ऋचा लखेड़ा की पुस्तक ‘मायावी अंबा और शैतान’
ऋचा लखेड़ा, वरिष्ठ लेखक, दिल्ली
बाहर बारिश हो रही थी। पानी के साथ ओले भी गिर रहे थे। सूरज अस्त होने वाला था। उसकी लालिमा ने धरती को लाल कर दिया था। हवा में धुंध फैली थी। उसने पूरे वातावरण को अपनी आगोश में ले रखा था। बर्फीली हवा के झोंकों से जंगल का कोना-कोना काँप रहा था। नकुल एक खड़ी चट्टान के ऊपर, खाई से महज तीन फीट की दूरी पर था। वह बुरी तरह काँप रहा था। मानो, फिर हिम्मत जुटा रहा हो। हालाँकि उसकी हिम्मत उसे कई बार धोखा दे चुकी थी। वह हर बार जब भी खाई के पास जाता, तो वहाँ हवा और बारिश का इतना तेज झोंका उससे टकराता कि उसकी हिम्मत जवाब दे जाती। वहाँ जमीन पर हर तरफ बरसाती नालों और दलदलों का जाल सा बिछा हुआ था। उनमें बारिश के पानी के साथ होरी के पहाड़ों से बहकर आया पत्थर और बजरी का मलबा जमा था। रात में तो सर्द हवा वहाँ जैसे पेड़ों की पत्तियों को चीरती हुई चलती थी। खाई की तलहटी में बह रही नदी इस वक्त धुंध से ढँकी हुई थी।
सच में, पहाड़ों पर सर्दियों की बारिश से ज्यादा दुखदायी और कोई दौर नहीं होता। कभी यहाँ आसमान खुला होता है, तो कभी अचानक बूँदाबाँदी होने लगती है। कभी देखते ही देखते मूसलधार बारिश होने लगती है। जैसे अभी ही बारिश अचानक धीमी हो गई थी। इस कारण हर तरफ से बहते पानी का तेज आवाज साफ सुनाई देने लगी थीं। पेड़ों की शाखों से पानी की टप-टप की आवाजें आ रही थीं। एक पोखर से कीचड़ और सड़ी हुई वनस्पति की मिली-जुली गंध उठकर हर तरफ फैली हुई थी। उसके गंदे पानी की सतह पर किसी गाय का शव तैर रहा था।
ऐसे माहौल में सावधानी से आगे बढ़ते हुए नकुल चट्टान की सबसे ऊँची जगह पर जा पहुँचा। वहाँ से वह कुछ देर धुंध से ढँकी गहरी खाई को घूरता रहा हो। मानो उसकी गहराई नाप रहा हो। वह तय नहीं कर पा रहा था कि उसे सीधे यहीं से कूद जाना चाहिए या नदी के थोड़ा और पास जाकर कूदना चाहिए। उसे डर भी था कि कहीं वह चट्टानों से इधर-उधर टकराते हुए नीचे न गिरे। इससे वह हाथ-पैर, रीढ़-पसलियाँ तुड़वा लेगा। फिर हिंसक जानवरों का निवाला बनने तक लाचार पड़े रहना पड़ेगा। अलबत्ता, मौत तो निश्चित ही थी। इसीलिए हर बढ़ते कदम के साथ उसका डर भी बढ़ रहा था। इसी बीच, तेजी से कोहरा गहराने लगा। उसे कुछ कदम आगे देखने में भी मुश्किल होने लगी। उसके लिए अब तो यह निश्चित कर पाना और भी मुश्किल हो गया कि कूदने के बाद उसे मौत आएगी ही या नहीं।
दुविधा की स्थिति में उसे अपना मन बनाने में कुछ घंटे लग गए। फिर काफी सोचने के बाद उसने अपने गले में रस्सी का फंदा डाला और एक पेड़ के सबसे मोटे तने पर लटका दिया। उसकी आँखों से आँसू बहे जा रहे थे। वह रो रहा था क्योंकि वह जानता था कि कोई है, जो उसे सच्चे दिल से चाहता है। वह रो रहा था क्योंकि उसे पता था कि वह पाप कर रहा है। इस वक्त नमी सिर्फ उसकी आँखों में ही नहीं थी, दिल सिर्फ उसका भारी नहीं था, बल्कि वातावरण में फैली धुंध भी नमी के कारण भारी हो चुकी थी। मानो पूरा माहौल नकुल की भावना और मनोदशा के साथ हिल-मिल गया हो। उसकी आँखों के आगे अँधेरा छा गया था और वातावरण में भी कहीं कुछ दिखाई देना बंद सा हो गया था। सामने की ऊँची-ऊँची चट्टानें, आकाश, रास्ते, सब कहीं छिप गए थे। दिखाई देने बंद हो गए थे। अलबत्ता, वह अभी विचारों की जकड़न से बाहर निकल नहीं पाया था कि उसे सामने से तनु बाकर अपनी तरफ आता हुआ दिखाई दे गया।
“तुम! तुम यहाँ क्या कर रहे हो? तुम मेरे पीछे आ रहे थे क्या?”
नकुल ने जोर से जमीन पर पैर पटके। गुस्से में उसकी माँसपेशियाँ खिंच गईं। चेहरा उग्र हो गया। मुटिठयाँ इतनी जोर से भिंच गईं कि अँगुलियों के नाखून उसके अपने माँस में धँस गए।
“मैंने तुम्हें कहाँ-कहाँ नहीं ढूँढा। मुझे चिंता हो रही थी —”
“छूना मत मुझे – दूर रहो! मेरे पीछे आने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई!”
“मैं पीछा नहीं कर रहा हूँ नकुल। मुझे फिक्र है तुम्हारी। मैं तुम्हारे जीवन में ताका-झाँकी भी नहीं कर रहा हूँ क्योंकि मैं अपने लिए तुमसे भी तो यही अपेक्षा रखता हूँ। लेकिन तुम्हारे व्यवहार से मैं परेशान जरूर हूँ। तुम ये क्या कर रहे हो?”
इतना सुनते ही नकुल की त्यौरियाँ चढ़ गईं। उसके माथे पर गहरी शिकन और चेहरे पर तीखी घृणा के भाव दिखाई देने लगे। वह बुरी तरह चीख पड़ा।
“नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। तुम नहीं जानते कि तुम्हारे इस नफरत भरे व्यवहार से मुझे कितना दुख पहुँचा है। केवल इस कारण कि हमने कभी एक-दूसरे से प्यार किया था, तुम्हारे दिल में मेरे लिए इतनी नफरत? मेरे लिए तुम्हारे दिमाग में इतनी गलतफहमी? मैं सच में, बहुत दुखी हूँ और छला हुआ सा महसूस कर रहा हूँ।”
“मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी। दूर चले जाओ मुझसे!”
उसके बोलने के अंदाज से पूरा वातावरण काँप गया। गुस्से की तीव्रता में वह खुद भी काँप रहा था।
“क्यों? मैंने ऐसा क्या किया है, जिस कारण मुझे यह अनुचित व्यवहार सहन करना पड़े? तुम्हें लगता है कि मैंने तुम्हारा इस्तेमाल किया, है न? तो क्या मैं खुद भी इस्तेमाल नहीं हुआ? सच तो ये है कि मैं अब भी वही का वही हूँ। लेकिन तुम मेरे साथ अपनी दोस्ती को पूरी तरह खत्म करके पर्याप्त सजा दे चुके हो मुझे। पर मैं फिर कहता हूँ, क्या हम एक-दूसरे पर थोड़ी दया नहीं दिखा सकते? क्या हम—”
“बस, अब और एक शब्द नहीं। चुप हो जाओ। बिलकुल चुप।”
उसकी आवाज में इतनी कड़वाहट थी कि तनु बाकर पीछे हट गया। वह सहमी सी नजरों से उसे देखने लगा। उसके डर का एक कारण और भी था वैसे। उसे ऐसा एहसास हुआ था कि वहाँ वे सिर्फ दो लोग ही नहीं हैं, कोई और भी है।
#MayaviAmbaAurShaitan
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(नोट : यह श्रृंखला एनडीटीवी की पत्रकार और लेखक ऋचा लखेड़ा की ‘प्रभात प्रकाशन’ से प्रकाशित पुस्तक ‘मायावी अंबा और शैतान’ पर आधारित है। इस पुस्तक में ऋचा ने हिन्दुस्तान के कई अन्दरूनी इलाक़ों में आज भी व्याप्त कुरीति ‘डायन’ प्रथा को प्रभावी तरीक़े से उकेरा है। ऐसे सामाजिक मसलों से #अपनीडिजिटलडायरी का सरोकार है। इसीलिए प्रकाशक से पूर्व अनुमति लेकर #‘डायरी’ पर यह श्रृंखला चलाई जा रही है। पुस्तक पर पूरा कॉपीराइट लेखक और प्रकाशक का है। इसे किसी भी रूप में इस्तेमाल करना कानूनी कार्यवाही को बुलावा दे सकता है।)
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पुस्तक की पिछली 10 कड़ियाँ
63 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : पछतावा…, हमारे बच्चे में इसका अंश भी नहीं होना चाहिए
62 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह बहुत ताकतवर है… क्या ताकतवर है?… पछतावा!
61 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : रैड-हाउंड्स खून के प्यासे दरिंदे हैं!
60 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : अब जो भी होगा, बहुत भयावना होगा
59 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह समझ गई थी कि हमें नकार देने की कोशिश बेकार है!
58 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : अपने भीतर की डायन को हाथ से फिसलने मत देना!
57 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : उसे अब जिंदा बच निकलने की संभावना दिखने लगी थी!
56 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : समय खुशी मनाने का नहीं, सच का सामना करने का था
55 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : पलक झपकते ही कई संगीनें पटाला की छाती के पार हो गईं
54 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : जिनसे तू बचकर भागी है, वे यहाँ भी पहुँच गए है
53 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : तुम कोई भगवान नहीं हो, जो…
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प लगभग वह सब कर रहे हैं, जो उनसे अपेक्षित था।… Read More
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