ऋचा लखेड़ा, वरिष्ठ लेखक, दिल्ली
अंबा को यूँ सामने देखकर तनु बाकर के होश उड़ गए। अंबा जिस तरह से उसे घूर रही थी, उससे साफ था कि उसे गहरा सदमा लगा है। घबराहट और शर्म के कारण तनु जमीन में गड़ा जा रहा था। जैसे मछली साँस लेने के लिए मुँह खोलती-बंद करती है, वैसे ही वह भी बार-बार मुँह खोल और बंद कर रहा था। वह कुछ कहने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसे मुश्किल हो रही थी। उसका मुखौटा जो उतर चुका था।
“मैंने कभी किसी को नुकसान नहीं पहुँचाया। मैंने कभी उसका कोई नुकसान नहीं किया।” तनु बाकर ने पूरा साहस बटोरकर गिड़गिड़ाते हुए कहा। वह बार-बार गुहार लगाने लगा, “मुझे माफ कर दो, मुझे माफ कर दो।”
अंबा से दया की भीख माँग रहा था तनु, लेकिन वह चुप थी। उसकी चुप्पी भयानक लग रही थी। अंबा की नजरों में उसके लिए घृणा का भाव स्पष्ट दिख रहा था। वही भाव, जो किसी घिनौने जीव के लिए होता है। यह देखकर तनु के शरीर में झुरझुरी सी दौड़ गई। वह धम्म से जमीन पर बैठ गया। ठीक वैसे ही जैसे विस्फोट के बाद कार की टूटी खिड़कियों के काँच बिखर जाते हैं। उसके पैरों की ताकत खत्म हो चुकी थी।
इसी बीच, पहली बार नकुल की आँखें भी अंबा की नजरों से मिलीं। शुरू में कुछ क्षणों के लिए जैसे वे सब भूल गए। भावनाओं का ज्वार सा उमड़ आया। लेकिन जल्द ही नकुल उस अवस्था से बाहर आ गया। अंबा की आँखें उसे बता रही थीं कि उसका भेद खुल चुका है। इससे उसे अच्छा नहीं लगा। उसने मुँह फेर लिया।
“यह तुम्हारा मसला नहीं है।”
“नकुल, मेरी बात सुनो।”
“तुम यहाँ से चली जाओ! निकल जाओ यहाँ से!”
“उसने… उसने… हम दोनों के साथ धोखा किया है – हम दोनों को छला है।”
“लेकन तुमसे किसने मदद माँगी है? किसने? अब तुम वापस आ गई हो, तो आज तो इसका जश्न होगा? मेरे साथ जो हुआ या जो होगा, उसकी किसी को परवाह नहीं है।”
“यदि मैं जानती, अगर तुम मुझे बता देते —”
“तो क्या… क्या हो जाता? और मजाक बनने के लिए बताता? क्या तुम्हारे जैसी बहन होना कोई कम सजा है?”
“नकुल के साथ अपने संबंधों के लिए मैं माफी नहीं माँगूँगाI मैंने उससे सच्चा प्यार किया था….”
बीच में तनु बाकर की आवाज आई, लेकिन एकदम बुझी-बुझी सी। ऐसा लगा जैसे वह अपनी आवाज का भी बोझ नहीं उठा पा रहा है। एक व्यक्ति, जिसने बड़ी सावधानी से अपनी एक दुनिया बनाई थी, उसी की आँखों के सामने वह एक झटके में ध्वस्त हो चुकी थी।
“अंबा मैंने कभी उसे नुकसान नहीं पहुँचाया। मगर फिर भी मैं माफी माँगता हूँ। मुझे माफ कर दो। अब मैं तुम लोगों के सामने कभी नहीं आऊँगा। तुम मुझे कभी नहीं देखोगी। लेकिन अगर मैंने कभी भी तुम लोगों के साथ कुछ अच्छा किया हो, तो बस अपने मन की गहराइयों से उसी को याद रखना। सबके साथ न्याय करना, दूसरों को माफ कर देना तो तुम्हारी खासियत है न, यही तो……..
…….भड़ाक्………
अचानक तेज रोशनी के साथ हुए धमाके ने उनकी आँखें चौंधिया दीं, कान सुन्न कर दिए। धूल, मिट्टी का गुबार उठा और कंकड़-पत्थरों की बौछार सी होने लगी। अंबा तेजी से पीछे हटी। नकुल पेट के बल पहले ही लेट चुका था। अंबा भी अपने दोनों हाथों को सिर के ऊपर रखकर जमीन से सट गई। तभी उसे दर्द भरी चीखें सुनाई दीं। धूल का गुबार थोड़ा कम हुआ तो अंबा ने अपने शरीर से मिट्टी-गिट्टी की परत हटाई और चारों ओर देखा। पास ही तनु बाकर जमीन पर पड़ा छटपटा रहा था। उसके अंग क्षत-विक्षत हो चुके थे। कई अंगों की जगह बड़े-बड़े छेद नजर आ रहे थे। उसकी हालत बता रही थी कि अब कोई उसे बचा नहीं सकता था।
“पैर… पैर… इसका पैर कहाँ… है! इसका एक पैर कट गया।” नकुल घबराहट से हाँफते हुए बोला। तनु दर्द से बिलबिला रहा था। निराशा और पीड़ा भरी आँखों से वह खून से लथपथ अपने उस ठूँठ की ओर इशारा कर रहा था, जहाँ अभी कुछ देर पहले उसका दायाँ पैर हुआ करता था।
“क्या वह बच पाएगा?” अंबा ने नकुल से पूछा। लेकिन उसके जवाब को वह सुन नहीं सकी क्योंकि तनु बुरी तरह चीख रहा था। उसकी चीखें सुनकर उन लोगों का दिमाग सुन्न हुआ जाता था। उसकी दर्दनाक चीखें लगातार बढ़ती जा रही थीं। ऐसा लगता था, जैसे वे पूरे ब्रह्मांड में गूँज रहीं हों।
“नहीं… हे भगवान… हे भगवान… दया करो भगवान… —”
“नकुल चुप कराओ उसे”, अंबा ने धीरे से कहा, “पूरी घाटी सुन लेगी।”
लेकिन नकुल अचानक घटे इस घटनाक्रम से स्तब्ध था।
“नकुल रोको उसे!” अंबा ने फिर से कहा, लेकिन नकुल तो मानो जड़ हो चुका था। उधर, तनु बाकर की दिल चीर देने वाली चीखें तेज होती जा रही थीं।
“नकुल या तो तुम करो या फिर मैं अकेले करती हूँ और यह उसके लिए ज्यादा दर्दनाक होगा।”
उसके मुँह से जानवरों जैसी कराहें निकल रही थी। अंबा ने उसके मुँह पर अपना हाथ रखकर पहले उन आवाजों को दबाया। फिर नकुल ने उसके कटे हुए पैर की जगह एक कपड़ा बाँध दिया। उस जगह से पैर की हड्डी का एक हिस्सा बाहर झाँक रहा था। इसके बाद नकुल ने एक हाथ से उसके मुँह को दबाया और दूसरे से उसकी नाक बंद कर दी।
धीरे-धीरे तनु की चीखें और रुदन उसके गले के भीतर ही घुटकर शांत हो गया। उसके प्राणों ने शरीर छोड़ दिया। हालाँकि अंबा को अब भी भरोसा नहीं था कि तनु बाकर सच में, मर चुका है। इसका कारण यह था कि उसके कानों में, मस्तिष्क में तनु की चीखें अब तक पहले जैसी गूँज रही थीं।
“हमें अब चलना होगा, समय नहीं है — सुनो — इधर ध्यान दो! इसके लिए अब और समय नहीं है। हमें जल्द से जल्द यहाँ से निकलना होगा।”
“हमें उसको दफनाना चाहिए।” उदास खड़े नकुल ने जवाब दिया।
“नहीं”, अंबा बोली, “उन लोगों ने तनु की चीखें सुन ली होंगी। उजाला होते ही वे आ जाएँगे।” लेकिन नकुल कुछ नहीं बोला। वह तनु बाकर के शव के ऊपर झुक गया। जैसे उसके लिए दुआ कर रहा हो।
“हमें अब यहाँ से चलना होगा — हमें उसको यहीं छोड़ना होगा—,”
“नहीं.. मैं ये नहीं कर सकता। मैं उसे यहाँ ऐसे छोड़कर नहीं जा सकता! वह मुझसे प्यार करता था—! यूँ तो मुझे उससे नफरत करनी चाहिए, लेकिन मैं नहीं कर सकता। मैं खुद को उससे नफरत करने के लिए तैयार नहीं कर सकता। भले वह गलत था, लेकिन मुझसे प्यार करता था। सच्चा प्यार करता था। केवल इसीलिए मैं उसे माफ करता हूँ।” नकुल की आवाज दुख के बोझ से भारी हो गई। “मैं उसे इस हालत में नहीं छोड़ सकता।”
#MayaviAmbaAurShaitan
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(नोट : यह श्रृंखला एनडीटीवी की पत्रकार और लेखक ऋचा लखेड़ा की ‘प्रभात प्रकाशन’ से प्रकाशित पुस्तक ‘मायावी अंबा और शैतान’ पर आधारित है। इस पुस्तक में ऋचा ने हिन्दुस्तान के कई अन्दरूनी इलाक़ों में आज भी व्याप्त कुरीति ‘डायन’ प्रथा को प्रभावी तरीक़े से उकेरा है। ऐसे सामाजिक मसलों से #अपनीडिजिटलडायरी का सरोकार है। इसीलिए प्रकाशक से पूर्व अनुमति लेकर #‘डायरी’ पर यह श्रृंखला चलाई जा रही है। पुस्तक पर पूरा कॉपीराइट लेखक और प्रकाशक का है। इसे किसी भी रूप में इस्तेमाल करना कानूनी कार्यवाही को बुलावा दे सकता है।)
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पुस्तक की पिछली 10 कड़ियाँ
67 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : उस वासना को तुम प्यार कहते हो? मुझे भी जानवर बना दिया तुमने!
66 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : उस घिनौने रहस्य से परदा हटते ही उसकी आँखें फटी रह गईं
65 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : नकुल में बदलाव तब से आया, जब माँ के साथ दुष्कर्म हुआ
64 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह रो रहा था क्योंकि उसे पता था कि वह पाप कर रहा है!
63 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : पछतावा…, हमारे बच्चे में इसका अंश भी नहीं होना चाहिए
62 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह बहुत ताकतवर है… क्या ताकतवर है?… पछतावा!
61 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : रैड-हाउंड्स खून के प्यासे दरिंदे हैं!
60 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : अब जो भी होगा, बहुत भयावना होगा
59 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह समझ गई थी कि हमें नकार देने की कोशिश बेकार है!
58 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : अपने भीतर की डायन को हाथ से फिसलने मत देना!
“In a world that’s rapidly evolving, India is taking giant strides towards a future that’s… Read More
(लेखक विषय की गम्भीरता और अपने ज्ञानाभास की सीमा से अनभिज्ञ नहीं है। वह न… Read More
दुनिया में तो होंगे ही, अलबत्ता हिन्दुस्तान में ज़रूर से हैं...‘जानवरख़ोर’ बुलन्द हैं। ‘जानवरख़ोर’ यानि… Read More
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