‘मैंनूँ की’ सिद्धान्त पर चलने वालों को कर्नाटक की इन बुजुर्ग माँ से प्रेरणा लेनी चाहिए

टीम डायरी

कर्नाटक में मेंगलुरू के पास एक जगह है मंडारा। वहाँ रहती हैं 70 साल की बुजुर्ग चन्द्रावती जी। इन्हें इस बुधवार, पाँच अप्रैल को भारतीय रेलवे ने विशेष रूप से सम्मानित किया है। जानते हैं क्यों? क्योंकि उन्होंने एक एक्सप्रेस ट्रेन को दुर्घटनाग्रस्त होने से बचाया। यह मामला इसी मार्च महीने की 21 तारीख का है। 

दरअस्ल, हुआ यूँ कि रेलवे ट्रैक से यही कोई 150 मीटर की दूरी पर मौजूद अपने घर में चन्द्रावती उस रोज दोपहर का खाना खाने के बाद आराम करने की तैयारी कर रही थीं। तभी उन्हें जोर के धमाके जैसी आवाज सुनाई दी। घर पर अकेली थीं। बेटा काम पर गया हुआ था और पौत्र पढ़ाई करने के लिए कॉलेज। जाहिर तौर पर ऐसे में वे घबरा गईं। कुछ गड़बड़ी की आशंका हुई। सो, वे झपटकर रेलवे ट्रैक की तरफ गईं। वहाँ उन्होंने रेल-पटरी पर बड़ा सा पेड़ गिरा हुआ देखा। उसे देखकर वे परेशान हो गईं। क्योंकि दोपहर बाद के इस वक्त में महज 10 मिनट बाद ही मुम्बई जाने वाली ट्रेन ‘मत्स्यगन्धा एक्सप्रेस’ मेंगलुरू से छूटने वाली थी। 

इस ट्रेन से चन्द्रावती जी के रिश्तेदार अक्सर आना-जाना करते हैं, इसलिए उन्हें इसके समय का अन्दाजा था। सो, उनका घबराना लाजिम था क्योंकि रेल-पटरी पर पड़ा हुआ पेड़ ट्रेन के दुर्घटनाग्रस्त होने का निश्चित कारण बनने वाला था। ऐसे में, उन्हें कुछ सूझा नहीं तो वे भागकर घर लौटीं। वहाँ से अपने पौत्र का लाल रंग का बरमूडा (पैंट) उठा लाईं और पटरी के पास आकर उसे जोर-जोर से लहराने लगीं। तभी गाड़ी सामने से आ गई। लेकिन खुशकिस्मती से ड्राइवर ने चन्द्रावती जी को देख लिया और समय रहते ट्रेन को गिरे हुए पेड़ के ठीक पहले रोक लिया। इससे हजारों यात्रियों की जान बच गई। बाद में करीब एक-सवा घंटे बाद ट्रेन रवाना हो सकी। 

हालाँकि कहानी यहाँ खत्म नहीं होती। क्योंकि अभी किसी को भी यह जानकर अचरज हो सकता है कि चन्द्रावती जी सिर्फ बुजुर्ग ही नहीं हैं, बल्कि दिल की मरीज भी हैं। उनका दिल का ऑपरेशन भी हो चुका है। यानी इस तरह की दौड़-भाग उनके लिए जानलेवा साबित हो सकती थी। लेकिन उन्होंने इसका ख्याल नहीं किया। बल्कि जान की बाजी लगाकर हजारों जिन्दगियाँ सुरक्षित बचा लेने को प्राथमिकता दी। 

यानी दूसरे शब्दों में कहें तो चन्द्रावती जी ने उन तमाम लोगों के लिए एक मिसाल कायम की है, जाे ‘मैनूँ की’ (मुझे क्या मतलब) वाले सिद्धान्त पर चला करते हैं। कोई जिए या मरे मैंनूँ की। बस्ती में आग लगे मैंनूँ की। कोई सड़क पर घायल अवस्था में पड़ा जिन्दगी और मौत से संघर्ष करता हो तो करता रहे मैनूँ की। किसी के साथ सरेआम मार-पीट, गुंडागर्दी होती है तो होती रहे मैनूँ की। किसी लड़की के साथ छेड़-छाड़ हो तो हो मैनूँ की…।

याद रखिएगा, इस तरह की सोच कोई बनाए रखना चाहे, न छोड़ना चाहे, तो वह ऐसा कर सकता है। ऐसे लोग चन्द्रावती जी के जैसी प्रेरक मिसालों से सीखना न चाहें, तो वह भी कर सकते हैं। उनकी जिन्दगी है, वे जैसे चाहे जिऍं। लेकिन यहीं ये भी तय मानिएगा कि ऐसी जिन्दगी के लिए वे कभी सम्मान नहीं हासिल कर सकेंगे। 

सोशल मीडिया पर शेयर करें
Neelesh Dwivedi

Share
Published by
Neelesh Dwivedi

Recent Posts

‘देश’ को दुनिया में शर्मिन्दगी उठानी पड़ती है क्योंकि कानून तोड़ने में ‘शर्म हमको नहीं आती’!

अभी इसी शुक्रवार, 13 दिसम्बर की बात है। केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी लोकसभा… Read More

3 days ago

क्या वेद और यज्ञ-विज्ञान का अभाव ही वर्तमान में धर्म की सोचनीय दशा का कारण है?

सनातन धर्म के नाम पर आजकल अनगनित मनमुखी विचार प्रचलित और प्रचारित हो रहे हैं।… Read More

5 days ago

हफ़्ते में भीख की कमाई 75,000! इन्हें ये पैसे देने बन्द कर दें, शहर भिखारीमुक्त हो जाएगा

मध्य प्रदेश के इन्दौर शहर को इन दिनों भिखारीमुक्त करने के लिए अभियान चलाया जा… Read More

6 days ago

साधना-साधक-साधन-साध्य… आठ साल-डी गुकेश-शतरंज-विश्व चैम्पियन!

इस शीर्षक के दो हिस्सों को एक-दूसरे का पूरक समझिए। इन दोनों हिस्सों के 10-11… Read More

1 week ago

‘मायावी अम्बा और शैतान’ : मैडबुल दहाड़ा- बर्बर होरी घाटी में ‘सभ्यता’ घुसपैठ कर चुकी है

आकाश रक्तिम हो रहा था। स्तब्ध ग्रामीणों पर किसी दु:स्वप्न की तरह छाया हुआ था।… Read More

1 week ago