ऋषु मिश्रा, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश
मैं ट्रेनिंग में थी l मेरे आगे की पंक्ति में एक सीनियर मैडम बैठी थीं। चर्चा कर रहीं थीं अपने अगल-बगल बैठी महिला शिक्षिकाओं से। वे कह रहीं थीं, “पहले का ज़माना ही ठीक था। पुरुष नौकरी करते थे। वित्तीय जिम्मेदारियाँ उनकी होतीं थीं और महिलाएँ सुकून से घर घर-परिवार सँभालती थींl” मुझे भी कुछ हद तक उनकी बात सही लगी।
उसी दिन ट्रेनिंग खत्म होने पर मैं लौटते समय एक जगह ठहर जाती हूँ l कुछ पुरुष शिक्षक बैठे हैं। मैं उनसे विद्यालय के ग्रान्ट से सम्बन्धित कुछ प्रश्न पूछ रही हूँ। तभी बात सैलरी पर आ जाती है। मैं कहती हूँ, “सैलरी का मैसेज मेरा प्रिय है। चाहे महीने की किसी भी तारीख को आए।” जबकि सर कहते हैं, “ऐसा उन्हीं के साथ सम्भव है, जिनके यहाँ दो इंजन की गाड़ी है। अर्थात् पति-पत्नी दोनों कमा रहें हैं l हम जैसे लोग तो अपनी तनख्वाह का ठीक समय पर ही इंतिजार किया करते हैं। महीने के शुरू दिनों में ही।”
मैं तब से रोज सोचती हूँ कि मैडम और सर दोनों के विचार अपनी-अपनी जगह सही हैं। लेकिन हम दोनों विचारों को एक साथ अपने जीवन पर लागू नहीं कर सकते l महिलाओं को घर-बाहर दोनों सँभालना है तो अतिरिक्त श्रम करना ही पड़ेगा और पुरुषों को यदि आर्थिक आश्वस्ति चाहिए तो उन्हें महिलाओं के लिए मदद का हाथ आगे बढ़ाना होगा l
बस, जीवन की गाड़ी ऐसे ही चलती रहनी चाहिए।🌻🍀
—–
(ऋषु मिश्रा जी उत्तर प्रदेश में प्रयागराज के एक शासकीय विद्यालय में शिक्षिका हैं। #अपनीडिजिटलडायरी की सबसे पुरानी और सुधी पाठकों में से एक। वे निरन्तर डायरी के साथ हैं, उसका सम्बल बनकर। वे लगातार फेसबुक पर अपने स्कूल के अनुभवों के बारे में ऐसी पोस्ट लिखती रहती हैं। उनकी सहमति लेकर वहीं से #डायरी के लिए उनका यह लेख लिया गया है। ताकि सरकारी स्कूलों में पढ़ने-पढ़ाने वालों का एक धवल पहलू भी सामने आ सके।)
——
ऋषु जी के पिछले लेख
8- यात्रा, मित्रता और ज्ञानवर्धन : कुछ मामलों में पब्लिक ट्रांसपोर्ट वाकई अच्छा है
7- जब भी कोई अच्छा कार्य करोगे, 90% लोग तुम्हारे खिलाफ़ होंगे
6- देशराज वर्मा जी से मिलिए, शायद ऐसे लोगों को ही ‘कर्मयोगी’ कहा जाता है
5- हो सके तो इस साल सरकारी प्राथमिक स्कूल के बच्चों संग वेलेंटाइन-डे मना लें, अच्छा लगेगा
4- सबसे ज़्यादा परेशान भावनाएँ करतीं हैं, उनके साथ सहज रहो, खुश रहो
3- ऐसे बहुत से बच्चों की टीचर उन्हें ढूँढ रहीं होगीं
2- अनुभवी व्यक्ति अपने आप में एक सम्पूर्ण पुस्तक होता है
1- “मैडम, हम तो इसे गिराकर यह समझा रहे थे कि देखो स्ट्रेट एंगल ऐसे बनता है”।
बाहर बारिश हो रही थी। पानी के साथ ओले भी गिर रहे थे। सूरज अस्त… Read More
एक ट्रेन के हिन्दुस्तान में ‘ग़ुम हो जाने की कहानी’ सुनाते हैं। वह साल 2016… Read More
देश के दो राज्यों- जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में इस वक़्त विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया चल… Read More
तनाव के उन क्षणों में वे लोग भी आत्महत्या कर लेते हैं, जिनके पास शान,… Read More
छोटी सी बच्ची, छोटा सा वीडियो, छोटी सी कविता, लेकिन बड़ा सा सन्देश... हम सब… Read More
शीर्षक को विचित्र मत समझिए। इसे चित्र की तरह देखिए। पूरी कहानी परत-दर-परत समझ में… Read More