टीम डायरी, 24/7/2021
भारत की समृद्ध गुरु-शिष्य परम्परा अगर कहीं अब भी अपने श्रेष्ठ स्वरूप (कुछ अगर-मगर छोड़ दें, तो बहुतायत) में है तो वह या तो आध्यात्म का क्षेत्र है या संगीत का। इसमें संगीत की बात करें तो सालों-साल की साधना से अपनी विधा में जो शिष्य थोड़े पक जाते हैं, वे अक्सर अपनी तैयारी के प्रदर्शन से गुरु/गुरुओं को स्वरांजलि, आदरांजलि दिया करते हैं।
बंगाल की स्वरसाधिका पियाली दास ने भी यही किया। उन्होंने एक मशहूर गज़ल की कुछ पंक्तियाँ गाकर अपने गुरुओं- श्री बिमल मित्रा जी और श्रीमति ऋद्धि बंदोपाध्याय जी को स्वरांजलि दी है। पियाली ने हिंदुस्तानी उपशास्त्रीय (SemiClassical) संगीत के ठुमरी, गज़ल, भजन आदि स्वरूपों का प्रशिक्षण श्री मित्रा से लिया है। जबकि नाट्य संगीत ( Theatre Music) की बारीकियाँ श्रीमति बंदोपाध्याय से सीखी हैं। इनसे पियाली ने कितना-क्या सीखा है, यह इस गज़ल में उनके सुरों के स्तर (Degree of Notes) से समझ सकते हैं।
यह गज़ल मशहूर शायर/गीतकार नक़्श लायलपुरी जी ने लिखी है। इसे संगीत दिया है, मदन मोहन जी ने और पहली बार आवाज़ दी लता मंगेशकर जी ने। साल 1973 में आई फिल्म ‘दिल की राहें’ में इस गज़ल ने अपनी मौज़ूदगी दर्ज़ कराई। इसके बाद समय की हदों से ऊपर जाकर इसने मशहूरियत हासिल की। और हाँ, इसगज़ल का संगीत राग ‘मधुवन्ती’ से सजाया गया है, जिसका दूसरा नाम राग ’अम्बालिका’ भी है।
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(#अपनीडिजिटलडायरी ने पियाली की अनुमति से उनका यह वीडियो और जानकारियाँ डायरी के पन्नों पर दर्ज़ की हैं। अपने सांगीतिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, सामाजिक सरोकारों के कारण।…. शुभ गुरु पूर्णिमा।)
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