टीम डायरी
अयोध्या में 500 वर्षों की प्रतीक्षा पूरी हो गई है। जन्मभूमि पर भव्य और दिव्य राममंदिर के निर्माण का पहला चरण पूरा हो गया है। मंदिर के गर्भगृह में श्रीरामलला की मूर्ति प्राण सहित प्रतिष्ठित हो चुकी है। ऐसे ऐतिहासिक अवसर के साक्षी बने भक्तों की भावनाएँ अपने चरम पर हैं। उन्हें व्यक्त करने के लिए जिससे जो बन पड़ रहा है, वह वही माध्यम अपना रहा है। भावनाओं की अभिव्यक्ति के क्रम में बलिया, उत्तरप्रदेश से ताल्लुक रखने वाले कवि राकेश मिश्र ‘सरयूपारीण’ ने इन पंक्तियों से अपनी भावनाएँ व्यक्त की हैं। सुनिएगा.….,
राम तुम्हारे आ जाने से जानें क्यों ऐसा लगता है?
जैसे कहीं दक्षिणी ध्रुव पर
दीप्तिमान दिनकर उग आए।
भू के हर बंजर-ऊसर में
अकस्मात केसर उग आए।
सबको अपना रत्न बाँटने
जैसे इक सागर आया हो।
बूढ़ी माँओं की छाती में
फिर से दूध उतर आया हो।
जैसे जग की सारी गौएँ
हो बैठी हों कामधेनु सी।
मिट्टी – मिट्टी चमक उठी हो
गंगातट की पुण्य रेणु सी।
जो – जो कुक्षि पड़ी थीं सूनी,
उनमें शिशु गर्भस्थ हुए हों।
मृत्यु जोहते अगणित बूढ़े
तरुण हुए हों, स्वस्थ हुए हों।
कानन के कोने – कोने में
मृगछौने भर रहे कुलाचें।
जैसे मोर पंख फैलाये
भारत के हर छत पर नाचें।
रंग और चटखार हुए हो
सुमन – सुमन के, पर्ण – पर्ण के।
तुममे डूब – डूबकर जैसे
भेद मिटे हों जाति – वर्ण के।
शबरी – गीध – अजामिल जैसे
भक्त सभी तारे जाएँगे।
जग के सभी दशानन फिर से,
ढूँढ़ – ढूँढ़ मारे जाएँगे।
राम तुम्हारे आ जाने से जानें क्यों ऐसा लगता है?