ऋचा लखेड़ा, वरिष्ठ लेखक, दिल्ली
खुद को सँभालने के लिए अंबा ने अपनी दोनों बाँहें शरीर के इर्द-गिर्द लपेट लीं। उसे उम्मीद नहीं थी कि कभी इस तरह भी कोई सच्चाई उसके सामने आएगी। वह बुरी तरह डर गई थी। लेकिन भयावह सच्चाई के उस प्रेत ने उसका पीछा नहीं छोड़ा। नया-नया भयावह रूप दिखाने लगा। अंबा हवा विपरीत दिशा में थी। इसलिए उसे उन दोनों की बातें सुनने के लिए अतिरिक्त जोर लगाना पड़ रहा था। उसने अब तक यह भी देख लिया था कि तनु बाकर के हाथ में बंदूक है। इसलिए वह पूरी सतर्कता भी बरत रही थी।
“तुम मुझे दोष नहीं दे सकते। मैंने सिर्फ तुमसे प्यार किया था। तुमने भी तो वही किया था।”
“शर्म! शर्म आती है मुझे तुम पर! उस वासना को तुम प्यार कहते हो? मुझे भी जानवर बना दिया तुमने! उससे भी ज्यादा शर्म की बात तो ये कि अपने कुकर्म की तुम चर्चा कर रहे हो!”
“तुम सबके सामने मेरा अपमान करोगे? मैं तो बरबाद हो जाऊँगा। एक बार मेरी कमजोरी सामने आ गई, तो लोगों के मन में मेरी क्या इज्जत रह जाएगी? कौन मेरी बात मानेगा? दुनियाभर का सम्मान भी मेरी खोई प्रतिष्ठा बहाल नहीं कर पाएगा! एक बार अगर लोग यह सब जान गए तो तुम मुझे मरा हुआ ही समझो! क्या तुम यही चाहते हो?”
“प्यार? सम्मान? तुम नेक बनने की कोशिश करते हो, जबकि तुम हो एक बीमार सोच वाले बूढ़े शख्स।”
“मैंने जिस पल तुम्हें पहली बार देखा, उसी वक्त तुमसे प्यार करने लगा थाI तुम भी जानते हो। और यह प्यार तुम्हारे शरीर के लिए नहीं था, बल्कि रिश्ते के लिए था। मैं अकेला था। अपने जैसे ही किसी दूसरे को तलाश रहा था।”
तनु बाकर का चेहरा दयनीय हो गया। नकुल ने उसे मुक्का मारकर पीछे धकेलना चाहा लेकिन वह चूक गया। वह गम में डूबा हुआ था। शराब के नशे में भी था। ऐसे में वह खुद ही लड़खड़ाकर गिर गया। तनु बाकर ने उसकी मदद के लिए हाथ बढ़ाया लेकिन नकुल ने उसका हाथ झटक दिया। नफरत से मुँह फेर लिया।
“मैं तुम्हारे जैसा नहीं हूँ! तुम पापी हो, ऐय्याश हो। भगवान करे, तुम अकेले ही मर जाओ। मरते वक्त तुम्हारी प्यारी अंबा भी तुम्हारे पास न हो। उसे तुम्हारी असलियत मालूम होनी चाहिए थी। हो सकता है, वह जानती हो! वह भी तो डायन ही है आखिर! वाह, क्या जोड़ी है तुम दोनों की!”
“तुमने उसे भला-बुरा कहकर ठुकरा दिया। कारण बताने या सफाई का मौका तक नहीं दिया उसे। उससे इस तरह का व्यवहार उचित नहीं था। वह बेहतर व्यवहार की हकदार है। तुम मुझसे नफरत कर सकते हो। मुझे दुत्कार सकते हो। अपमान कर सकते हो, जो तुमने किया भी। लेकिन सच यही है कि मैं तुमसे प्यार करता था, और अब भी करता हूँ—!”
तनु बाकर के शब्दों ने अंबा पर करारी चोट की थी। उसकी तरफ वे ऐसे लपके थे कि अगर वह इन तीखे शब्दों को अनसुना करने की कोशिश करती तो वे उसके शरीर में छोटे-छोटे छेद कर देते। वहाँ से खून रिसने लगता।
अंबा की छाती में भारी हूक सी उठी, जिसने उसके दिल की धड़कन की लय बदल दी। वह नकुल के नफरती स्वभाव का असल कारण जान गई थी। यह सोच-सोचकर अंबा का गला भरता जा रहा था कि आख़िर इतने सालों से नकुल क्यों हर समय खिंचा-खिंचा सा रहता था? वह क्यों अपने-आप में ही रहता था हमेशा? दीन-हीन, अलग-थलग, बेचारा सा क्यों दिखता था? कभी-कभी एकदम से बुरी तरह भड़क क्यों जाता था? कितना अकेला रहा होगा वह? कितना असहाय और गुस्से से भरा हुआ रहा होगा? उसका गुस्सा धूल की तरह महीन होकर उसके खून में समा गया था। नसों के जरिए शरीर के कोने-कोने में भर गया था।
इतना सब देखने, सुनने, सोचने और समझ लेने के बाद अंबा के लिए अब हर पल भारी पड़ने लगा। वह आड़ से बाहर आ गई और तनु बाकर के ठीक पीछे जा खड़ी हुई। आहट पाकर तनु ने उसकी ओर देखा तो उसे कुछ समझने-समझाने की जरूरत नहीं पड़ी। शर्म के कारण उसकी साँसें ऊपर-नीचे होने लगीं। चेहरे का रंग उड़ गया। आँखें फटी रह गईं। शरीर शिथिल हो गया और वह लड़खड़ाकर वहीं गिर पड़ा।
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#MayaviAmbaAurShaitan
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(नोट : यह श्रृंखला एनडीटीवी की पत्रकार और लेखक ऋचा लखेड़ा की ‘प्रभात प्रकाशन’ से प्रकाशित पुस्तक ‘मायावी अंबा और शैतान’ पर आधारित है। इस पुस्तक में ऋचा ने हिन्दुस्तान के कई अन्दरूनी इलाक़ों में आज भी व्याप्त कुरीति ‘डायन’ प्रथा को प्रभावी तरीक़े से उकेरा है। ऐसे सामाजिक मसलों से #अपनीडिजिटलडायरी का सरोकार है। इसीलिए प्रकाशक से पूर्व अनुमति लेकर #‘डायरी’ पर यह श्रृंखला चलाई जा रही है। पुस्तक पर पूरा कॉपीराइट लेखक और प्रकाशक का है। इसे किसी भी रूप में इस्तेमाल करना कानूनी कार्यवाही को बुलावा दे सकता है।)
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पुस्तक की पिछली 10 कड़ियाँ
66 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : उस घिनौने रहस्य से परदा हटते ही उसकी आँखें फटी रह गईं
65 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : नकुल में बदलाव तब से आया, जब माँ के साथ दुष्कर्म हुआ
64 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह रो रहा था क्योंकि उसे पता था कि वह पाप कर रहा है!
63 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : पछतावा…, हमारे बच्चे में इसका अंश भी नहीं होना चाहिए
62 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह बहुत ताकतवर है… क्या ताकतवर है?… पछतावा!
61 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : रैड-हाउंड्स खून के प्यासे दरिंदे हैं!
60 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : अब जो भी होगा, बहुत भयावना होगा
59 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह समझ गई थी कि हमें नकार देने की कोशिश बेकार है!
58 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : अपने भीतर की डायन को हाथ से फिसलने मत देना!
57 – ‘मायावी अम्बा और शैतान’ : उसे अब जिंदा बच निकलने की संभावना दिखने लगी थी!
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(लेखक विषय की गम्भीरता और अपने ज्ञानाभास की सीमा से अनभिज्ञ नहीं है। वह न… Read More
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