इंसान की असली परख कैसे होती है?

समीर, भोपाल, मध्य प्रदेश से, 13/8/2021

एक पुरानी कहानी है। एक राजा हुआ करता था। उसका नियम था कि उसके शहर के हाट-बाजार में जो भी सामान नहीं बिकता, उसे वह खरीद लेता। उसी के राज्य में एक गरीब अन्धा युवक भी रहता था। माता-पिता नहीं थे और वह अपने दो भाइयों पर आश्रित था। गरीबी से तंग आकर उसने अपने भाइयों से कहा, “मैं अपना जीवन आप पर भार बनते नहीं देख सकता। आप मुझे बाजार में बेच दो।” भाइयों ने पहले तो इंकार किया पर जैसा कि होता है, अन्त में गरीबी ने उन्हें व्यावहारिक निर्णय लेने के लिए बाध्य कर ही दिया।

दोनों भाई उसे लेकर बाज़ार पहुँचे, लेकिन नेत्रहीन को कोई पारखी ग्राहक न मिला। अन्त में राज कर्मचारी आए और उसे भी अन्य सामान के साथ लेकर राजा के पास पहुँचे। राजा को विभिन्न वस्तुओं के बीच एक अन्धे आदमी को देख भारी आश्चर्य हुआ। वो बोला, “अरे सूरदास, तुम मेरे पास तो आए लेकिन तुम मेरे किस काम आओगे?” नेत्रहीन ने ज़वाब दिया, “महाराज मैं अन्धा हूँ लेकिन पारखी भी हूँ। आपने दया कर मुझे आश्रय दिया है, आपको जब कभी कुछ परखना हो मुझे याद कीजिएगा। मैं अपनी उपयोगिता बता दूँगा।”

राजा हँसकर आगे बढ़ गया और बात आई-गई हो गई। एक दिन दरबार में ईरान से घोड़ों का एक सौदागर आया। वह 200 उम्दा अरबी घोड़े बेचने के लिए लाया था। घोड़े लड़ाई के लिए तैयार किए गए थे। उनकी ख़ासियत यह थी कि वे पानी में भी दौड़ते हुए आगे निकल जाते थे। घोड़े देखने के लिए लोगों का हुज़ूम खड़ा था। तभी राजा को अन्धे की याद आई। सोचा कि इस मौके पर उसकी परख जाँची जाए। अन्धे को दरबार में बुलाया गया। राजा ने कहा, “सूरदास, सौदागर कहता है ये घोड़े पानी में कभी बैठते या अटकते नहीं। क्या तुम इनकी परख कर सकते हो।” अन्धे ने हामी भरी और जाकर घोड़ों को सूँघने लगा। वह हर घोड़े के पास जाकर उसके मुँह के पास सूँघता और आगे बढ़ जाता।

एक घोड़े पास जाकर वह अन्धा रुका और चिल्लाया, “महाराज यह घोड़ा पानी में बैठेगा।” सौदागर हँसा और बोला, “मेरे घोड़े तो राजा-सूरमा पहचान सकते हैं। ये अन्धा मेरे अरबी घोड़ों की क्या परख करेगा?” अन्धे ने कहा, “ठीक है। यदि यह घोड़ा पानी में बैठा तो सभी घोड़े महाराज के अस्तबल में बाँधना होंगे।” सौदागर ने हामी भर दी। परीक्षा के लिए घोड़ों को तालाब में छोड़ा गया। सब घोड़े पानी में दौड़ गए लेकिन अन्धे का बताया घोड़ा पानी में बैठ गया। सब लोग ताली पीटने लगे। सौदागर माथा पकड़कर बैठ गया। राजा ने अन्धे से पूछा, “सूरदास, बताओ तुमने कैसे जाना कि वह घोड़ा पानी में बैठेगा?” वह बोला, “महाराज मैंने घोड़ों का जब मुँह सूँघा था, तब मुझे उस घोड़े के मुूँह से भैंस के दूध की गन्ध आई थी। मैं समझ गया दूध तो अपनी बात बोलेगा।” राजा खुश हुआ और सौदागर बर्बाद। अन्धा फिर अपनी कोठरी की राह चला गया। 

कुछ दिन बीते परदेस से जवाहरात का एक सौदागर आया। वह बेशकीमती मोती लाया था। राजदरबार में अपने ख़ास मोती दिखाते हुए वह बोला, “महाराज, आपने तो कई किस्म के मोती देखे होंगे। लेकिन मेरे इन मोतियों को देखकर बताएँ कि ऐसे बेजोड़ मोती का क्या कोई जवाब है?” सब लोग मोती को देख कर तारीफ़ करने लगे। राजा को अन्धे पारखी की फिर याद आई। उसे बुलवाया गया। सौदागर अपने मोतियों पर क़सीदे पढ़ रहा था। जब अन्धे ने मोती हाथ में लिए तो जौहरी ने व्यंग्य से हँसते हुए कहा, “अच्छी तरह से देखों भाई, मोती कैसे हैं?” उसकी बात अनसुनी कर अन्धे ने मोतियों को हाथ में लेते हुए कहा, “महाराज जौहरी के कुछ मोती ठीक नहीं है।” इस पर जौहरी को गुस्सा आ गया। लेकिन वह हँसते हुए बोला, “महाराज हमने तो अपने जवाहरात की परख जौहरी के हाथों ही कराई है।” अन्धे ने कहा, “तो ठीक है। शहर के सबसे बड़े जौहरियों से परख कराई जाए। अगर मेरी बात सही निकली तो सारे मोती राजसात किए जाएँगे।” जौहरी ने गर्व के साथ हामी भर दी।

इसके बाद शहर के बड़े जौहरियों को बुलवाया गया। अन्धे ने कुछ मोती अलग निकाले और उन्हें जौहरियों को थमा दिया। जाँच में मोती ख़राब पाए गए। सारे मोती राज ख़जाने में पहुँचा दिए गए। जवाहरात का सौदागर अपना सा मुँह लेकर चला गया। राजा ने अन्धे की ख़ूब तारीफ़ की और फिर पूछा, “सूरदास, बताओ तुमने कैसे जाना कि मोती अच्छे नहीं थे?” अन्धे ने ज़वाब दिया, “महाराज, मैंने मोती के आकार और वज़न को परखा। उनमें से कुछ मोती अपेक्षाकृत भारी लगे। मैं समझ गया कि भारी मोतियों के बनते वक्त भीतर रेत के ज्यादा कण भर गए होंगे, और मैंने उन्हें अलग कर दिया।” राजा ने अन्धे को फिर शाबासी दी और वह अपनी कोठरी की ओर निकल गया।

कई दिन बीते। एक दिन राजा के मन में आया कि यह अन्धा तो सच में बड़ा पारखी है। क्यों न मैं इससे अपनी परख कराऊँ? राजा ने उसे बुलवाया और कहा, “सूरदास तुम मेरी परख कर बताओ।” अन्धा राजा के पाँव में पड़ गया। वह बोला, “अन्नदाता दुहाई, आप मुझसे यह न कराएँ।” राजा ने कहा, “सूरदास, तुम्हें यह करना ही होगा।” अन्धा बोला, “मुझे अपने प्राणों का भय है।” राजा ने जोर दिया, कहा, “नहीं, तुम्हें मेरी परख करनी होगी। मैं तुम्हें अभय देता हूँ। तुम कहो, मैं कैसा हूँ?” अन्धे ने हाथ जोड़कर कहा, “महाराज, आप अच्छे हैं। लेकिन आप राजपुत्र नहीं हैं। बनिए के लड़के हैं।” यह सुनकर राजा सन्न रह गया। अन्धे ने कहा, “महाराज मैं इसीलिए आपसे मना करता था।” राजा बोला, “वह सब ठीक है। लेकिन मैं कैसे जानूँ कि तुम जो कह रहे हो वह ठीक है?” अन्धा बोला, “महाराज, आप राजमाता से पूछें, क्योंकि सत्य वहीं जानती हैं और बता सकती हैं।”

राजा दौड़ता हुआ महल में राजमाता के पास पहुँचा। उसने पूछा, “आप मुझे बताएँ कि मैं किसका बेटा हूँ?” राजमाता ने कहा, “क्यों बेटा, यह कैसा प्रश्न है? तुम स्वर्गीय महाराज के पुत्र हो।” राजा ने जोर दिया, “नहीं आज मुझे सच जानना है। आप मुझे सच बताएँ। नहीं तो आप मेरा मुँह न देखेंगी।” राजमाता ने टालने की बहुत कोशिश की लेकिन राजा को मानते न देख, बोलीं, “तुम सच सुनना ही चाहते हो तो सुनो। तुम महाराज के नहीं, कोषाध्यक्ष के पुत्र हो। जब महाराज युद्ध में गए थे तो ऋतुकाल के बाद मैं कामप्रेरित थी। तब कोषध्यक्ष से सहवास हुआ और तुम्हारा जन्म हुआ। कुछ दिनों बाद ही राजा युद्ध जीतकर लौटे और किसी को कुछ पता न चला।” सत्य जानकर राजा हतप्रभ रह गया।

अन्त में वह फिर अन्धे के पास पहुँचा और बोला, “सूरदास तुम्हारी बात सही निकली, पर एक बात बताओ। मेरा आखिरी प्रश्न है। तुमने यह बात कैसे परखी?” अन्धा हाथ जोड़कर बोला, “महाराज, आपने मुझे आश्रय दिया। आपने मुझे घोड़ों की परख के लिए बुलवाया और आपको 200 अरबी घोड़े प्राप्त हुए। कोई राजा होता तो खुश होकर मुझे जागीर दे देता। मैंने मोतियों की परख की और आपको मोतियों का ख़ज़ाना मिला। कोई राजपुत्र होता तो मुझे कंठहार दे देता। लेकिन आपने बस, मेरी तारीफ़ कर मुझे रवाना कर दिया। इसी से मैं समझ गया कि यह बुद्धि किसी राजपुत्र को नहीं वणिक को ही सुलभ है।”
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(समीर भोपाल में एक निजी कम्पनी में काम करते हैं। #अपनीडिजिटलडायरी के नियमित पाठक हैं। डायरी के पन्ने लिखने में अक्सर योगदान देते रहते हैं। उन्होंने यह कहानी डायरी के मेल पर भेजी है।).

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