अवध में होरी : माता सीता के लिए मना करना सम्भव न था, वे तथास्तु बोलीं और मूर्छित हो गईं

द्वारिकानाथ पांडेय, कानपुर, उत्तर प्रदेश से

अवध में उत्सव की तैयारी हो रही थी। होली को अब बस केवल तीन दिन ही शेष बचे थे। राजा दशरथ जी के महल में विशेष तैयारियाँ चल रही थीं। तीनों माताएँ अपनी चारों नववधुओं के साथ पहली बार होली जो मनाने वालीं थीं। प्रभु श्रीराम सहित तीनों भईयन की यह विवाह के बाद की पहली होली थी। जब से राम जी ने मिथिला में धनुषभंग कर माता सीता का पाणिग्रहण किया है, तब से अयोध्या रोज उत्सव मना रही है। लेकिन इस उत्सव भरे माहौल में भी लक्ष्मण जी का गौरवर्णी मुख किसी वियोगी की तरह मलिन है। जैसे कोई मणिभुजंग अपनी मणि छिन जाने के पश्चात व्याकुल हो। व्याकुलता ने लक्ष्मण जी के मन को ग्रस लिया था। सिंह के समान मस्तक ऊँचा करके चलने वाले लक्ष्मण जी के पौरुषीय कंधो में थोड़ी सी लचक आ गई है। न वे किसी उत्सव में भाग लेते हैं और न रुचिपूर्वक भोजन करते हैं।

भगवान राम जी भी कई दिनों से लक्ष्मण जी की इस परिस्थिति को देख रहे थे। सो, राम जी ने एक बार लखन जी को अपने पास बुला ही लिया। उनसे उनके दुःख और व्याकुलता का कारण जानना चाहा। उन्होंने लक्ष्मण जी से पूछा, “आखिर इस सृष्टि का ऐसा कौन सा दुःख है, जिसने मेरे प्रिय लखन पर अधिकार कर लिया है? मेरा लखन तो अपने धनुष की एक टंकार से त्रैलोक्य को कच्चे घड़े के समान फोड़ डालने की शक्ति रखता है?” लक्ष्मण जी ने कोई उत्तर नहीं दिया। वे भ्राताश्री के समक्ष नतमस्तक खड़े रहे। तब राम जी ने पुन: लक्ष्मण जी से आदेश-भाव में उनकी व्याकुलता का कारण पूछा। लक्ष्मण जी अब अपने प्रभु के आदेश को टाल न सके। बोले, “नाथ जब से आपका विवाह हुआ है और माता सीता यहाँ आईं हैं, तब से आपकी चरणसेवा का अधिकार उन्हें मिल गया है। जिन चरणों की सेवा में मुझे परमानन्द की अनुभूति होती है, मैं अब उन चरणों की सेवा से वंचित हो गया हूँ।”

लक्ष्मण जी के नेत्र सजल हो उठे और वे घुटनों के बल प्रभु श्रीराम जी के चरणों में बैठ गए। लखन का संताप राम जी समझ गए। वे बोले, “क्या सीता ने तुम्हें मेरी चरणसेवा से रोका है?” लक्ष्मण जी ने उत्तर दिया, “प्रभु माता सीता ने तो मुझे कभी नहीं रोका। लेकिन मैं जब भी शयन के समय आपके कक्ष के समीप जाता हूँ, तो माता सीता स्वयं आपकी चरणसेवा में रत मिलती हैं। बिना बुलाए मैं संकोचवश आपके कक्ष में प्रवेश नहीं करता। और…” राम जी ने लक्ष्मण जी की आकुलता को समझते हुए कहा, “यह तो कुल की रीति है लखन। इसमें मैं क्या कर सकता हूँ। सीता से उनके इस अधिकार को लेना मेरे लिए असम्भव है।”

लखन जी की आंँखों में पुन: आँसू लुढ़क आए। वह व्यग्रतापूर्वक बोले, “लेकिन प्रभु आपको कोई तो उपाय बताना पड़ेगा। अन्यथा मैं आपकी चरणसेवा के बिना प्राण त्याग दूँगा।” प्रभु समझ गए कि अब तो कोई न कोई उपाय करना ही पड़ेगा। उन्होंने लक्ष्मण जी को समझाते हुए कहा, “तीन दिन बाद होली है। रघुकुल की रीति है कि होली के दिन भाभी के साथ देवर होली खेलते हैं। फिर उनसे आशीर्वाद स्वरूप जो कुछ भी माँगते हैं, वह उन्हें दिया जाता है। तुम भी उस दिन सीता से जो कुछ माँगोगे तुम्हें मिलेगा।” लक्ष्मण जी का मन प्रफुल्लित हो उठा। जैसे कृष-काय रोगी को औषधि और भुजंग को उसकी मणि मिल गई हो।

होली का दिन आ गया। सभी भाईयों ने माताओं और भाभियों के चरणों में रंग लगाते हुए उनसे आशीर्वाद माँगा। भरत जी ने मैया सीता से प्रभु श्रीराम जी की भक्ति, तो शत्रुघ्न जी ने प्रभु श्रीराम जी के भक्त यानी भरत जी की सेवकाई को आशीर्वाद स्वरूप माँगा। मैया सीता ने तथास्तु कहकर दोनों भाइयों को निहाल किया। अब मैया सीता ने लखनलाल जी की ओर रुख किया। उन्होंने लक्ष्मण जी से भी कुछ माँगने को कहा। लक्ष्मण जी ने मैया के चरणों में गुलाल लगाते हुए उनसे भगवान श्रीराम जी की चरणसेवा माँग ली। रघुकुल की रीति के अनुसार माता सीता के लिए मना करना सम्भव न था। उन्होंने तथास्तु बोला और इतना बोलते ही वह मूर्छित होकर गिर पड़ीं।

त्योहार के दिन अचानक मईया सीता के मूर्छित होने से महल में सन्नाटा छा गया। अवध में उत्सव रुक गया। तुरन्त वैद्य को बुलाया गया गया। औषधि पिलाई गई लेकिन माता सीता की मूर्छा दूर न हुई। सारा राजपरिवार माता को घेरकर खड़ा हो गया। भगवान श्रीराम समझ गए कि सीता से उनके चरणों का वियोग सहा न गया। इस कारण वह मूर्छित हो गई हैं। अब प्रभु राम को ही इस प्रेम और भक्ति के समर्पण के कारण उपजी समस्या का निवारण करना है।

राम जी ने लक्ष्मण जी को पास बुलाया और उन्हें कुछ समझाया। इसके बाद लखन जी मैया सीता के पास पहुँचे और उनके कान में बोले, “माते, मुझे क्षमा करें। जिन चरणों की सेवा किए बिना मैं जीवित नहीं रह सकता, भला उन चरणों का त्याग आपके लिए कैसे सम्भव हो सकता है। सो, माता प्रभु के बाएँ चरण की सेवा आप स्वयं करिए। किन्तु इस दास को प्रभु के दाहिने चरण की सेवा के सौभाग्य से वंचित मत करिए। यही प्रभु श्रीराम जी की भी इच्छा है।” माता सीता ने लक्ष्मण जी के वचन सुनते ही अपने नेत्र खोल दिए। राजमहल में पुन: होली की उमंग छाने लगी।

प्रेम और भक्ति दोनों अब सन्तुष्ट हैं। सभी भाई एक-दूसरे को रंग में रंगने लगे हैं। बाहर से अबीर और गुलाल, अन्दर से प्रेम व भक्ति के रंग में सब सराबोर हैं। अवध फिर उत्सव के उल्लास में डूब गया है।
—- 
(नोट : द्वारिकानाथ युवा हैं। सुन्दर लिखते हैं। यह लेख उनकी लेखनी का प्रमाण है। मूल रूप से कानपुर के हैं। अभी लखनऊ में रहकर पढ़ रहे हैं। साहित्य, सिनेमा, समाज इनके पसन्दीदा विषय हैं। वह होली पर ऐसे कुछ लेखों की श्रृंखला लिख रहे हैं, जिसे उन्होंने #अपनीडिजिटलडायरी पर प्रकाशित करने की सहमति दी है।) 
—– 
द्वारिकानाथ की होली श्रृंखला की पिछली कड़ियाँ 
2. जो रस बरस रहा बरसाने, सो रस तीन लोक में न
1. भूत, पिशाच, बटोरी…. दिगम्बर खेलें मसाने में होरी

सोशल मीडिया पर शेयर करें
Neelesh Dwivedi

Share
Published by
Neelesh Dwivedi

Recent Posts

तिरुपति बालाजी के लड्‌डू ‘प्रसाद में माँसाहार’, बात सच हो या नहीं चिन्ताजनक बहुत है!

यह जानकारी गुरुवार, 19 सितम्बर को आरोप की शक़्ल में सामने आई कि तिरुपति बालाजी… Read More

13 hours ago

‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह रो रहा था क्योंकि उसे पता था कि वह पाप कर रहा है!

बाहर बारिश हो रही थी। पानी के साथ ओले भी गिर रहे थे। सूरज अस्त… Read More

2 days ago

नमो-भारत : स्पेन से आई ट्रेन हिन्दुस्तान में ‘गुम हो गई, या उसने यहाँ सूरत बदल’ ली?

एक ट्रेन के हिन्दुस्तान में ‘ग़ुम हो जाने की कहानी’ सुनाते हैं। वह साल 2016… Read More

3 days ago

मतदान से पहले सावधान, ‘मुफ़्तख़ोर सियासत’ हिमाचल, पंजाब को संकट में डाल चुकी है!

देश के दो राज्यों- जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में इस वक़्त विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया चल… Read More

4 days ago

तो जी के क्या करेंगे… इसीलिए हम आत्महत्या रोकने वाली ‘टूलकिट’ बना रहे हैं!

तनाव के उन क्षणों में वे लोग भी आत्महत्या कर लेते हैं, जिनके पास शान,… Read More

5 days ago

हिन्दी दिवस :  छोटी सी बच्ची, छोटा सा वीडियो, छोटी सी कविता, बड़ा सा सन्देश…, सुनिए!

छोटी सी बच्ची, छोटा सा वीडियो, छोटी सी कविता, लेकिन बड़ा सा सन्देश... हम सब… Read More

6 days ago