगु, तमिल संस्कृति में यही ‘उगादि’ के नाम से मनाया जाता है।
महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में यह पर्व विशेष उत्सव के रूप में मनाया जाता है। महाराष्ट्र में घर-द्वार पर गुढी लगाई जाती है। गुढी का शाब्दिक अर्थ होता है लकड़ी या लाठी होता है। इस दिन बाँस या तत्सम किसी लकड़ी पर पताका स्वरूप रेशम की पताका या साड़ी और उस पर ताम्बे का लोटा रखा जाता है। यह ब्रह्मध्वज या इंद्रध्वज का प्रतीक है। इसके माध्यम से परमात्मा की शक्ति का आधान कर बल-तेज, शुभ-मंगल, समृद्धि का आवाहन किया जाता है। गुढी को नीम के कोमल पल्लव, पुष्पमाला, शक्कर के बने गाँठ की माला से सजाते हैं। फिर उसकी आरती पूजा की जाती है। श्रीखंड, पुरी, पुरनपोली जैसे पदार्थ निवेदित कर वह इष्ट मित्र परिजनों में वितरित किया जाता है।
इस दिन की विशेषता है नीम के कोमल पल्लवों की। नीम के पत्ते, काली मीर्च अजवाइन, हींग और मिश्री को पीसकर उसकी गोली प्रसाद रूप में खाई जाती है। आयुर्वेद बताता है जो मनुष्य इस ऋतु संधिकाल के नौ दिन तक प्रतिदिन नीम की कोपलों का सेवन करता है, उसे वर्ष भर रोगों से विशेष प्रतिरोधक शक्ति प्राप्त होती है। गुढी पाडवा से आरम्भ हुए चैत्र नवरात्र की पूर्णता धर्म के विग्रह श्रीराम के प्राकट्य तिथि रामनवमी में होती है। इस वर्ष इसका विशेष महत्व है।
इस रामनवमी में श्री रामजन्मभूमि पर भगवान श्रीराम का कोई 500 वर्ष बाद फिर पूजन अर्चन होगा। अयोध्या जो सप्तपुरियों में मस्तक के रूप में परिगणित हुई हैं, उसमें भगवान श्रीराम ने विराजित होकर हमारे राष्ट्र के प्राणों की प्रतिष्ठा कर दी है। अब काल का हमें आह्वान है कि हम अपना सर्वस्व त्याग कर भी आध्यत्मिक, लौकिक, सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन को भगवान श्रीराम की धर्म की मर्यादा से सुसज्जित और सुदृढ़ कर दें।
——–
(नोट : #अपनीडिजिटलडायरी के शुरुआती और सुधी-सदस्यों में से एक हैं समीर। भोपाल, मध्य प्रदेश में नौकरी करते हैं। उज्जैन के रहने वाले हैं। पढ़ने, लिखने में स्वाभाविक रुचि रखते हैं। वैचारिक लेखों के साथ कभी-कभी उतनी ही विचारशील कविताएँ, व्यंग्य आदि भी लिखते हैं। डायरी के पन्नों पर लगातार अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराया करते हैं।)
अभी इसी शुक्रवार, 13 दिसम्बर की बात है। केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी लोकसभा… Read More
देश में दो दिन के भीतर दो अनोख़े घटनाक्रम हुए। ऐसे, जो देशभर में पहले… Read More
सनातन धर्म के नाम पर आजकल अनगनित मनमुखी विचार प्रचलित और प्रचारित हो रहे हैं।… Read More
मध्य प्रदेश के इन्दौर शहर को इन दिनों भिखारीमुक्त करने के लिए अभियान चलाया जा… Read More
इस शीर्षक के दो हिस्सों को एक-दूसरे का पूरक समझिए। इन दोनों हिस्सों के 10-11… Read More
आकाश रक्तिम हो रहा था। स्तब्ध ग्रामीणों पर किसी दु:स्वप्न की तरह छाया हुआ था।… Read More