ऋषु मिश्रा, प्रयागराज उत्तर प्रदेश
मेरी कक्षा की सबसे पिछली सीट पर बैठने वाले दो बच्चे- निखिल और आदर्श l पिछली बेंच पर इसलिए क्योंकि दोनों अन्य बच्चों से लम्बे हैं। हालाँकि मेरा विश्वास है कि पीछे बैठने के बावजूद दोनों अपने काम में पीछे नहीं रहेंगे l निखिल को मैं हमेशा कहती, “और मेरा हीरो कैसा है?” आदर्श को कहती, “मेरा प्यारा बच्चा l” दोनों की प्रकृति एक-दूसरे के विपरीत। निखिल मेधावी बच्चों में एक और आदर्श सीधा-सादा…। सीखता तो है, लेकिन थोड़ा धीरेl
वैसे, कक्षा में एक मेधावी बच्चे के साथ एक धीमी गति से सीखने वाले बच्चे को बैठाना उपयुक्त बैठक व्यवस्था (seating arrangement) मानी जाती है l इससे बच्चों के अन्दर श्रेष्ठता और हीनता की भावना नहीं पनपती और शिक्षक को भी सहूलियत होती हैl खैर!
तो, लगभग 15 दिनों तक बच्चों को गणित में कोण के बारे में पढ़ाकर मैंने दूसरा पाठ पढ़ाना शुरू कर दिया थाl इसी बीच, एक दिन निखिल और आदर्श दोनों खुसुर-फुसुर कर रहे थे। उनकी शरारत में और बच्चे भी शामिल थे l मैंने कहा, “कुछ ज़्यादा ही शरारत हो रही है l” ज़वाब में आदर्श ने निखिल की शिकायत करते हुए कहा, “मैडम, कल ट्यूशन से लौटते समय निखिल ने पैर फँसा कर मुझे गिरा दिया l” मैंने गुस्से में निखिल की तरफ़ देखाl निखिल ने मासूमियत से ज़वाब दिया, “मैडम, हम तो इसे गिराकर यह समझा रहे थे कि देखो स्ट्रेट एंगल ऐसे बनता हैl” कक्षा के सारे बच्चे हँस दिए और मुझे तसल्ली हुई कि बच्चे पढ़ी हुई बातों को अपने खेल और मनोरंजन में शामिल कर रहे हैंl
अभी कुछ समय पहले फोन करने पर पता चला कि आजकल निखिल धान लगाने में मदद कर रहा है l वही बच्चा, जिसे मैं ‘हीरो’ कहती हूँ और जो मोबाइल से देखकर पूरी क्लास को lezim पीटी और dumbell पीटी सिखाता है l कोई भी craft work हो, एक बार में सीख जाता हैl नवोदय की परीक्षा उसने भी दी थी l परीक्षा के लिए जाते समय वैन में सबसे आगे बैठा था…, बिल्कुल शान्त। फिर जब नतीज़ा आया तो 90 के करीब नम्बर आए। लेकिन इतने पर चयन नहीं होना था, नहीं हुआ l
कभी-कभी हम शिक्षक, चाहकर भी बच्चों के लिए बहुत कुछ नहीं कर पाते l लेकिन जब तक वे हमारे पास हैं, तब तक उन्हें किताबी ज्ञान के अतिरिक्त प्यार, दुलार और परवा तो दे ही सकते हैं।
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(ऋषु मिश्रा जी उत्तर प्रदेश में प्रयागराज के एक शासकीय विद्यालय में शिक्षिका हैं। #अपनीडिजिटलडायरी की सबसे पुरानी और सुधी पाठकों में से एक। वे निरन्तर डायरी के साथ हैं, उसका सम्बल बनकर। वे लगातार फेसबुक पर अपने स्कूल के अनुभवों के बारे में ऐसी पोस्ट लिखती रहती हैं। उनकी सहमति लेकर वहीं से #डायरी के लिए उनका यह लेख लिया गया है। ताकि सरकारी स्कूलों में पढ़ने-पढ़ाने वालों का एक धवल पहलू भी सामने आ सके।)
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