“वे चाहते थे कि वह अपना खेत फौज को बेच दे। उसने मना कर दिया। इसके बाद एक हफ्ते के भीतर उन्होंने अफवाहें उड़ा दीं। उसे ‘फूका’ घोषित कर दिया गया। यानी ऐसी डायन, जिसके लिए कहीं कोई ठौर-ठिकाना नहीं होता। जो निम्न लोक के देवता ‘लोकी’ की पूजा करती है। जिसे बच्चों को खाने वाली और युवाओं को छीनकर ले जाने वाली कहा जाता है। इसीलिए उन्होंने उसे फाँसी पर लटका दिया। मेरे पास उसकी कोई निशानी तक नहीं बची, सिवाय इस एक चीज के…”
पटाला ने अपने गले में लटक रही नीले-हरे मनकों की माला पर हाथ फेरते हुए कहा। गाँव के एक पेड़ पर झूलती माँ की देह उसकी नजरों में तैर गई। उस दृश्य ने उसे आज बरसों बाद फिर दुख से भर दिया।
“बहुत ज्यादा जानने की उसने कीमत चुकाई थी”, खोई-खोई नजरों से दूर कहीं देखते हुए वह बोली, “जैसे एक दिन मैं भी चुकाऊँगी।”
“खैर छोड़ो, आज भैंस का सूप बनाते हैं।” एक मरी हुई भैंस की ओर इशारा करके उसने कहा।
“लेकिन पहले तुम्हें इसको आग में भूनना होगा।” इस तरह अंबा को नई जिम्मेदारी देकर पटाला अपने काढ़ों के लिए जरूरी तत्त्वों की नाप-तौल में व्यस्त हो गई। डोमोवई ने भी जँभाई ली और अपना सिर अपने विशाल पँजों पर रख दिया। जल्दी ही उसके खर्राटों में जंगल की दूसरी सभी आवाजें दब गईं।
अंबा को किसी तरह की मदद मिलती नहीं दिखाई दे रही थी। उसे सब कुछ खुद करना था। यह समझकर वह अपने काम में जुट गई। मोटा सा कपड़ा बिछाकर वह किसी तरह भैंस का शव खींचकर एक निश्चित जगह ले गई। रास्ते के पत्थर लंबे समय से घिसते जाने के कारण चिकने हो गए थे। इसलिए उसे भैंस का शव घसीटने में ज्यादा दिक्कत नहीं हुई। इसके बाद देवदार, सदाबहार, जैसे पेड़ों से उसने लकड़ियाँ भी खुद ही काटीं। फिर उसने पटाला की चौकस निगाहों के सामने ही एक बड़ी सी चिता बनाई। उस पर तब तक लकड़ियाँ रखीं, जब तक वह संतुष्ट नहीं हो गई। चिता तैयार होने के बाद उसने भैंस का शव उस पर रख दिया, जो हर गुजरते पल के साथ भारी होता जा रहा था। अंत में उसने लकड़ियों में आग लगा दी। भैंस के शरीर का अंदरूनी हिस्सा खुलने लगा। लाल-लाल माँस बाहर झाँकने लगा। कोई तरल पदार्थ भी बाहर बह निकला। उस पर झुंड के झुंड कीट-पतंगे भिनभिनाने लगे।
“जल्दी कर लड़की। मुझे भी बहुत भूख लगी है। लंबे समय से मैंने कुछ खाया नहीं है।”
लेकिन हवा बिलकुल नहीं चल रही थी। हवा में नमी भी थी। इस कारण लकड़ियाँ अच्छी तरह आग नहीं पकड़ पा रही थीं। इसीलिए भैंस के शरीर को काला होने में पूरी दोपहर लग गई। और एक पूरा दिन उसे राख में तब्दील होने में बीत गया। इस बीच, अंबा ने लगातार उस निगाह रखी। तब तक, जब तक कि आखिरी लौ भी शांत नहीं हो गई। धीरे-धीरे पूरा माहौल मगुए के फल की मदहोश करने वाली गंध से भर गया। सुबह भूने गए गूदेदार लाल माँस में इस फल का रस मिलाया जाने वाला था। इतने में ही अंबा को किसी के भिनभिनाने की तेज आवाज सुनाई दी। उसने चौंककर ऊपर देखा तो फूले हुए पेट वाला बड़ा सा भँवरा गर्मी से सफेद हो चुकी मोटी परत वाली दीवार पर बैठने को तैयार था। वहाँ बड़ा सा अलाव जल रहा था। फिर भी कोनों के आस-पास कुछ परछाइयाँ नजर आने लगी थीं।
“खाओ। आत्माओं को भोजन की जरूरत है। तुम्हारे भीतर की पारलौकिक शक्तियों का मामला अलग है। उनके साथ तुम्हें जो भी करना है, तुम जानो।” पटाला ने कुछ इस तरह कहा कि अंबा का खून जम सा गया। कुछ अनहोनी होने वाली थी। दूर कहीं से पंछियों के चीखने जैसी आवाजें सुनाई देती थीं। कम से कम शुरू में वे आवाजें पंछियों जैसी ही लगती थीं। अंबा को गरदन के पीछे अपने बाल हिलते हुए महसूस हुए। रक्त और विश्वास। और कुरबानी। अंबा को यह सोचकर ही डर लग रहा था कि यह उपहार न जाने उससे क्या कीमत वसूलने वाला है।
#MayaviAmbaAurShaitan
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(नोट : यह श्रृंखला एनडीटीवी की पत्रकार और लेखक ऋचा लखेड़ा की ‘प्रभात प्रकाशन’ से प्रकाशित पुस्तक ‘मायावी अंबा और शैतान’ पर आधारित है। इस पुस्तक में ऋचा ने हिन्दुस्तान के कई अन्दरूनी इलाक़ों में आज भी व्याप्त कुरीति ‘डायन’ प्रथा को प्रभावी तरीक़े से उकेरा है। ऐसे सामाजिक मसलों से #अपनीडिजिटलडायरी का सरोकार है। इसीलिए प्रकाशक से पूर्व अनुमति लेकर #‘डायरी’ पर यह श्रृंखला चलाई जा रही है। पुस्तक पर पूरा कॉपीराइट लेखक और प्रकाशक का है। इसे किसी भी रूप में इस्तेमाल करना कानूनी कार्यवाही को बुलावा दे सकता है।)
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पुस्तक की पिछली 10 कड़ियाँ
50 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : उसे लगा, जैसे किसी ने उससे सब छीन लिया हो
49 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : मात्रा ज्यादा हो जाए, तो दवा जहर बन जाती है
48 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : डायनें भी मरा करती हैं, पता है तुम्हें
47 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह खुद अपना अंत देख सकेगी… और मैं भी!
46 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : उसने बंदरों के लिए खासी रकम दी थी, सबसे ज्यादा
45 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : हाय हैंडसम, सुना है तू मुझे ढूँढ रहा था!
44 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : “मुझे डायन कहना बंद करो”, अंबा फट पड़ना चाहती थी
43 – मायावी अम्बा और शैतान : केवल डायन नहीं, तुम तो लड़ाकू डायन हो
42 – मायावी अम्बा और शैतान : भाई को वह मौत से बचा लाई, पर निराशावादी जीवन से….
41 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : अनुपयोगी, असहाय, ऐसी जिंदगी भी किस काम की?
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