अनुज राज पाठक, दिल्ली
आज हम सभी चीजों, बातों और विचारों को वैज्ञानिक कसौटी पर कसना चाहते हैं। तब मन में प्रश्न आता है, क्या प्राचीन काल में चीजों को बस ऐसे ही मान लेते थे? या फिर उस समय भी उन्हें किसी वैज्ञानिक कसौटी पर कसा जाता था? इसके उपरान्त ही समाज में उन्हें मान्यता मिलती थी? तो ज़वाब ये है कि निश्चित रूप से प्राचीन काल में प्रत्येक आचार्य की स्वयं की जिम्मेदारी होती थी कि वह अपने सिद्धान्त की स्थापना से पूर्व उसकी सार्थकता पर विचार करे। उसके बाद वह प्रतिपक्षी के सभी प्रश्नों का उत्तर मान्य स्थापनाओं के आधार पर दे।
इसी प्रकार वेद के मंत्रों का अर्थ क्यों जानना? यह प्रश्न आज के नास्तिक या फिर वेद को ज्ञान का स्रोत न मानने वाले करते रहते हैं। आज वैज्ञानिक चेतना का समय है, जहाँ प्रत्येक बात कर वैज्ञानिक प्रमाण माँगे जाते हों, वहाँ वेद मंत्रों के अर्थ पर प्रश्न करना बहुत ही सामान्य बात है। और तो और प्राचीन काल में भी ऐसा होता रहा है। एक ऋषि कौत्स हुए हैं। उनका और उनके अनुयायियों का मानना था वेद और उनके मंत्र निरर्थक हैं। ऋषि कौत्स ने तो घोषणा तक कर दी थी, “अनर्थका: हि मंत्रा:” यानि मंत्र अनर्थक हैं।
हालाँकि इस तरह की धारणाओं, मान्यताओं के ठीक उलट स्थापनाएँ करने का काम आचार्य यास्क का निरुक्त करता है। वह वेदमंत्राें के अर्थ को जानने का साधन है। लिहाजा, उस समय की स्थापित परम्परा के अनुसार ही आचार्य पर ही यह दायित्व आया कि वे अपने निरुक्त की सार्थकता का प्रतिपादन करें। उसे सिद्ध भी करें। इस तरह से वेदाें की सार्थकता को भी स्थापित करें। उसकी पुष्टि करें। सम्भवत: इसी बात को ध्यान में रखकर आचार्य यास्क वेद मंत्रों की सार्थकता स्थापित करने के लिए बड़ा सहज उत्तर देते हैं।
वे कहते हैं, “जब लोक में शब्दों के अर्थ हैं, तो मंत्रों में दिए शब्दों को अनर्थक कहना कहाँ तक उचित है।” आगे वह शब्दों की नित्यता अनित्यता जैसे विषयों को भी उठाते हैं। अपने पूर्व आचार्य के समाधान के साथ कहते हैं, “शब्द व्यापक है। लोक व्यवहार के लिए शब्दों और वाक्यों से सरलता के साथ काम चल जाए इसीलिए शब्दों के नाम आदि विभाग किए गए हैं।” इस प्रकार आचार्य यास्क शब्द के नित्य होने का समाधान प्रस्तुत करते हैं।
फिर जैसा पहले कहा कि अपने सिद्धान्त की सार्थकता सिद्ध करने की जिम्मेदारी व्यक्ति की खुद ही होती थी। लिहाजा आचार्य यास्क अपने निरुक्त की उपयोगिता के सन्दर्भ में कहते हैं, “इस शास्त्र के बिना मंत्रों के अर्थ का ज्ञान नहीं होगा। यह व्याकरण शास्त्र को पूर्णता प्रदान करता है। स्वतंत्र अर्थ का भी ज्ञान कराता है। (अथापीदमन्तरेण मन्त्रेष्वर्थप्रत्ययो न विद्यते। अर्थमप्रतीयतो नात्यन्तं स्वरसंस्कारोद्देशः। तदिदं विद्यास्थानं व्याकरणस्य कार्त्स्न्यं स्वार्थसाधकं च।)।
यानि अन्त में कहा जा सकता है कि व्याकरण जैसे शास्त्र के रहने पर भी निरुक्त का होना मंत्र के अर्थ जानने के लिए आवश्यक है। अन्यथा कोई भी, कैसा भी अपनी सुविधा अनुसार अर्थ कर लेगा और कहेगा ऐसा वेद में लिखा है, इसलिए मैं धर्म अनुसार ही कार्य कर रहा हूँ। ऐसे अनुचित दावे ना कर सके इसलिए निरुक्त का अध्ययन आवश्यक है।
#SanskritKiSanskriti
——
(नोट : अनुज दिल्ली में संस्कृत शिक्षक हैं। #अपनीडिजिटलडायरी के संस्थापकों में शामिल हैं। अच्छा लिखते हैं। इससे पहले डायरी पर ही ‘भारतीय दर्शन’ और ‘मृच्छकटिकम्’ जैसी श्रृंखलाओं के जरिए अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं। समय-समय पर दूसरे विषयों पर समृद्ध लेख लिखते रहते हैं।)
(अनुज से संस्कृत सीखने के लिए भी उनके नंबर +91 92504 63713 पर संपर्क किया जा सकता है)
——-
इस श्रृंखला की पिछली 10 कड़ियाँ
20 – ‘संस्कृत की संस्कृति’ : उदाहरण रूप वैदिक शब्दों की रूढ़ संज्ञा को क्या कहते हैं?
19 – ‘संस्कृत की संस्कृति’ : सुनना बड़ा महत्त्वपूर्ण है, सुनेंगे नहीं तो बोलेंगे कैसे?
18 – ‘संस्कृत की संस्कृति’ : मैं ऐसे व्यक्ति की पत्नी कैसे हो सकती हूँ?
17 – ‘संस्कृत की संस्कृति’ : संस्कृत व्याकरण में ‘गणपाठ’ क्या है?
16 – ‘संस्कृत की संस्कृति’ : बच्चे का नाम कैसा हो- सुन्दर और सार्थक या नया और निरर्थक?
15 – ‘संस्कृत की संस्कृति’ : शब्द नित्य है, ऐसा सिद्धान्त मान्य कैसे हुआ?
14 – ‘संस्कृत की संस्कृति’ : पंडित जी पूजा कराते वक़्त ‘यजामि’ या ‘यजते’ कहें, तो क्या मतलब?
13 – ‘संस्कृत की संस्कृति’ : संस्कृत व्याकरण की धुरी किसे माना जाता है?
12- ‘संस्कृत की संस्कृति’ : ‘पाणिनि व्याकरण’ के बारे में विदेशी विशेषज्ञों ने क्या कहा, पढ़िएगा!
11- संस्कृत की संस्कृति : पतंजलि ने क्यों कहा कि पाणिनि का शास्त्र महान् और सुविचारित है
अभी इसी शुक्रवार, 13 दिसम्बर की बात है। केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी लोकसभा… Read More
देश में दो दिन के भीतर दो अनोख़े घटनाक्रम हुए। ऐसे, जो देशभर में पहले… Read More
सनातन धर्म के नाम पर आजकल अनगनित मनमुखी विचार प्रचलित और प्रचारित हो रहे हैं।… Read More
मध्य प्रदेश के इन्दौर शहर को इन दिनों भिखारीमुक्त करने के लिए अभियान चलाया जा… Read More
इस शीर्षक के दो हिस्सों को एक-दूसरे का पूरक समझिए। इन दोनों हिस्सों के 10-11… Read More
आकाश रक्तिम हो रहा था। स्तब्ध ग्रामीणों पर किसी दु:स्वप्न की तरह छाया हुआ था।… Read More