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बेटी के नाम नौवीं पाती : मुझमें और अधिक मनुष्यता भरने के लिए शुक्रिया मेरी गिलहरी

दीपक गौतम, सतना मध्य प्रदेश

प्रिय मुनिया

मेरी लाडो! मैं तुम्हें यह पत्र तब लिख रहा हूँ, जब लगभग माहभर के लिए स्कूल जाने के बाद तुम्हारी छुट्टियाँ शुरू हो चुकी हैं। अब अगले सत्र से तुम्हारी कक्षाएँ फिर से प्रारम्भ होंगी। तुम्हारा मासूमियत से भरा दिल अब जाकर घर से बाहर की दुनिया से परिचय पा रहा है। इन एक महीनों में तुम्हारे अन्दर काफी बदलाव देखने को मिले हैं। अब तुम तोतली जबान से कुछ ज्यादा ही पटर-पटर बतियाने लगी हो। तुम्हारा शिकायतें करने का अन्दाज बदल गया है। तुमने बातें बनाना शुरू कर दिया है। ये जो भी है, बहुत खूबसूरत है। कभी-कभी लगता है कि तुम्हारे बचपन के ये सारे दिन रिकॉर्ड कर लेने चाहिए। बहरहाल मैं आज ये पत्र तुम्हारी जिद और इमोशनल ब्लैकमेलिंग को लेकर लिख रहा हूँ, ताकि ये भी दर्ज हो सके कि बच्चों के प्यार के आगे माँ-बाप किस कदर और किस हद तक बेबस हो जाते हैं। ये लाड़-प्यार भरे तुम्हारी परवरिश के सुनहरे पलों का एहसास तुम्हें शायद ये पत्र पढ़कर नहीं होगा, क्योंकि सन्तान प्राप्ति के बाद ही इस अनुभव से गुजरा जा सकता है। 

प्रिय मुनिया

मेरी लाडो! बीती बार 4 अप्रैल को जब तुम्हें पत्र लिखा था, तब मैं एक यात्रा में था। यह भी खूब संयोग है कि इस बार भी मैं एक दिवसीय यात्रा में ही हूँ। अक्सर तुम्हें पत्र लिखने का तभी सूझ पाता है, जब तुम मुझसे दूर होती हो। अप्रैल के शुरुआती सप्ताह में हम सब चार रोज के लिए वृन्दावन में थे। वहाँ तुम्हारे फेवरेट सिद्धू चाचू का शरणागत आश्रम से जनेऊ संस्कार था। तुम्हें तो शायद याद भी नहीं रहेगा कि साढ़े तीन साल की उम्र में तुमने कितना गदर काटा था। मेरी जान तुमने एक पग जमीन पर नहीं रखा। वृन्दावन के हर मन्दिर के दर्शन के वक्त तुम माँ-बाप और चाचू के कन्धे या गोदी पर ही चढ़ी रही हो। भले ही हम में से कोई चलते-चलते थककर चूर हो गया हो, तुम्हें तो बस गोदी पर ही रहना था। वहीं तुम्हारी उम्र के बच्चे हमें चलते-फिरते नजर आ रहे थे। लेकिन मजाल है कि तुम्हारा एक पग जमीन पर रख जाए। बरसाना में राधा रानी के मन्दिर की सीढ़ियों में तो तुमने अजब ही जिद पकड़ ली थी। मैं तुम्हें कन्धे पर लादकर सीढ़ियाँ चढ़ रहा था, लेकिन तुम्हें कन्धे पर नहीं बैठना था। मेरी छाती से चिपटकर गोदी में चलना था। मैं बहुत थक गया था और दर्द से कराह रहा था, क्योंकि वृन्दावन जाने के एक सप्ताह पहले ही अपने शॉप की सीढ़ियाँ उतरते वक्त पैर फिसल जाने के कारण कमर के बल गिर गया था। इससे मेरी ‘टेल बोन’ क्रैक हो गई थी। मेरा लापरवाह रवैया ही है कि उस वक्त मुझे ये पता भी नहीं था। मैंने डॉक्टर को व्हाट्सअप पर एक्सरे भेजकर इतिश्री कर ली थी। उन्होंने भी कहा था कि वैसे तो सब सही है, फिर भी एक बार एक्सरे की हार्डकॉपी दिखा देना। लेकिन वो मैं अभी 4 रोज पहले दिखा पाया हूँ। तब जाकर पता चला कि मुझे वजन नहीं उठाना है, पूरी तरह से झुकना नहीं है। लगभग वे तमाम परहेज जिनको मैं माहभर से दरकिनार करता चला आ रहा हूँ, अब करने हैं क्योंकि इस चोट को मै हल्के में ले रहा था। मुझे अपनी इस ‘चोट-पुराण’ पर कुछ नहीं लिखना था। लेकिन तुम्हें ये समझाने के लिए लिखना पड़ा कि अमूमन हर माँ-बाप कैसे अपना हर दर्द बच्चों की हँसी में घोल देते हैं।

प्रिय मुनिया 

मेरी लाडो! तुम्हें ये जानकर हैरानी होगी कि जब राधा रानी के मंन्दिर में चार पल के लिए मैंने तुम्हें नीचे उतारा और पाँव-पाँव सीढ़ी चढ़ाने लगा, तो तुमने रो-रोकर बुरा हाल कर दिया। आस-पास वाले दर्शनार्थियों की नजरों में मुझे गुनहगार साबित कर दिया। दूसरा ये कि तुमने आजकल एक नई लाइन रट ली है हमें इमोशनल ब्लैकमेल करने के लिए कि “पापा आप मुझे प्यार नहीं करते”। ना जाने ये लाइन तुमने कहाँ से सीखी है, लेकिन ये आजकल हमसे हर बात मनवाने का तुम्हारा सबसे अचूक हथियार है। अभी कल रात को ही सोते वक्त तुमने कहानी सुनाने की जिद की। मैं थकान भरे दिन के बाद नींद से भरी बोझिल आँखों को जबरन उघाड़ता हुआ कहानी सुना ही रहा था कि बार-बार मेरी आँख लग जा रही थी। जैसे ही मैं नींद की झोंके में आता, तुम हिलाकर कहती, “आप बोल क्यों नहीं रहे हो पापा। आप मुझसे प्यार नहीं करते।” बस, यही सुनकर मुझे नींद त्यागकर तुम्हारे सो जाने तक कहानी सुनानी पड़ी। ऐसे कई किस्से हैं, जिनके बारे में तुम्हें पहले भी थोड़ा बहुत लिख चुका हूँ। न जाने कितनी रातें तुमको सुलाने में जागते हुए बीत गई हैं। बड़ी मुश्किल से तुमने गोद में सोने की आदत छोड़ी है। नाहक ही रात-रातभर बैठकर पैरों से झुलाते हुए तुम्हें सुलाना पड़ता था। खुद अगर कमर से ऊपर के आधे शरीर को बिस्तर पर धकेलता था, तो तुम गिरेबान पकड़कर अपनी ओर खींच लेती थी। तुम्हारी ये सब आदतें हमें बताती हैं कि हमारे माँ-बाप ने भी यूँ ही रतजगा करके हमें पाला होगा। मुझे लगता है कि जीवन में जब ये अनुभव कोई भी संवेदनशील इंसान पाता है, तो अपने माता-पिता के प्रति और आदर से भर जाता है। वह पहले से थोड़ा और अधिक मनुष्य होने की चाह रखता है। उसका हृदय थोड़ी और करुणा व दया से भर जाता है। बस, इसीलिए मेरी जान मुझे थोड़ा और अधिक मनुष्य बनाने के लिए तुम्हारी सारी नादानियाँ माफ। तुम मेरी वो जादू की पोटली हो, जिससे हर रोज मुझे जिन्दगी के कुछ और खूबसूरत पल मिल ही जाते हैं। मुझमें थोड़ी सी और मनुष्यता भरने के लिए शुक्रिया मेरी गिलहरी।

– शेष समाचार अगले पत्र में। तुम्हें ढेर सारा प्यार और दुलार। 💝 

– लव यू मेरी जान ❣️ 😘

– तुम्हारा पिता 

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(दीपक मध्यप्रदेश के सतना जिले के छोटे से गाँव जसो में जन्मे हैं। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग से 2007-09 में ‘मास्टर ऑफ जर्नलिज्म’ (एमजे) में स्नातकोत्तर किया। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में लगभग डेढ़ दशक तक राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर, राज एक्सप्रेस और लोकमत जैसे संस्थानों में कार्यरत रहे। साथ में लगभग डेढ़ साल मध्यप्रदेश माध्यम के लिए रचनात्मक लेखन भी किया। इन दिनों स्वतंत्र लेखन करते हैं। बीते 15 सालों से शहर-दर-शहर भटकने के बाद फिलवक्त गाँव को जी रहे हैं। बस, वहीं अपनी अनुभूतियों को शब्दों के सहारे उकेर दिया करते हैं। उन उकेरी हुई अनुभूतियों काे #अपनीडिजिटलडायरी के साथ साझा करते हैं, ताकि वे #डायरी के पाठकों तक भी पहुँचें। ये लेख उन्हीं प्रयासों का हिस्सा है।)

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अपनी बेटी के नाम दीपक की पिछली चिटि्ठयाँ 

8- बेटी के नाम आठवीं पाती : तुम्हें जीवन की पाठशाला का पहला कदम मुबारक हो बिटवा
7- बेटी के नाम सातवीं पाती : हमारी चुप्पियाँ तुम्हारे इंतजार में हैं, तुम जल्दी आना….।
6 – बेटी के नाम छठवीं पाती : तुम्हारी मुस्कान हर दर्द भुला देती है
5- बेटी के नाम पाँचवीं पाती : तुम्हारे साथ बीता हर पल सुनहरा है
4. बेटी के नाम चौथी पाती : तुम्हारा होना जीवन की सबसे ख़ूबसूरत रंगत है 
3.  एक पिता की बेटी के नाम तीसरी पाती : तुम्हारा रोना हमारी आँखों से छलकेगा 
2. एक पिता की बेटी के नाम दूसरी पाती….मैं तुम्हें प्रेम की मिल्कियत सौंप जाऊँगा 
1. प्रिय मुनिया, मेरी लाडो, आगे समाचार यह है कि…

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