खिलाड़ी देश के प्रतिनिधि हैं, किसी जाति, धर्म या प्रदेश के नहीं

अनुज राज पाठक, दिल्ली से, 02/8/2021

सौभाग्य से मुझे भारतीय सेना के साथ काम करने का अवसर प्राप्त हुआ। मैं व्यक्तिगत तौर पर जिन भी सैनिकों से संपर्क में आया, उनसे चर्चा, हास-परिहास या यहाँ तक कि सामान्य बातचीत में भी किसी सैनिक को देश के अलावा किसी अन्य पर गर्व करते नहीं देखा। हाँ, उन्हें अपनी कंपनी, अपनी रेजीमेंट, अपनी बटालियन के लिए ज़रूर जीत की भावना से भरे हुए पाया। लेकिन उसमें भी सेना की दूसरी कंपनी के प्रति उतना ही सम्मान और गर्व भी देखा, जितना अपनी कंपनी के प्रति रहता है।

सैनिक चाहे किसी भी रेजीमेंट का हो, वह भारतीयता की भावना से देश के लिए अपनी जान दे देता है। वह सीमा पर लड़ते हुए कभी यह नहीं सोचता कि अपनी जाति, अपने परिवार, अपने धर्म, अपने प्रदेश के लिए प्राण न्यौछावर करने आया है। न ही वह अपने साथी को बचाने से पहले उसकी जाति, धर्म, प्रदेश आदि के बारे में विचार करता है। उसके लिए सिर्फ देश महत्त्वपूर्ण है।

इसी प्रकार शायद देश का हर खिलाड़ी भी शायद ही अपनी जाति, धर्म या अपने प्रदेश के लिए विश्व के किसी मंच पर प्रदर्शन करता हो। वह खेलता है तो केवल देश के लिए। उसके लिए भी देश ही महत्त्वपूर्ण है।     

अभी ओलंपिक में बहुत से खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर देश में बहुत से लोग खिलाड़ी को अपनी जाति से या प्रदेश से या धर्म से जोड़ कर वाहवाही कर रहे हैं। जो लोग खिलाड़ी के अच्छे प्रदर्शन पर उस खिलाड़ी अपनी जातीय आदि अस्मिताओं से जोड़ रहे हैं, तो क्या खिलाड़ी का खराब प्रदर्शन उन विभाजक तत्त्वों के लिए शर्म का विषय भी है?

नहीं। शर्म नहीं आ रही है, क्योंकि उनके लिए जाति, प्रदेश आदि की वाहवाही केवल विभाजक नीति का हिस्सा है। उन्हें किसी खिलाड़ी के बेहतर या ख़राब प्रदर्शन से वास्तव में कोई मतलब नहीं है।

अगर खिलाड़ियों की विविध अस्मिताओं के आधार पर भी सहानुभूति होती तो वे लोग हॉकी खिलाड़ियों को जातीय या प्रदेशीय अस्मिता से जोड़ने वाले प्रदर्शन से पूर्व उनके लिए कुछ तो प्रयास करते। लेकिन ऐसा नहीं किया। आज जाति और प्रदेश के आधार पर गर्व करने वाले उस समय कहीं नहीं दिखे, जब देश का प्रतिनिधित्व करने वाली हॉकी टीम के लिए कोई प्रायोजक नहीं मिला था।

तब हमारे देश के एक प्रदेश के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक जी नायक बनकर उभरे। उन्होंने केवल देश प्रेम की भावना से “देश की टीम” को प्रायोजित किया। न कि उन खिलाड़ियों की जाति आदि देख कर।

हमें ऐसे लोगों की पहचान कर इनके देश विभाजक इरादों के मंसूबों पर पानी फेर देना है। देश का प्रत्येक खिलाड़ी देश का प्रतिनिधि होता है। उसके लिए भारतीय सेना के सैनिक के समान केवल देश की विजय महत्त्वपूर्ण है। वह सैनिक की तरह केवल देश के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर रहा होता है। वह देश का नागरिक है, न कि किसी गली, मोहल्ले, कस्बे या प्रदेश का हिस्सा है। वह सिर्फ़ भारतीय है, न कि जाति, धर्म, मज़हब का प्रतिनिधि है।

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(अनुज, मूल रूप से बरेली, उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। दिल्ली में रहते हैं और अध्यापन कार्य से जुड़े हैं।)

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