देशराज वर्मा जी से मिलिए, शायद ऐसे लोगों को ही ‘कर्मयोगी’ कहा जाता है

ऋषु मिश्रा, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश

कुछ दिनों पहले देशराज वर्मा सर से बात हुई। उनसे बातचीत का जिक्र इसलिए कर रही हूँ क्यूँकि निश्चित ही मेरी दृष्टि में उनकी गणना विरले व्यक्तियों में होनी चाहिए। सोशल मीडिया के माध्यम से उन्हें जाना था। उनकी फेसबुक वॉल पर उनकी पोस्ट देखकर पहले यही समझती थी कि वे एक शिक्षक हैं। मगर उनके साथ बातचीत से ज्ञात हुआ कि उनका शिक्षा विभाग से कोई नाता नहीं है और न ही वे पेशेवर शिक्षक हैं। सर पेशे से इंजीनियर हैं। 

हालाँकि सुबह ऑफिस जाने से पहले वे रोज एक विद्यालय में इंटरमीडिएट के वंचित वर्ग के बच्चों को निःशुल्क पढ़ाते हैं। शाम को ऑफिस से लौटने के बाद पुनः उसी विद्यालय में बच्चों को समय देते हैं। यह जानकर मेरे मुँह से अनायास  ही निकल गया, “सर! आप जैसे व्यक्तित्त्व पर तो मूवी बननी चाहिए।” उनकी दो बच्चियाँ हैं। दोनों ही देश के सर्वश्रेष्ठ संस्थानों एम्स और आईआईटी से पढ़कर अपने उज्जवल भविष्य की तरफ बढ़ रही हैं। यह सब जानकर, सुनकर हृदय नई ऊर्जा और स्फूर्ति से भर गया है।

यह प्रसंग इसलिए बताना उचित समझा कि एक तरफ कुछ लोग हैं जो अपनी ड्यूटी के दौरान 10 मिनट भी अतिरिक्त काम करना पसंद नहीं करते। वहीं दूसरी तरफ वर्मा सर जैसे लोग हैं। शायद ऐसे लोगों को ही ‘कर्मयोगी’ कहा जाता है। शिक्षा विभाग में तो इनकी कोई सर्विस बुक नहीं होगी। लेकिन ईश्वर ने अपनी सर्विस बुक में इनके लिए सर्वोत्तम अंकों की व्यवस्था अवश्य की होगी।

बस, इतना कहना पर्याप्त है कि उनकी प्रशंसा के लिए शब्द नहीं हैं मेरे पास। 🙏🌻
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(नोट : #अपनीडिजिटलडायरी ने देशराज की फेसबुक प्रोफाइल से जाना कि वे राजस्थान के हिंडौन शहर से ताल्लुक रखते हैं। इस समय जयपुर में रह रहे हैं। वहीं पर वे इस महती कार्य को निरन्तरता से किए जा रहे हैं। यहाँ दी गई तस्वीरें भी उनकी फेसबुक वॉल से ही ली गई हैं। इसके लिए डायरी उनकी आभरी है।)
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(ऋषु मिश्रा जी उत्तर प्रदेश में प्रयागराज के एक शासकीय विद्यालय में शिक्षिका हैं। #अपनीडिजिटलडायरी की सबसे पुरानी और सुधी पाठकों में से एक। वे निरन्तर डायरी के साथ हैं, उसका सम्बल बनकर। वे लगातार फेसबुक पर अपने स्कूल के अनुभवों के बारे में ऐसी पोस्ट लिखती रहती हैं। उनकी सहमति लेकर वहीं से #डायरी के लिए उनका यह लेख लिया गया है। ताकि सरकारी स्कूलों में पढ़ने-पढ़ाने वालों का एक धवल पहलू भी सामने आ सके।)
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ऋषु जी के पिछले लेख 

5- हो सके तो इस साल सरकारी प्राथमिक स्कूल के बच्चों संग वेलेंटाइन-डे मना लें, अच्छा लगेगा
4- सबसे ज़्यादा परेशान भावनाएँ करतीं हैं, उनके साथ सहज रहो, खुश रहो
3- ऐसे बहुत से बच्चों की टीचर उन्हें ढूँढ रहीं होगीं 
2- अनुभवी व्यक्ति अपने आप में एक सम्पूर्ण पुस्तक होता है
1-  “मैडम, हम तो इसे गिराकर यह समझा रहे थे कि देखो स्ट्रेट एंगल ऐसे बनता है”

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Neelesh Dwivedi

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