ऋचा लखेड़ा, वरिष्ठ लेखक, दिल्ली
नकुल जानता था कि वह बागियों के दल में सक्रिय सदस्य के तौर पर शामिल होने के लिए कभी पूरी तरह तैयार नहीं था। अभी सालभर पहले की ही तो बात है, जब वह तनु बाकर की अगुवाई वाले बागी दल में शामिल हुआ था। पुलिस के विरुद्ध हथियारबंद संघर्ष के लिए। क्योंकि उसके मन में भी चाहत थी कि वह किसी नायक की तरह देखा जाए। लेकिन एक साल तक मौत को चकमा देते रहने के बाद अब उसकी हिम्मत जवाब दे गई थी। उसका उत्साह जाता रहा था। सही मायनों में वह कभी इस लड़ाई में शामिल हो ही नहीं पाया था। और अब? अब तो वह थक चुका था ऐसी जिदंगी से। रोज़ सुबह खुद को पूरा सही सलामत पाकर भगवान को धन्यवाद देना। फिर हर वक्त इस डर में जीना कि वह अब भी उन्हीं हालात में है। मौत उसे कभी भी दबोच सकती है। सपने में उसे अब बम, जहरीली गैस की सुरंग, गोलियों के जख्म और चीथड़ों में तब्दील हो चुकीं लाशें दिखने लगी थीं। वह अच्छे ख्वाब देखना चाहता था। लेकिन दिखता क्या था कि वह किसी गहरे गड्ढे में गिर रहा है। उसके ऊपर लाशों का ढेर लगता जा रहा है। फिर अचानक विस्फोट होने लगते हैं। वह बिना हथियार, बिना गोला-बारूद के ही लड़ने की कोशिश करता है।… नहीं, नहीं, अब और नहीं। नकुल अब मौत की गंध, उसकी आहट और उसकी बातों से भी दूर भाग जाना चाहता था। और सबसे अव्वल तो वह उस, अपनी बहन अंबा की तरह बिलकुल भी नहीं बनना चाहता था। उसे अपने ऊपर तरस आने लगा था। उसे लगने लगा था कि उसको लोग गलत तरीके से इस्तेमाल कर रहे हैं। और वह उस दिशा में बढ़ रहा है, जहाँ मौत निश्चित है।
अलबत्ता, उस रात नकुल को किसी और बात ने परेशान किया था। घर लौटकर उसे कुछ अजीब सा नजारा दिखा था। उसे न केवल तारा कुछ उखड़ी-उखड़ी दिखाई दी थी, बल्कि घर में बहुत सारे तोहफे भी बिखरे हुए थे। ये तोहफे कहाँ से आए, किसने दिए, क्यों दिए, उसे कुछ समझ नहीं आया। तोहफों में एक सुंदर सी बछड़ी भी थी। आँगन में बँधी हुई थी। सुडौल शरीर, मजबूत कद-काठी और सींग ऊपर को तने हुए। यह सब देख उसने खुद से कहा था- नहीं, तारा बदचलन नहीं है। हालाँकि उसने कई बार उसे गाँव में दूसरे मर्दों के साथ हँसते-बतियाते देखा था, फिर भी। नकुल उससे सीधे सवाल करना चाहता था लेकिन उसके अपने स्वभाव ने उसे रोक दिया।
उसका स्वभाव तारा के मुकाबले बिलकुल उलट था। वह कभी सीधे किसी मुद्दे पर नहीं आता था। वह हमेशा कुछ न कुछ सोचता रहता था। खुद पर ही संदेह किया करता था। ये दोनों खासियतें चूँकि विरोधाभासी हैं, लिहाजा इनके नतीजे में उसके भीतर हर समय बेचैनी रहती थी। सो, उसने यह कहते हुए बात शुरू की कि उसकी हमेशा से वही इच्छा रही जो प्यार करने वाले हर इंसान की होती है। एक पत्नी, जो उसके कोमल स्वभाव को समझ सके, न कि ऐसी जिसका मन कहीं दूर अंधकार में डूबा हो। वह अपने हाथों में नाज़ुक सा चाँद चाहता था। लेकिन आज उसे ऐसा लगा, जैसे उसके हाथों में दहकता सूरज रखा हो।
“तुम अनमनी और कहीं खोई हुई सी लगती हो। तुम मेरे ज़िस्म के पार ऐसे देख रही हो जैसे मैं यहाँ हूँ ही नहीं। आखिर चल क्या रहा है?”
“हाँ, प्रिय”, उसने खोए-खोए ही कहा, “माफ करना, मैं सुन नहीं पाई, क्या कहा तुमने?” इस वक्त उसकी आँखें जैसे किसी छिपे अपराध-बोध के भार से झुकी जा रही थीं।
“मैंने आज तक ऐसी औरत नहीं देखी जो अपने पति के दूर होने पर भी इतनी खुश दिखाई देती हो। बशर्ते, उसे कोई और खुश न रख रहा हो।”
इस बात का पहले तो उसने कोई जवाब नहीं दिया। जैसे कुछ सुना ही न हो। नकुल के शब्द हवा में कहीं गुम हो गए हों।
फिर उसने कुछ तंज भरी हँसी के साथ कहा, “लगता है कि तुम फैसला कर चुके हो कि मैं अपराधी हूँ। मेरे लिए अब और कोई उम्मीद ही क्या है, जब मेरे पति को ही मुझ पर शक है तो?”
“तुमने मुझसे झूठ कहा कि यह बछड़ी तुम्हारे पिता ने तोहफे में दी है।”
यह सुनकर तारा खिलखिला उठी। उसकी हँसी में खनक थी लेकिन छल नहीं था। उसे ऐसे हँसते हुए देख वह हैरत में पड़ गया। उसे उम्मीद नहीं थी कि ऐसे आरोप पर वह यूँ हँसने लगेगी। इस वक्त उसका शरीर रहस्य के किसी आवरण में लिपटा हुआ लग रहा था। उसके भीगे बालों और ताजा साफ शरीर से दुधमुँहे बच्चे के जैसी खुशबू आ रही थी। यह देख नकुल के मन में प्रेम और ईर्ष्या की दो परस्पर विपरीत भावनाएँ पैदा हो गईं। उसका एक मन हुआ कि उसे जोर से चूम ले। फिर दूसरा मन हुआ कि उतनी ही जोर से उसका गला घोंट दे।
“ऐसा सफेद झूठ बोलने के बाद भी तुम्हारी इतनी हिम्मत कि तुम मुझ पर हँसो! मेरा तो ये सोच-सोचकर ही सिर फटा जा रहा है कि तुमने और न जाने क्या-क्या झूठ मुझसे बोले हैं।”
“दिमाग ठंडा रखो अपना। मैंने तुमसे कोई झूठ नहीं बोला है।” अपने रहस्य को दिल में ही छुपाए रखकर वह मुस्कुराते हुए बोली।
“यूँ मासूमियत का दिखावा मत करो। मेरी पीठ पीछे कौन है, जिसका दिल तुम्हारे लिए ऐसा पसीज रहा है? तुम पर इतनी दया दिखा रहा है?”
“मेरे पिता…..”
“तुम्हारे पिता ने तुम्हें ये उपहार नहीं दिए हैं,” नकुल बीच में ही बोल पड़ा, “मैं जानता हूँ क्योंकि मैंने उनसे पहले ही पूछ लिया था। तुम अब भी झूठ ही बोल रही हो। बोलो, चुप क्यों हो?”
“क्या बोलूँ मैं? मेरे बिना कुछ कहे ही तुम मुझ पर इतने आरोप लगा चुके हो। ओछी, बेहया, बेशर्म और न जाने क्या-क्या। ऐसा बताने में लगे हो कि मैं कोई बदचलन हूँ। ऐसे में क्या बोलूँ मैं? एक पल तुम मुझे पाक-साफ कहते हो और अगले ही पल दुत्कार देते हो, लांछन लगाते हो। एक पल मुझे प्यार करते हो, मेरे नाज उठाते हो और दूसरे ही पल प्रताड़ित करते हो। वह भी बेवजह!”
दोनों के बीच इस गरमा-गरम बहस के बाद कुछ देर तनाव भरी चुप्पी रही। तारा ने बिस्तर के एक कोने में खुद को समेट लिया। लेकिन उसकी आँखें अब भी नकुल पर गड़ी हुई थीं। जबकि नकुल के दिमाग में बे-सिर-पैर के विचार अब भी घुड़दौड़ कर रहे थे। उसके दिल को जख्म दिए जा रहे थे।
“खुद को बचाने के लिए अपने ये औरतों वाले छल-प्रपंच मत दिखाओ, मैंने तुम्हें पकड़ लिया है….।”
“मैं तंग आ चुकी हूँ तुमसे यार। सच सुनना चाहते हो न तुम? तो सुनो, बता ही देती हूँ- ये सब उपहार अंबा ने दिए हैं मुझे। तुम्हारी बहन ने। ये बछड़ी भी। उसने इसका नाम भी रखा है- कोरल। और तुम जानते हो तुम्हें क्यों नहीं बताया ये सब? क्योंकि मुझे पता है कि अंबा का नाम सुनते ही तुम कैसे तुनक जाते हो। इसीलिए ये उपहार लेने से पहले मैंने तुम्हारी इजाजत भी नहीं ली थी…।”
भौंचक रह जाने की बारी अब नकुल की थी।
—–
(नोट : यह श्रृंखला एनडीटीवी की पत्रकार और लेखक ऋचा लखेड़ा की ‘प्रभात प्रकाशन’ से प्रकाशित पुस्तक ‘मायावी अंबा और शैतान’ पर आधारित है। इस पुस्तक में ऋचा ने हिन्दुस्तान के कई अन्दरूनी इलाक़ों में आज भी व्याप्त कुरीति ‘डायन’ प्रथा को प्रभावी तरीक़े से उकेरा है। ऐसे सामाजिक मसलों से #अपनीडिजिटलडायरी का सरोकार है। इसीलिए प्रकाशक से पूर्व अनुमति लेकर #‘डायरी’ पर यह श्रृंखला चलाई जा रही है। पुस्तक पर पूरा कॉपीराइट लेखक और प्रकाशक का है। इसे किसी भी रूप में इस्तेमाल करना कानूनी कार्यवाही को बुलावा दे सकता है।)
—-
पुस्तक की पिछली कड़ियाँ
7- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : सुअरों की तरह हम मार दिए जाने वाले हैं!
6- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : बुढ़िया, तूने उस कलंकिनी का नाम लेने की हिम्मत कैसे की!
5. ‘मायावी अंबा और शैतान’ : “मर जाने दो इसे”, ये पहले शब्द थे, जो उसके लिए निकाले गए
4. ‘मायावी अंबा और शैतान’ : मौत को जिंदगी से कहीं ज्यादा जगह चाहिए होती है!
3 मायावी अंबा और शैतान : “अरे ये लाशें हैं, लाशें… इन्हें कुछ महसूस नहीं होगा”
2. ‘मायावी अंबा और शैतान’ : वे लोग नहीं जानते थे कि प्रतिशोध उनका पीछा कर रहा है!
1. ‘मायावी अंबा और शैतान’ : जन्म लेना ही उसका पहला पागलपन था
अभी इसी शुक्रवार, 13 दिसम्बर की बात है। केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी लोकसभा… Read More
देश में दो दिन के भीतर दो अनोख़े घटनाक्रम हुए। ऐसे, जो देशभर में पहले… Read More
सनातन धर्म के नाम पर आजकल अनगनित मनमुखी विचार प्रचलित और प्रचारित हो रहे हैं।… Read More
मध्य प्रदेश के इन्दौर शहर को इन दिनों भिखारीमुक्त करने के लिए अभियान चलाया जा… Read More
इस शीर्षक के दो हिस्सों को एक-दूसरे का पूरक समझिए। इन दोनों हिस्सों के 10-11… Read More
आकाश रक्तिम हो रहा था। स्तब्ध ग्रामीणों पर किसी दु:स्वप्न की तरह छाया हुआ था।… Read More