सांकेतिक तस्वीर
टीम डायरी
क्रिया-प्रतिक्रिया के सहज सिद्धान्त के आगे कई बार सभी चीजे़ बेमानी हो जाती हैं। देश में लगता है, इन दिनों यही हो रहा है। पहले भी होता होगा, लेकिन क़रीब एक दशक से, जब से मौज़ूदा ‘केन्द्र सरकार’ ने सत्ता सँभाली है, यह क्रिया-प्रतिक्रिया का सिद्धान्त अधिक और खुलकर नज़र आने लगा है। छोटे से लेकर बड़ा और अशिक्षित से लेकर शिक्षित तक, हर वर्ग इस क्रिया-प्रतिक्रिया के सिद्धान्त की चपेट में है। इसके हाल ही में दो ताज़ा उदाहरण सामने आए। पहला महाराष्ट्र से और दूसरा तमिलनाडु से।
महाराष्ट्र की राजधानी मुम्बई में एक हास्य कलाकार हैं, कुणाल कामरा। उन्होंने राज्य के मौज़ूदा उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिन्दे पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी। उन्होंने आधार जून-2022 की उस घटना को बनाया, जिसमें शिन्दे ने अपनी ही पार्टी ‘शिवसेना’ से बग़ावत कर दी थी। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की सरकार को गिरा दिया था। क़रीब 40 विधायकों को साथ लेकर शिन्दे पहले असम की राजधानी गुवाहाटी चले गए। फिर भारतीय जनता पार्टी की मदद लेकर मुख्यमंत्री बन गए। इसी कारण कुणाल ने उन पर टिप्पणी की, जिसे निश्चित रूप से उचित नहीं कहा जा सकता। हालाँकि क्रिया तो हो गई थी, सो प्रतिक्रिया भी होनी ही थी। शिन्दे के समर्थकों ने कुणाल के मुम्बई स्थित स्टूडियो पर हमला कर तोड़-फोड़ कर दी। उनके ख़िलाफ़ शायद कानूनी कार्रवाई भी हो जाए।
कुछ ऐसा ही मामला तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में सामने आया। वहाँ एक यूट्यूबर हैं- ‘सावुक्कु शंकर’। उनके बारे में कहा जाता है कि वह खुलकर राज्य की सत्ताधाारी पार्टी- डीएमके (द्रविड़ मुनेत्र कड़गम) के नेताओं तथा नीतियाें की आलोचना करते हैं। लिहाज़ा, सत्ताधारी पार्टी के समर्थक इस ताक में थे कि वह कोई ग़लती करें और उन पर वे अपना गुस्सा निकालें। शंकर से ग़लती हो भी गई शायद। उन्होंने चेन्नई नगर निगम के सफाईकर्मियों पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी। इससे भड़के 20-25 लोगों के एक समूह ने उनके घर पर हमला कर दिया। तोड़-फोड़ की और वहीं मानव मल फेंककर चले गए। बताया जाता है कि उस वक़्त शंकर की 68 वर्षीय माताजी घर पर थीं। थाने में मामला उन्हेांने ही दर्ज़ कराया, लेकिन पुलिस पर भी पक्षपात का आरोप लगाते हुए।
अब इन मामलों में ताज़ा स्थिति यह है कि तीखी प्रतिक्रिया के शिकार दोनों ही लोग अपने आपको पीड़ित और प्रताड़ित की तरह पेश कर रहे हैं। जबकि सच्चाई सिर्फ़ इतनी है कि अगर वह किसी के पक्ष में, ख़ासतौर पर राजनीतिक से जुड़े मामले में, यूँ खुलकर खड़े न होते तो उनकी ऐसी छीछालेदर न होती। सामान्य समझ की बात है कि हम किसी के पक्ष में खड़े होंगे, तो हमें फिर विपक्ष के हमले भी झेलने ही पड़ेंगे। इसी बात को दूसरे शब्दों में कहें तो कह सकते हैं- अपनी क्रियाएँ ठीक रखिए, प्रतिक्रियाएँ भी सही मिलती रहेंगी।
जी हाँ मैं गाँव हूँ, जो धड़कता रहता है हर उस शख्स के अन्दर जिसने… Read More
अभी 30 मार्च को हिन्दी महीने की तिथि के हिसाब से वर्ष प्रतिपदा थी। अर्थात्… Read More
आज चैत्र नवरात्र का प्रथम दिवस। स्वतंत्रता पश्चात् ऐसे कई नवरात्र आए भगवती देवी की… Read More
अद्भुत क़िस्म के लोग होते हैं ‘राज करने वाले’ भी। ये दवा देने का दिखावा… Read More
भारत अपनी संस्कृति, मिलनसारता और अपनत्त्व के लिए जाना जाता है। इसलिए क्योंकि शायद बचपन… Read More
भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने एटीएम से नगद पैसा निकालने की सुविधा को महँगा कर… Read More