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पराजित सेनापति को तरक़्क़ी देने वाला ‘विचित्र’ देश पाकिस्तान, पर इसका मतलब पता है?

टीम डायरी

पाकिस्तान विचित्र सा मुल्क़ है। यह बात फिर साबित हो गई है। अभी एक दिन पहले ही वहाँ की शाहबाज़ शरीफ़ सरकार ने अपने सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर को तरक़्क़ी दी है। उन्हें अब फील्ड मार्शल बना दिया गया है। वे पाकिस्तान के अब तक के इतिहास में इस पद पर पहुँचने वाले दूसरे सेना अध्यक्ष हैं। उनसे पहले जनरल अय्यूब खान ने ख़ुद ही ख़ुद को तरक़्क़ी देकर फील्ड मार्शल बना लिया था। यह बात है 1959 की। हालाँकि जनरल मुनीर ने यही काम अपने अँगूठे तले दबी ‘कथित लोकतांत्रिक सरकार’ से कराया है। 

वैसे, ऊपरी तौर पर आसिम मुनीर की तरक़्क़ी में यूँ तो कोई ख़ास बात नहीं। यह पाकिस्तान का अपना मामला है। वह जिसे चाहे उसे जो मर्ज़ी वह पद दे सकता है। फिर भी शीर्ष पदों की अपनी मर्यादा होती है, जिसे दुनिया के सभी मुल्क़ क़ायम रखे की कोशिश करते हैं। फील्ड मार्शल का पद भी ऐसा ही एक पद है। सेनाओं में यह पद सेना अध्यक्ष से भी ऊपर होता है और जिसे मिलता है उसके पास मरते दम तक रहता है। यानि इसमें सेवानिवृत्ति कभी नही होती, भले पद सँभालने वाला अफसर सेना को सक्रिय सेवाएँ दे रहा हो या नहीं। 

मतलब यह पुरस्कार है और सम्मान भी। आम तौर पर बहादुर अफ़सरों को उनके उल्लेखनीय कार्यों के एवज़ में दिया जाता है। जैसे- भारत ने 1971 की जंग में पाकिस्तानी फौज़ को घुटनों पर लाकर आत्मसमर्पण कराने वाले तत्कालीन सेना प्रमुख सैम मानेक शाॅ को पहला फील्ड मार्शल बनाया। उनके बाद भारत के दूसरे फील्ड मार्शल हुए जनरल केएम करियप्पा, अप्रैल 1986 में। जनरल करियप्पा हालाँकि सैम मानेक शाॅ से काफी वरिष्ठ थे। लेकिन फील्ड मार्शल के पद से उन्हें बाद में नवाज़ा गया। जनरल करियप्पा की सेवाएँ, उपलब्धियाँ भी उल्लेखनीय रहीं। वह भारत के पहले भारतीय कमांडर-इन-चीफ (सेना प्रमुख जैसा ही पद) थे। उनके पहले अंग्रेज अफसरों के हाथ में सेना की कमान हुआ करती थी। जनरल करियप्पा के नेतृत्व में ही 1947-48 में पाकिस्तानी कबायली हमलावरों को कश्मीर से खदेड़ कर भगाया गया था। नहीं तो पूरा कश्मीर भारत के हाथ से निकल जाता। मतलब भारत में जो दो फील्ड मार्शल हुए, दोनों विजेता की तरह उभरे और देश ही नहीं, दुनिया के आसमान में चमके।

वहीं पाकिस्तान का देखिए। वहाँ पहले फील्ड मार्शल जनरल अयूब खान। उन्होंने भारत के साथ 1965 की जंग की और मुँह की खाई। इसके बाद अब दूसरे हुए जनरल आसिम मुनीर। ये जब पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी के प्रमुख होते थे, तब इन्होंने जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में आतंकी हमला कराया था। उसमें भारत के 40 जवान शहीद हो गए। ज़वाब में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के भीतर घुसकर हवाई हमले कर के 300 से क़रीब आतंकी मार दिए। फिर, आसिम मुनीर जब पाकिस्तान के सेना प्रमुख बने, तो इन्होंने पहलगाम में आतंकी हमला कराया। उत्तर में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के 100 किलोमीटर भीतर तक जाकर आतंकियों के नौ से अधिक ठिकाने ध्वस्त कर दिए। तब प्रमुख आतंकियों सहित सैकड़ों आतंकी मारे गए। इस पर पाकिस्तानी सेना ने ज़वाबी कार्रवाई की ग़लती की तो भारतीय फौज़ ने ताबड़तोड़ हमले कर वहाँ सेना और वायुसेना के करीब 12 अड्‌डे तहस-नहस कर दिए।

भारत के इन हमलों से पाकिस्तान की हालत इतनी ख़राब हो गई कि उसे तीन दिनों के भीतर ही संघर्ष विराम करना पड़ा। इस बारे में अमेरिका के रक्षा मुख्यालय के पूर्व अधिकारी माइकल रूबिन ने कहा है, “पाकिस्तान टॉगों के बीच में पूँछ दबाकर भागे हुए कुत्ते की तरह अमेरिका के पास आया था। गिड़गिड़ाते हुए कि किसी तरह भारतीय फौज़ों के हमले रुकवा दिए जाएँ।” मतलब, दो-दो बार दुर्गति कराने वाला सेना का अफसर अब पाकिस्तानी फौज़ के सबसे ऊँचे पद पर बिठा दिया गया है। हुई न ‘विचित्र देश की विचित्र बात’?

पर ठहरिए, कहानी अभी इससे आगे भी है। अधिकांश जानकारों का मानना है कि जनरल मुनीर की इस तरक़्क़ी का असर आने वाले दिनों में दिख सकता है। तीन आशंकाएँ हैं। पहली– पाकिस्तान के भीतर सेना, ख़ास तौर पर मुनीर समर्थक फौज़ी, अपने विरोधियों को और बुरी तरह कुचलेंगे। इनमें पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और उनकी पार्टी के लोग, तथा फौज़ के भीतर ही बग़ावत के सुर बुलन्द करने वाले लोग हो सकते हैं। दूसरा– मौज़ूदा सरकार ने मुनीर के इशारों पर नाचने से मना किया, तो उसे भी हटाया जा सकता है। उसकी जगह कोई और कठपुतली सरकार बिठाई जा सकती है। यह भी सम्भव है कि मुनीर ख़ुद तख़्ता पलट कर तानाशाह बन जाएँ। तीसरा– भारत के सामने पाकिस्तान के सैन्य दुस्साहस का ख़तरा भी बना रह सकता है! तो देखते हैं, आगे क्या होता है!!       

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Neelesh Dwivedi

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