ऋचा लखेड़ा, वरिष्ठ लेखक, दिल्ली
शाम को जब गोलीबारी थमी, तो लगा जैसे सब काल्पनिक सा घटा हो। झुलसे हुए और खून, धूल, मिट्टी के रंगों में रंगे हुए रास्ते पर पड़े लोग इस एहसास को बड़ी वजह दे रहे थे। शांत माहौल में तनावपूर्ण सहजता पसरी हुई थी। ऐसे में, कुछ समय के लिए उसे लगा कि वे सब निकलकर भाग सकते हैं। उसकी पीठ पर जब घुटने का दबाव पड़ा और उससे वह रेत में ज्यादा धँस गई, तब भी उसके जेहन में यही ख्याल था कि वे सब कहीं सुरक्षित भाग निकलने में कामयाब हो जाएँगे। लेकिन यह उसका भ्रम था, जो जल्द ही टूट गया। जब उसकी कलाईयों पर किसी ने लोहे की हथकड़ी डाली, तब उसे शक हुआ। सख्त, खुरदुरे हाथों ने उसे गाड़ी में पटक दिया था। इस वक्त पहली बार उसने माना कि उसे पकड़ लिया गया है और वह पूरी तरह अकेली है।
हमले के दौरान बंदूक से जब पहली गोली चली, तो नकुल का जैसे दिल ही बैठ गया। उसके जेहन में पहला ख्याल ही ये आया कि यहाँ से किसी तरह भाग निकले। भयंकर शोर और गर्जना के साथ हुए औचक हमले ने उसके भीतर दहशत भर दी थी। खाली पहाड़ी के उस पार से हमलावर सैनिकों के चिल्लाने की आवाजें और सैन्य साजो-सामान की गड़गड़ाहट सुनकर उसे यूँ लगा जैसे सभी हमलावरों को उसी पर हमले का हुक्म दे दिया गया हो। वह सोचने लगा कि अभी कोई गोली दनदनाती हुई आएगी और उसके गले या मुँह में धँस जाएगी। यह सोचकर डर के मारे उसके माथे पर पसीने की बूँदे छलक आईं। और तभी हमलावरों ने उसे देख भी लिया। अब तो जैसे गर्म लावे की शक्ल में दहशत ने उसके जिस्म को चारों तरफ से घेर लिया हो।
उसकी घिग्घी बँध गई और वह जितनी तेजी से भाग सकता था, भाग निकला। कुछ ही दूरी पर एक बड़े पेड़ से उसका कंधा टकराया और वह सिर के बल जमीन पर जा गिरा। चोट गहरी थी लेकिन फिर उठा और दोबारा पूरा जोर लगाकर भागा। रास्ते में कई बार इसी तरह गिरते-पड़ते वह भागा जा रहा था। उसके सिर के ऊपर से तेज आवाज करते हुए हथगोले गुजर रहे थे। यहाँ-वहाँ गिरकर फट रहे थे। लेकिन वह पेड़ों की आड़ लेकर भागता रहा। धारदार घास से ढँके फिसलन भरे नालों से गुजरते हुए, गिरे पेड़ों के ऊपर से कूदते-फाँदते हुए, वह बस भाग रहा था। यूँ मैदान छोड़कर भागने के कारण होने वाले उपहास की गूँज उसके कानों में सुनाई दे रही थी। लेकिन वह उसे भी अनसुना कर रहा था। भागते-भागते भी उसकी आँखें छिपने के लिए कोई सुरक्षित ठिकाना तलाश रही थीँ। कोई ऐसी अँधेरी जगह, जहाँ दुश्मन की निगाह से वह बच सके। तभी आखिरकार उसे एक खोह दिख गई, जिसमें उसके जैसा दुबला-पतला इंसान आराम से घुस सकता था। उसे देखते ही वह रेंगता हुआ उस खोह में भीतर जा घुसा। फिर उसने बाहर झाँक कर देखा। उसे पहाड़ से नीचे उतरती गाड़ियों की लंबी कतार नजर आई। उनकी हैडलाइटों को देखकर उसे ऐसा लगा जैसे कोई खूँख्वार जानवर अपनी दहकती आँखों से उसी को घूर रहा हो। यह देख उसके शरीर में एड्रेनलाइन हार्मोन्स का स्तर कम हो गया। गोलाबारी की वजह से पहाड़ी पर पैदा हुई गर्मी को वह सूरज की तपिश की तरह महसूस कर रहा था। उसके पैरों में भयंकर दर्द हो रहा था। धुएँ और जलते माँस की बदबू से उसका गला चोक हो गया। आँखें जलने लगीं। वह जानता था कि जले माँस की बदबू अब उसका कभी पीछ़ा नहीं छोड़ेगी।
तभी सनसनाते हुए गोले फिर बरसने लगे। उनमें से कुछ वहीं घास में फट गए। कुछ पेड़ों के बीच कहीं गायब हो गए। युद्ध की निशानियों के रूप में अपनी स्मृति दर्ज कराने के लिए। तभी, किसी फटे हुए बम का एक दहकता टुकड़ा उसकी बाँह को छूता हुआ गुजर गया। इससे उसके उतने हिस्से का माँस उधड़ गया। उसने अपने माँस को उबलता हुआ महसूस किया। उतना हिस्सा भुने हुए फल की तरह हो गया था। वह चीखा लेकिन चीख गले में ही अटक गई। धूल में समा गई हो जैसे। उसने इससे पहले इतना भयंकर दर्द कभी महसूस नहीं किया था। यह अकल्पनीय था उसके लिए। वह फिर भागा लेकिन बमुश्किल, क्योंकि छाती पर दबाव इतना ज्यादा था कि जैसे कोई क्रूर इंसान उसकी नाक और गले में लगातार राख भरता जाता हो। वह पसीने से तर-ब-तर था। गर्म पत्थरों की तपिश उसकी नाक में समाई हुई थी। आँखों की पुतलियाँ फट रही थीं। पर वह भागा जा रहा था। अपनी कायरता पर उसे लज्जा आ रही थी। नामर्दी पर गुस्सा आ रहा था। खुद पर दया आ रही थी।
चली गई वह। चली गई। उसकी गंध, उसकी निगाह, उसका हाड़-माँस, सब दूर हो गया अब। उसकी नजर के सामने ही आँखों पर पट्टी बाँधकर उसे ले जाया गया। उसे बुरी तरह पीटा गया। लेकिन वह, ये सब चुपचाप देखता रहा। उनको, उसे ले जाने दिया था उसने। अपनी यह दुष्टता उसके सीने में अब नश्तर की तरह चुभ रही थी उसे। खुद से नफरत होने लगी थी। पछतावे के आँसू उसकी आँखों से निकल कर लगातार गालों को भिगो रहे थे। लेकिन वह लड़खड़ाता हुआ अंधाधुंध भागा जा रहा था। और तब तक भागता रहा, जब तक सूरज आँखों से पूरी तरह ओझल नहीं हो गया। जंगल के अंधेरे में चमगादड़ों ने झुंड मँडराते हुए दिखने नहीं लगे।
वहाँ हर तरफ सन्नाटा था। दयनीय नैराश्य में घिरा हुआ नकुल सुबक रहा था। पहले धीरे-धीरे और फिर तभी उसने गला फाड़कर विलाप शुरू कर दिया। देर तक, दूर तक उसकी चीखें गूँजती रहीं। बहुत देर बाद यह सैलाब शांत हुआ, लेकिन सिसकियों से वह अब भी काँप रहा था। वहाँ चारों तरफ घुप अँधेरा था। गड़ढों में पड़ी जली, सड़ी लाशों की बदबू आ रही थी। लेकिन उसी हाल में, वहीं उसने रात बिताई और अगली सुबह वह अपनी कायरता के साथ तालमेल बिठाने की कोशिश में लग गया। पर एक बात थी, जिससे वह अब भी जूझ रहा था। अंबा से पीछा छूट जाने की हकीकत। वह समझ नहीं पा रहा था कि यह उसके लिए राहत का सबब है, या बेचैनी का।
—-
(नोट : यह श्रृंखला एनडीटीवी की पत्रकार और लेखक ऋचा लखेड़ा की ‘प्रभात प्रकाशन’ से प्रकाशित पुस्तक ‘मायावी अंबा और शैतान’ पर आधारित है। इस पुस्तक में ऋचा ने हिन्दुस्तान के कई अन्दरूनी इलाक़ों में आज भी व्याप्त कुरीति ‘डायन’ प्रथा को प्रभावी तरीक़े से उकेरा है। ऐसे सामाजिक मसलों से #अपनीडिजिटलडायरी का सरोकार है। इसीलिए प्रकाशक से पूर्व अनुमति लेकर #‘डायरी’ पर यह श्रृंखला चलाई जा रही है। पुस्तक पर पूरा कॉपीराइट लेखक और प्रकाशक का है। इसे किसी भी रूप में इस्तेमाल करना कानूनी कार्यवाही को बुलावा दे सकता है।)
—-
पुस्तक की पिछली 10 कड़ियाँ
18- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : ऐसे बागी संगठन का नेतृत्त्व करना महिलाओं के लिए सही नहीं है
17- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : सरकार ने उनकी प्राकृतिक संपदा पर दिन-दहाड़े डकैती डाली थी
16- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : अहंकार से ढँकी आँखों को अक्सर सच्चाई नहीं दिखती
15- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : ये किसी औरत की चीखें थीं, जो लगातार तेज हो रही थीं
14- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : मैडबुल को ‘सामाजिक कार्यकर्ताओं’ से सख्त नफरत थी!
13- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : देश को खतरा है तो हबीशियों से, ये कीड़े-मकोड़े महामारी के जैसे हैं
12- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : बेवकूफ इंसान ही दौलत देखकर अपने होश गँवा देते हैं
11- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : तुझे पता है वे लोग पीठ पीछे मुझे क्या कहते हैं…..‘मौत’
10- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : पुजारी ने उस लड़के में ‘उसे’ सूँघ लिया था और हमें भी!
9- ‘मायावी अंबा और शैतान’ : मुझे अपना ख्याल रखने के लिए किसी ‘डायन’ की जरूरत नहीं!
अभी इसी शुक्रवार, 13 दिसम्बर की बात है। केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी लोकसभा… Read More
देश में दो दिन के भीतर दो अनोख़े घटनाक्रम हुए। ऐसे, जो देशभर में पहले… Read More
सनातन धर्म के नाम पर आजकल अनगनित मनमुखी विचार प्रचलित और प्रचारित हो रहे हैं।… Read More
मध्य प्रदेश के इन्दौर शहर को इन दिनों भिखारीमुक्त करने के लिए अभियान चलाया जा… Read More
इस शीर्षक के दो हिस्सों को एक-दूसरे का पूरक समझिए। इन दोनों हिस्सों के 10-11… Read More
आकाश रक्तिम हो रहा था। स्तब्ध ग्रामीणों पर किसी दु:स्वप्न की तरह छाया हुआ था।… Read More