अनुज राज पाठक, दिल्ली
आचार्य कौत्स वेद मंत्रों को निरर्थक कहते हैं। लेकिन कौत्स के प्रश्नों का उत्तर देते हुए आचार्य यास्क कहते हैं- मंत्र कोई सामान्य कथन नहीं हैं, अपितु ऋषियों ने मंत्रों का साक्षात्कार किया है। तो अब यह प्रश्न बनता है कि ऋषि कौन कहलाते हैं? आचार्य इसका उत्तर देते हैं, “जिन्होंने धर्म का साक्षात्कार किया ऐसे ऋषि हुए हैं।” (साक्षात्कृतधर्माण ऋषयो बभूवुः निरुक्त 1/20)) या फिर मन्त्रों को देखने वाले ऋषि कहलाते हैं। (ऋषियो मन्त्र द्रष्टारः)
मतलब यह प्रश्न महत्त्वपूर्ण है कि ऋषि कौन? हम इसे समझने की कोशिश करते हैं। पृथ्वी पर जिस तरह गुरुत्वाकर्षण हमेशा से रहा लेकिन इस बात को एक समय तक कोई नहीं जानता था। मगर तभी एक व्यक्ति ने गिरते हुए फल को देखा और बताया कि इस तरह ‘चीजों का पृथ्वी पर गिरना’ धरती की एक विशिष्ट शक्ति के कारण सम्भव होता है। इसे गुरुत्वाकर्षण कहते हैं। और उन्होंने जब ऐसा बताया, तो उन्हें ‘वैज्ञानिक’ कहा गया।
ठीक इसी तरह अनेक अलौकिक घटनाओं को भी कई लोगों ने देखा, समझा और फिर सभी को उसके बारे में बताया। उन सभी को ‘ऋषि’ कहा जाता है। और इन ऋषियों ने अपने विशिष्ट ज्ञान का संग्रह जिन पुस्तकों में किया, उन्हें ‘वेद’ कहते हैं। वेदों में जिस माध्यम से ऋषियों का ज्ञान संग्रहीत है, वह ‘मंत्र’ हैं।
तो इन मंत्रों को देखने या खोज करने वालों की तरह मंत्रों का तात्पर्य बताने वाले भी ऋषि ही कहे गए। जो सत्य, वह सत्य भी एकदेशीय या सापेक्ष नहीं होता। वह सत्य सार्वकालिक सर्वदेशीय भी हो। वह मानव मात्र का ही नहीं अपितु सम्पूर्ण जगत के कल्याण की कामना करने वाला भी हो। उसका उद्घाटन करने वाला भी ऋषि है। वह सत्य जिस कथन के रूप में सामान्य जन के समक्ष रखा जाता है वह मंत्र है। उन मंत्रों और मंत्रार्थों को कहने वाला भी ऋषि है।
ऋषि आप्त वक्ता होते हैं। आप्त अर्थात् यथार्थ कहने वाले। जो निश्चित सत्य है, उसी का भाषण, उसी का कथन करते हैं। इनके कथन इसलिए असंदिग्ध हैं। ये मंत्र इसी कारण निरर्थक भी नहीं हैं। आगे हम ‘आचार्य’ शब्द की भी यहीं थोड़ी व्याख्या देख लें। इस सम्बन्ध में यास्क ‘आचार्य’ शब्द का निर्वचन करते हुए कहते हैं, “आचार्य वह होता है जो आचरण सिखाए, जो अर्थों का संग्रह करना सिखाए और जो बुद्धि अर्थात् ज्ञान का संग्रह करे।”
देखा जाए तो सत्य ही कहा है आचार्य यास्क ने क्योंकि ऐसे गुणों से युक्त व्यक्ति ही (आचार्य) तो वास्तव में विद्यार्थी के हित के बारे में सोच सकता है। ऐसे आचार्य को पाकर ही शिष्य का जीवन सफल हो सकता है।
#SanskritKiSanskriti
——
(नोट : अनुज दिल्ली में संस्कृत शिक्षक हैं। #अपनीडिजिटलडायरी के संस्थापकों में शामिल हैं। अच्छा लिखते हैं। इससे पहले डायरी पर ही ‘भारतीय दर्शन’ और ‘मृच्छकटिकम्’ जैसी श्रृंखलाओं के जरिए अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं। समय-समय पर दूसरे विषयों पर समृद्ध लेख लिखते रहते हैं।)
(अनुज से संस्कृत सीखने के लिए भी उनके नंबर +91 92504 63713 पर संपर्क किया जा सकता है)
——-
इस श्रृंखला की पिछली 10 कड़ियाँ
22 – ‘संस्कृत की संस्कृति’ : बहस क्या है… वाद या वितण्डा? जानने के लिए पढ़िए
21- ‘संस्कृत की संस्कृति’ : “अनर्थका: हि मंत्रा:” यानि मंत्र अनर्थक हैं, ये किसने कहा और क्यों?
20 – ‘संस्कृत की संस्कृति’ : उदाहरण रूप वैदिक शब्दों की रूढ़ संज्ञा को क्या कहते हैं?
19 – ‘संस्कृत की संस्कृति’ : सुनना बड़ा महत्त्वपूर्ण है, सुनेंगे नहीं तो बोलेंगे कैसे?
18 – ‘संस्कृत की संस्कृति’ : मैं ऐसे व्यक्ति की पत्नी कैसे हो सकती हूँ?
17 – ‘संस्कृत की संस्कृति’ : संस्कृत व्याकरण में ‘गणपाठ’ क्या है?
16 – ‘संस्कृत की संस्कृति’ : बच्चे का नाम कैसा हो- सुन्दर और सार्थक या नया और निरर्थक?
15 – ‘संस्कृत की संस्कृति’ : शब्द नित्य है, ऐसा सिद्धान्त मान्य कैसे हुआ?
14 – ‘संस्कृत की संस्कृति’ : पंडित जी पूजा कराते वक़्त ‘यजामि’ या ‘यजते’ कहें, तो क्या मतलब?
13 – ‘संस्कृत की संस्कृति’ : संस्कृत व्याकरण की धुरी किसे माना जाता है?
चन्द ‘लापरवाह लोग’ + करोड़ों ‘बेपरवाह लोग’’ = विनाश! जी हाँ, दुनियाभर में हर तरह… Read More
आज, 10 अप्रैल को भगवान महावीर की जयन्ती मनाई गई। उनके सिद्धान्तों में से एक… Read More
प्रिय मुनिया मेरी जान, मैं तुम्हें यह पत्र तब लिख रहा हूँ, जब तुमने पहली… Read More
दुनियाभर में यह प्रश्न उठता रहता है कि कौन सी मानव सभ्यता कितनी पुरानी है?… Read More
मेरे प्यारे गाँव तुमने मुझे हाल ही में प्रेम में भीगी और आत्मा को झंकृत… Read More
काश, मानव जाति का विकास न हुआ होता, तो कितना ही अच्छा होता। हम शिकार… Read More