मार्च आ गया है, निश्चित ही ब्याज़ आएगा, देर-अबेर, उम्मीद है, फिर,,,

संदीप नाइक, देवास, मध्य प्रदेश से, 5/3/2022

खूब नौकरियाँ पकड़ीं और छोड़ीं। मानो जीवन में यही सब करने के लिए पैदा हुआ था। लोग कहते हैं ईश्वर ने जब जन्म दिया है तो किसी उद्देश्य के साथ ही दिया होगा। संसार में महान और बड़ा काम करने के लिए। हम चौरासी लाख योनियों में भटककर आते हैं और अपने कर्मों से मनुष्य योनि पाने की यह पुण्याई अर्जित करते हैं। लेकिन मुझे कभी नहीं लगा यह। तनाव, अवसाद, त्रासदी और ज़िम्मेदारियों का बोझ उठाने की क़श्मकश में सुख का मुँह देखा ही नहीं कभी। हमेशा अपने आगे एक समस्या मुँह बाए खड़ी देखी। और जब तक इससे निजात पाता, तब तक अम्बार खड़ा मिलता समस्याओं का। जिन्दगी धूँ-धूँ जलते दानावल में पटकी जाती। जैसे, कोई सोद्देश्य यह कर रहा हो। यह सब इतना सहज हो गया वक़्त के साथ कि जब कभी भरपूर नींद आती है और कोई रूपहला स्वप्न देखकर मैं एकदम मुस्कुराते हुए उठता हूँ सुबह, तो लगता है लोग सही कहते होंगे कि बस अब मुक्ति मिलेगी, इस जन्म के बाद। फिर मृत्यु के पल की आहट से प्रफुल्लित हो जाता हूँ। नए सिरे से सब शुरू करने का मन करता है।

बैंक में बदस्तूर अब भी साल में दो बार ब्याज का रुपया 100-250 के रूप में आता है। उसकी ख़ुशी सर्वोपरि होती है। गैस सब्सिडी के 48 रुपए जब मिलते हैं, तो उसी गैस सिलिंडर के लिए हजार रुपए देने का दर्द भूल जाता हूँ। सब्जी के साथ थोड़ा सा ताजा मिला नि:शुल्क धनिया मन को ख़ुशी देता है। किराने के सामान के साथ जब एक थोड़ी मजबूत थैली में दुकानदार सामान देता है, उसके नाम-विज्ञापन वाली, तो बहुत जतन से उस थैली को लपेटकर रख देता हूँ। सम्हालकर कि इस थैली में ही जीवन के साथ विदाई होगी और अपने पाप–पुण्यों की गठरी इसमें रखूँगा तो ले जाने में सुविधा होगी। 

किसी बड़े माल में किसी सामान के साथ एक के साथ एक फ्री कुछ मिल जता है, तो लगता है कोई नजर न लगा दे। लॉटरी के टिकिट एक बार ख़रीदे थे महीने भर पर कभी कुछ हासिल नहीं हुआ, न किसी देवता ने कमबख़्त आकर सपने में कोई अबूझ नम्बर दिया। पर देवास के उस बड़े बाज़ार वाले बकोरे मास्टर से अब भी जलन रखता हूँ, जो फटे पाज़ामे पहनकर नियमित लॉटरी खरीदता था। एक दिन उसे देवता ने कहा कि यह नम्बर लो और उसकी 12 लाख की लॉटरी लग गई सन् 1974 में। उसने फिर यहीं पास के बांगर गाँव में मन्दिर बनवाया और लोग आज तक उसकी कहानी याद रखते हैं। उसके बाद उसकी सन्तानों ने सब बर्बाद कर दिया और सुना आजकल कहीं भीख माँगते हैं। अपने को यह भी फ़िक्र नहीं है। जब बीज ही नहीं दिए कहीं, तो क्या कोई ख़ाक करेगा उजाड़ और बर्बाद। 

बहरहाल अपने ढर्रे पर चलते हुए जीवन यहाँ तक घिसट ही गया है। और जितना कबाड़ा होना था, उससे ज्यादा तो भगवान भी क्या करेगा। इसलिए अब शिकायत नहीं और न दर्द है कोई। एक तरह से तटस्थ हो गया हूँ। सबको माफ़ कर दिया है। अपनी धुन में रहता हूँ। सब नाराज़ होते ही होंगे। पता नहीं, पर फ़र्क नहीं पड़ता अब मुझे। 

मार्च आ गया है। दो खाते हैं अब भी बैंक में। निश्चित ही ब्याज़ आएगा, देर-अबेर। 100-50 रुपए उन खातों में फिर ज़मा होंगे। उम्मीद है, फिर एक बार जीवन को उजले रूप में देख सकूँगा। कह सकूँगा कि अब भी बहुत कुछ अच्छाईयाँ संसार में बाकी हैं। सब कुछ ख़त्म नहीं हुआ है, सब कुछ निराशा जैसा नहीं है।
—– 
(संदीप जी स्वतंत्र लेखक हैं। यह लेख उनकी ‘एकांत की अकुलाहट’ श्रृंखला की 49वीं कड़ी है। #अपनीडिजिटलडायरी की टीम को प्रोत्साहन देने के लिए उन्होंने इस श्रृंखला के सभी लेख अपनी स्वेच्छा से, सहर्ष उपलब्ध कराए हैं। वह भी बिना कोई पारिश्रमिक लिए। इस मायने में उनके निजी अनुभवों/विचारों की यह पठनीय श्रृंखला #अपनीडिजिटलडायरी की टीम के लिए पहली कमाई की तरह है। अपने पाठकों और सहभागियों को लगातार स्वस्थ, रोचक, प्रेरक, सरोकार से भरी पठनीय सामग्री उपलब्ध कराने का लक्ष्य लेकर सतत् प्रयास कर रही ‘डायरी’ टीम इसके लिए संदीप जी की आभारी है।) 
—-  
विशेष आग्रह : #अपनीडिजिटलडयरी से जुड़े नियमित अपडेट्स के लिए डायरी के टेलीग्राम चैनल (लिंक के लिए यहाँ क्लिक करें) से भी जुड़ सकते हैं।  
—–
इस श्रृंखला की पिछली कड़ियाँ  ये रहीं :
48. एक समय ऐसा आता है, जब हम ठहर जाते हैं, अपने आप में 
47.सब भूलना है, क्योंकि भूले बिना मन मुक्त होगा नहीं
46. एक पल का यूँ आना और ढाढ़स बँधाते हुए उसी में विलीन हो जाना, कितना विचित्र है न?
45.मौत तुझसे वादा है…. एक दिन मिलूँगा जल्द ही
44.‘अड़सठ तीरथ इस घट भीतर’
43. ठन, ठन, ठन, ठन, ठन – थक गया हूँ और शोर बढ़ रहा है
42. अपने हिस्से न आसमान है और न धरती
41. …पर क्या इससे उकताकर जीना छोड़ देंगे?
40. अपनी लड़ाई की हार जीत हमें ही स्वर्ण अक्षरों में लिखनी है
39. हम सब बेहद तकलीफ में है ज़रूर, पर रास्ते खुल रहे हैं
38 जीवन इसी का नाम है, ख़तरों और सुरक्षित घेरे के बीच से निकलकर पार हो जाना
37. जीवन में हमें ग़लत साबित करने वाले बहुत मिलेंगे, पर हम हमेशा ग़लत नहीं होते
36 : ऊँचाईयाँ नीचे देखने से मना करती हैं
35.: स्मृतियों के जंगल मे यादें कभी नहीं मरतीं
34 : विचित्र हैं हम.. जाना भीतर है और चलते बाहर हैं, दबे पाँव
33 : किसी के भी अतीत में जाएँगे तो कीचड़ के सिवा कुछ नहीं मिलेगा
32 : आधा-अधूरा रह जाना एक सच्चाई है, वह भी दर्शनीय हो सकती है
31 : लगातार भारहीन होते जाना ही जीवन है
30 : महामारी सिर्फ वह नहीं जो दिखाई दे रही है!
29 : देखना सहज है, उसे भीतर उतार पाना विलक्षण, जिसने यह साध लिया वह…
28 : पहचान खोना अभेद्य किले को जीतने सा है!
27 :  पूर्णता ही ख़ोख़लेपन का सर्वोच्च और अनन्तिम सत्य है!
26 : अधूरापन जीवन है और पूर्णता एक कल्पना!
25 : हम जितने वाचाल, बहिर्मुखी होते हैं, अन्दर से उतने एकाकी, दुखी भी
24 : अपने पिंजरे हमें ख़ुद ही तोड़ने होंगे
23 : बड़ा दिल होने से जीवन लम्बा हो जाएगा, यह निश्चित नहीं है
22 : जो जीवन को जितनी जल्दी समझ जाएगा, मर जाएगा 
21 : लम्बी दूरी तय करनी हो तो सिर पर कम वज़न रखकर चलो 
20 : हम सब कहीं न कही ग़लत हैं 
19 : प्रकृति अपनी लय में जो चाहती है, हमें बनाकर ही छोड़ती है, हम चाहे जो कर लें! 
18 : जो सहज और सरल है वही यह जंग भी जीत पाएगा 
17 : विस्मृति बड़ी नेमत है और एक दिन मैं भी भुला ही दिया जाऊँगा! 
16 : बता नीलकंठ, इस गरल विष का रहस्य क्या है? 
15 : दूर कहीं पदचाप सुनाई देते हैं…‘वा घर सबसे न्यारा’ .. 
14 : बाबू , तुम्हारा खून बहुत अलग है, इंसानों का खून नहीं है… 
13 : रास्ते की धूप में ख़ुद ही चलना पड़ता है, निर्जन पथ पर अकेले ही निकलना होगा 
12 : बीती जा रही है सबकी उमर पर हम मानने को तैयार ही नहीं हैं 
11 : लगता है, हम सब एक टाइटैनिक में इस समय सवार हैं और जहाज डूब रहा है 
10 : लगता है, अपना खाने-पीने का कोटा खत्म हो गया है! 
9 : मैं थककर मौत का इन्तज़ार नहीं करना चाहता… 
8 : गुरुदेव कहते हैं, ‘एकला चलो रे’ और मैं एकला चलता रहा, चलता रहा… 
7 : स्मृतियों के धागे से वक़्त को पकड़ता हूँ, ताकि पिंजर से आत्मा के निकलने का नाद गूँजे 
6. आज मैं मुआफ़ी माँगने पलटकर पीछे आया हूँ, मुझे मुआफ़ कर दो  
5. ‘मत कर तू अभिमान’ सिर्फ गाने से या कहने से नहीं चलेगा! 
4. रातभर नदी के बहते पानी में पाँव डालकर बैठे रहना…फिर याद आता उसे अपना कमरा 
3. काश, चाँद की आभा भी नीली होती, सितारे भी और अंधेरा भी नीला हो जाता! 
2. जब कोई विमान अपने ताकतवर पंखों से चीरता हुआ इसके भीतर पहुँच जाता है तो… 
1. किसी ने पूछा कि पेड़ का रंग कैसा हो, तो मैंने बहुत सोचकर देर से जवाब दिया- नीला! 

सोशल मीडिया पर शेयर करें
Apni Digital Diary

Share
Published by
Apni Digital Diary

Recent Posts

तिरुपति बालाजी के लड्‌डू ‘प्रसाद में माँसाहार’, बात सच हो या नहीं चिन्ताजनक बहुत है!

यह जानकारी गुरुवार, 19 सितम्बर को आरोप की शक़्ल में सामने आई कि तिरुपति बालाजी… Read More

5 hours ago

‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह रो रहा था क्योंकि उसे पता था कि वह पाप कर रहा है!

बाहर बारिश हो रही थी। पानी के साथ ओले भी गिर रहे थे। सूरज अस्त… Read More

1 day ago

नमो-भारत : स्पेन से आई ट्रेन हिन्दुस्तान में ‘गुम हो गई, या उसने यहाँ सूरत बदल’ ली?

एक ट्रेन के हिन्दुस्तान में ‘ग़ुम हो जाने की कहानी’ सुनाते हैं। वह साल 2016… Read More

2 days ago

मतदान से पहले सावधान, ‘मुफ़्तख़ोर सियासत’ हिमाचल, पंजाब को संकट में डाल चुकी है!

देश के दो राज्यों- जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में इस वक़्त विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया चल… Read More

3 days ago

तो जी के क्या करेंगे… इसीलिए हम आत्महत्या रोकने वाली ‘टूलकिट’ बना रहे हैं!

तनाव के उन क्षणों में वे लोग भी आत्महत्या कर लेते हैं, जिनके पास शान,… Read More

5 days ago

हिन्दी दिवस :  छोटी सी बच्ची, छोटा सा वीडियो, छोटी सी कविता, बड़ा सा सन्देश…, सुनिए!

छोटी सी बच्ची, छोटा सा वीडियो, छोटी सी कविता, लेकिन बड़ा सा सन्देश... हम सब… Read More

6 days ago