ऋचा लखेड़ा, वरिष्ठ लेखक, दिल्ली
उसका शरीर अकड़ गया था। ऐसा लगता था जैसे उसने कोई पत्थर निगल लिया हो।
“तारा तुझे दिखता नहीं क्या? मुझे उसे बचाना चाहिए था। वह मुझे सबसे ज्यादा प्यार करती थी – अंबा से भी ज्यादा।”
नकुल की तकलीफ तारा से देखी नहीं जाती थी। सो, उसने अपनी आँखें बंद कर लीं। इधर नकुल बोले जा रहा था, “उसने खुद को जला लिया। पिताजी ने भी खुद को जला लिया। मैं वहीं था। मैंने कुछ नहीं किया। कुछ भी नहीं कर सका। मैं बर्फ की तरह जमा हुआ खड़ा रहा। मैं कुछ न कुछ कर सकता था। तो क्या उनकी मौत के लिए मैं भी जिम्मेदार नहीं हुआ?”
“अपने लिए इतना कठोर मत बन।”
“अंबा ने कभी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। किसी तरह की भावना जाहिर नहीं की। वह तो कभी रोई तक नहीं। पूरी जिंदगी मैं अंबा के लिए यही कामना करता रहा कि काश! यह सब उसके साथ हो जाता। वह मर जाती। मैं हमेशा उससे चिढ़ता रहा कि वह अब तक जिंदा क्यों है – और मैं उसे भी बचाने में विफल रहा।”
“तुम्हें पता है, मुझे हमेशा उससे जलन होती रही। वह जितना, जो भी जानती थी, मैं उससे ईर्ष्या करता था। उसकी अलौकिक शक्तियों और हौसले से मुझे जलन होती थी। लोग उसके बारे में जो कहते थे, उसे सुनकर मुझे जलन होती थी। मैं हमेशा ही उसे दोष देता रहा। जबकि वास्तव में दोषी तो मैं था। कमजोरियाँ कभी जीवन को उसकी सीमाओं से आगे ले जाने के लिए प्रेरित नहीं कर सकतीं —”
“शशश… चुप बिल्कुल”
“तू सही थी तारा। लेकिन अब बहुत देर हो गई है। कुछ भी करने के लिए बहुत देर हो चुकी है। सुधार करने के लिए बहुत देर हो गई है। मैं अब खत्म हो चुका हूँ।”
निराशा उस पर पूरी तरह हावी हो गई थी। उसे पता था कि उसने सच बोला है। हर गुजरते पल के साथ उसकी इच्छाशक्ति उसके हाथ से रेत की तरह फिसल रही थी।
“उसमें… उसमें.. तुम्हारी कोई गलती नहीं थी। जीवन और मौत हमारे हाथ में नहीं है —” तारा ने कहा।
“हाँ, तूने सही कहा। वह मेरी गलती नहीं हो सकती। काश! यही सच होता। और अंबा तो आधी डायन है – कौन जाने, उसने ही कहीं माँ को श्राप न दिया हो? उसने मुझे भी श्राप न दिया हो? तू बता, क्या लगता है तुझे? क्या ऐसा है? क्या यह सब उसका किया-धरा है?” नकुल की आवाज तेज हो गई थी।
नकुल का दर्द तारा से देखा नहीं गया तो इस बार उसने तुरंत मुँह फेर लिया। नकुल की नजर उस पर पड़ी तो वह खुद पर और शर्मिंदा हो गया। लेकिन उसने उसे दोष नहीं दिया।
वे दोनों घंटों तक एक-दूसरे के आलिंगन में बँधे रहे। फिर नकुल ने कहा कि वह अब आजाद होना चाहता है। वह क्रूर और निर्दयी होना चाहता है। अपनी कामवासना, इच्छाएँ और तमाम चीजों को खुद से दूर कर देना चाहता है। लेकिन शायद उसके लिए बहुत देर हो चुकी थी। वह थका हुआ दिखाई दे रहा था। तारा को डर था कि लंबी नींद से भी उसे अब सुकून नहीं मिलने वाला है।
“जीवन में एक समय था, जब मैं उम्मीद करता था कि दुनिया नई-नई चीजों से भरी हो। लेकिन फिर एक दिन ऐसा आया, जब मुझे एहसास हुआ कि ऐसा कुछ नहीं होने वाला। मेरा जीवन शून्यता से भरा है। खालीपन से भरा है। मैं, हालाँकि इसी शून्यता और खालीपन के बीच बड़ा हुआ हूँ, लेकिन अब भी अपना हाथ वहाँ तक बढ़ा सकता हूँ, जहाँ चीजें सही थीं। यादों को उस जगह मूर्त रूप में महसूस कर सकता हूँ।”
“तू कुछ भी बोल रहा है। मैं भगवान से दुआ करूँगी कि वह तुझे सुकून दें।”
तारा बड़े असमंजस में थी लेकिन उसने नकुल को कस कर थामे रखा। वह अपने आप से नफरत की आग में जल रहा था। बार-बार अँगुली से माथे पर आए पसीने को पोंछता जाता था। वह ख़ुद को किसी दब्बू कुत्ते की तरह महसूस कर रहा था, जो हमेशा पैरों के बीच पूँछ दबाकर चलता है। कान जिसके हमेशा नीचे की ओर गिरे रहते हैं। हमेशा किसी घटना या हमले की आशंका से जो आशंकित रहता है। थका हुआ, हकाला हुआ, अकेला, डरा और सहमा सा। होरी की धूसर चट्नों की तरह उसका रंग भी फीका हो गया था। इसी हाल में वह पूरी रात तारा की बगल में चुपचाप लेटा रहा। फिर पौ फटने से पहले ज्यादा कुछ कहे-सुने बिना ही कहीं चला गया। जाने से पहले उसने तारा के पेट के भीतर पैर चला रहे अपने होने वाले बच्चे को चूमा। वादा किया कि वह अपने बच्चे को जीवन में कभी कोई पछतावा नहीं होने देगा।
“पछतावा…” जाने से पहले उसके मुँह से उदासी में लिपटे सिर्फ यही शब्द निकले, “पछतावे में बहुत भयंकर और स्थायी सी ताकत है। हमारे बच्चे में इसका अंश भी नहीं होना चाहिए।”
#MayaviAmbaAurShaitan
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(नोट : यह श्रृंखला एनडीटीवी की पत्रकार और लेखक ऋचा लखेड़ा की ‘प्रभात प्रकाशन’ से प्रकाशित पुस्तक ‘मायावी अंबा और शैतान’ पर आधारित है। इस पुस्तक में ऋचा ने हिन्दुस्तान के कई अन्दरूनी इलाक़ों में आज भी व्याप्त कुरीति ‘डायन’ प्रथा को प्रभावी तरीक़े से उकेरा है। ऐसे सामाजिक मसलों से #अपनीडिजिटलडायरी का सरोकार है। इसीलिए प्रकाशक से पूर्व अनुमति लेकर #‘डायरी’ पर यह श्रृंखला चलाई जा रही है। पुस्तक पर पूरा कॉपीराइट लेखक और प्रकाशक का है। इसे किसी भी रूप में इस्तेमाल करना कानूनी कार्यवाही को बुलावा दे सकता है।)
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पुस्तक की पिछली 10 कड़ियाँ
62 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह बहुत ताकतवर है… क्या ताकतवर है?… पछतावा!
61 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : रैड-हाउंड्स खून के प्यासे दरिंदे हैं!
60 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : अब जो भी होगा, बहुत भयावना होगा
59 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह समझ गई थी कि हमें नकार देने की कोशिश बेकार है!
58 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : अपने भीतर की डायन को हाथ से फिसलने मत देना!
57 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : उसे अब जिंदा बच निकलने की संभावना दिखने लगी थी!
56 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : समय खुशी मनाने का नहीं, सच का सामना करने का था
55 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : पलक झपकते ही कई संगीनें पटाला की छाती के पार हो गईं
54 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : जिनसे तू बचकर भागी है, वे यहाँ भी पहुँच गए है
53 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : तुम कोई भगवान नहीं हो, जो…
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