भारत के लोग बैठकों में समय पर नहीं आते, ये ‘आम धारणा’ सही है या ग़लत?

निकेश जैन, इन्दौर मध्य प्रदेश

भारत के लोग आधिकारिक बैठकों में समय पर नहीं आते, यह एक ‘आम धारणा’ है। लेकिन क्या यह सही है? ज़वाब को दो उदाहरणों से समझा जा सकता है। 

पहला – एक अमेरिकी कम्पनी के भारतीय मूल के वरिष्ठ अधिकारी ने भारतीय समयानुसार रात 9.30 बजे बैठक बुलाई। जबकि उसे अच्छी तरह पता था कि अधिकांश लोग शाम 7.00 बजे तक दफ़्तर से घर चले जाते हैं। तो, ठीक रात 9.30 बजे ऑनलाइन बैठक शुरू हुई। लेकिन लोग 9.35 बजे तक भी धीरे-धीरे उसमें शामिल होते रहे। इसके बाद उस भारतीय-अमेरिकी अधिकारी ने बेहद हल्की टिप्पणी की, “मुझे भारतीय संस्कृति के बारे में मालूम है। मैं जानता हूँ कि भारतीय लोग समय पर बैठकों में नहीं आते।” 

अब दूसरा मामला- उसी कम्पनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) ने भारतीय समयानुसार रात 11.00 बजे एक अन्य बैठक बुलाई। वह बैठक भारतीय समय के हिसाब से आधी रात के बाद 2.00 बजे तक चलनी थी। उसमें उपाध्यक्ष और उससे ऊपर के 40 अधिकारियों को सम्मिलित होना था। इनमें से लगभग सभी अमेरिकी अधिकारी थे। महज 3 ही भारतीय थे, जो रात 10.55 पर बैठक के लिए आ गए। जबकि कई अमेरिकी अधिकारी 11.15 तक भी बैठक में शामिल होते रहे। सीईओ ख़ुद 11.10 पर बैठक के लिए प्रकट हुए।

आते ही सीईओ ने एक साथी डेविड को सम्बोधित करते हुए कहा, “और डेविड, कल का खेल कैसा रहा?” ग़ौर करने लायक कि इस वक़्त उन्होंने ख़ुद के अपने अन्य अधिकारियों के देर से आने पर कोई टिप्पणी नहीं की। बल्कि वे पहले से आ चुके लोगों का बातों से मन बहलाने की कोशिश करते हुए नज़र आए। ऐसा क्यों? क्योंकि उनमें ख़ुद को या साथी अमेरिकी आधिकारियों को ‘लेटलतीफ़’ कहने का साहस नहीं था। 

मुझे लगता है, यहाँ अस्ल समस्या पता चल चुकी होगी? दरअस्ल, बैठकों में देर से आना कोई भारत की या किसी अन्य देशविशेष की समस्या नहीं है। यह वैश्विक समस्या है। दुनियाभर में पाई जाती है। इसे किसी देश या संगठन की संस्कृति से नहीं जोड़ा जा सकता। भारत की संस्कृति से तो क़तई नहीं।

अलबत्ता, कुछ लोगों, ख़ासकर पश्चिमी सोच रखने वालों (भले वे भारतीय मूल के ही क्यों न हों) को भारत और भारतीयों को क़मतर बताने की आदत ज़रूर लग चुकी है। मूल समस्या यही है। 

क्या लगता है? 

—— 

निकेश का मूल लेख 

Indians don’t join meeting on time!! Social issue? Fair observation or generalizing too much?

Scene 1- There was an all hands called by a US leader (who himself was an Indian-American) at 9:30PM IST fully knowing that a lot of people leave office at 7PM.

Zoom meeting started at 9:30PM but people kept joining till 9:35 PM. This US leader made a comment “I know the Indian culture and know Indians don’t join meeting on time”.

Scene 2 – There was a leadership meeting hosted by the CEO of the same company which would start at 11PM India time and would go till 2AM IST. There would be 40 leaders (All VP and above) join from US and there would be 3 leaders in India (all VP and above) join from India.

The 3 Indians would join that meeting at 10:55PM. The US folks would be trickling in till 11:15PM. At around 11:10PM this same Indian-American leader would chime in and ask – “Hey David, how was the game last night?”. He basically just threw a filler to keep folks occupied.

He didn’t have guts to say “Americans don’t join meeting on time”

Do you see the problem?

People not joining meeting on time is a universal issue and could be related to the culture of that organization. Please don’t make it an Indian issue.

Why? Because at Edurigo every meeting starts on time and we are very much an Indian company.

Thoughts?

—— 

(निकेश जैन, शिक्षण-प्रशिक्षण के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी- एड्यूरिगो टेक्नोलॉजी के सह-संस्थापक हैं। उनकी अनुमति से उनका यह लेख अपेक्षित संशोधनों और भाषायी बदलावों के साथ #अपनीडिजिटलडायरी पर लिया गया है। मूल रूप से अंग्रेजी में उन्होंने इसे लिंक्डइन पर लिखा है।)

——

निकेश के पिछले 10 लेख

41 – देखिए, मीडिया कैसे पक्षपाती तौर पर काम करता है, मेरे अनुभव का किस्सा है!
40 – ज़िन्दगी में कुछ अनुभव हमें विनम्र बना जाते हैं, बताता हूँ कैसे…पढ़िएगा!
39 – भारत सिर्फ़ अंग्रेजी ही नहीं बोलता!
38 – भारत को एआई के मामले में पिछलग्गू नहीं रहना है, दुनिया की अगुवाई करनी है
37 – क्रिकेट ने मुझे बहुत कुछ सिखाया, सबसे अहम ‘टीम वर्क’
36 – किसी की क्षमताओं को कम आँकना हमेशा ग़लत ही होता है!
35 – इकोसिस्टम तब बनता है, जब एक सफल इकाई दूसरी को सफल बनाने में लग जाए!
34 – ये कहना झूठ है कि जहाँ लड़ाई हो रही है, काम वहीं हो रहा है!
33 – कर्मचारियों से काम लेते हुए थोड़ा लचीलापन तो हर कम्पनी को रखना चाहिए, बशर्ते…
32 – …तब तक ओलिम्पिक में भारत को पदक न मिलें तो शिकायत मत कीजिए!

सोशल मीडिया पर शेयर करें
From Visitor

Share
Published by
From Visitor

Recent Posts

‘मायावी अम्बा और शैतान’ : किसी लड़ाई का फैसला एक पल में नहीं होता

वह रोध था, दुख के कारण आधा पगलाया हुआ सा। अभी जो भी उसके पास… Read More

7 hours ago

जंगल कम, पेड़ ज्यादा हो गए… मतलब? जंगली जानवरों के घर में इंसान ने घुसपैठ कर ली!

अभी बीते शनिवार, 21 दिसम्बर को केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने एक रिपोर्ट जारी की। ‘भारत… Read More

2 days ago

भाषा के पिछलग्गू हम! चौंकिए नहीं, यदि कभी NATURE ‘नटूरे’ और FUTURE ‘फुटूरे’ हो जाए!

पहले इस वीडियो को थोड़ा वक़्त दीजिए। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन का वीडियो है, ट्रेनों… Read More

4 days ago

‘देश’ को दुनिया में शर्मिन्दगी उठानी पड़ती है क्योंकि कानून तोड़ने में ‘शर्म हमको नहीं आती’!

अभी इसी शुक्रवार, 13 दिसम्बर की बात है। केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी लोकसभा… Read More

1 week ago

क्या वेद और यज्ञ-विज्ञान का अभाव ही वर्तमान में धर्म की सोचनीय दशा का कारण है?

सनातन धर्म के नाम पर आजकल अनगनित मनमुखी विचार प्रचलित और प्रचारित हो रहे हैं।… Read More

2 weeks ago