एकान्त की अकुलाहट : मौत के तांडव में मुस्कान के मोती ढूँढने का नाम है जीवन

संदीप नाईक, देवास, मध्य प्रदेश से

दुख बहुत आहिस्ते से आता है और लम्बे समय तक जीवन की झोली में पड़ाव डालता है। अपना दायरा बड़ा करता है। और एक दिन हम दुख के साथ रहने के आदी हो जाते हैं। जबकि सुख तेजी से आता है और जल्दी से काफूर हो जाता है। हम अकेले ही इसे भोगना चाहते हैं। लेकिन यह किसी सुखान्त की कपोल कल्पना की तरह जल्दी खत्म हो जाता है।

मौत इन दोनों से अलग है। वह एकाएक आती है, बिना सूचना के। और फिर जीवन को स्थाई रूप से अपंग बनाकर चली जाती है। हम सबको इसका हिस्सा कभी न कभी बनना पड़ता है।

जीवन इन सबसे भी ऊपर होता है, जो सब कुछ बिसारकर फिर ढर्रे पर लौट आता है। साधारण इंसान होकर भी हम सबमें बहुत ताकत है। विलक्षण शक्तियाँ, सबसे लड़ने का माद्दा, शिद्दत से जूझने की विरासत और सब कुछ भूलकर मुस्कुराने की अनमोल इच्छाशक्ति है, जो अकल्पनीय है। इसका अंदाज़ा तब होता है, जब हम एकदम टूट जाते हैं। निष्ठुर हो जाते है। 

बस इसी छोटी सी किन्तु महत्त्वपूर्ण बात को अपने भीतर पहचानकर पकड़ कर रखने की ज़रूरत है। ताकि हम फिर एक बार इसी पगडंडी पर चल सकें, जो हमें भी एक दिन सबसे मुक्त कर देगी और हमारी राह आसान हो जाएगी। वह राह जो अन्तत: हमें चुननी ही होगी। सारे विजयपथ और राजपथ छोड़कर। उजालों के लैम्पपोस्ट और जुगनुओं के रास्ते छोड़कर।

अगर कोई बिछड़ रहा है, कोई साथ छोड़ रहा है तो निराश होने की ज़रूरत नहीं है। यही क्रम है और प्रक्रिया भी मजबूत होने की। कोई किसी के साथ सदा के लिए नहीं। हम भी किसी के साथ सदैव नही रहेंगे। बस, थोड़ा आराम कर लो। विदाई के वक्त में थोड़ा दुखी हो लो। आँसू बहा लो अकेले में। सुस्ता लो और फिर जंग पर निकल पड़ो। क्योंकि अभी आगे और मुसाफ़िर है जो संग-साथ चल रहे हैं तुम्हारे।

जीवन आँसूओं और तड़प में नहीं। मौत के तांडव में मुस्कान के मोती ढूँढ़ने का नाम है। किसी से लगाव नहीं होना और हर शै से बिछड़ने को तैयार रहने की अदा ही जीवन का असली मक़सद और फ़लसफ़ा होना चाहिए। जन्म, जीवन, सुख-दुख, संघर्ष और मौत, यह सब तब तय किया गया था जब हम पैदा हुए थे। कोई कितनी शान्ति, सहजता और सम्मानपूर्वक अन्त में सब समेट कर लौट जाता है, यही जीवन जीने का सार है।

मैं हम सबके लिए ऐसे ही निर्मोही जीवन की कामना करता हूँ। 
—– 
(संदीप नाईक जी, #अपनीडिजिटलडायरी से बीते काफी समय से जुड़े हुए हैं। समाज-सेवा, पर्यावरण-सेवा जैसे मसलों पर लगातार काम करते हैं। सक्रिय रहते हैं। सोशल मीडिया के प्रभावशाली लोगों में गिने जाते हैं। लिखना-पढ़ना और सिखाना-पढ़ाना उनका सहज शौक है। ‘एकान्त की अकुलाहट’ नामक उनकी श्रृंखला डायरी पर बेहद पठनीय रही है। उसकी 50 से अधिक कड़ियाँ डायरी पर लगातार प्रकाशित हुई हैं। यह लेख उसी की अगली कड़ियों में से है।) 

सोशल मीडिया पर शेयर करें
Neelesh Dwivedi

View Comments

  • "मैं यहाँ शुरू से हूँ और यहाँ के अंत तक रहूँगा, और मैं ही नहीं; हम सब" - ओशो

Share
Published by
Neelesh Dwivedi

Recent Posts

‘देश’ को दुनिया में शर्मिन्दगी उठानी पड़ती है क्योंकि कानून तोड़ने में ‘शर्म हमको नहीं आती’!

अभी इसी शुक्रवार, 13 दिसम्बर की बात है। केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी लोकसभा… Read More

3 days ago

क्या वेद और यज्ञ-विज्ञान का अभाव ही वर्तमान में धर्म की सोचनीय दशा का कारण है?

सनातन धर्म के नाम पर आजकल अनगनित मनमुखी विचार प्रचलित और प्रचारित हो रहे हैं।… Read More

5 days ago

हफ़्ते में भीख की कमाई 75,000! इन्हें ये पैसे देने बन्द कर दें, शहर भिखारीमुक्त हो जाएगा

मध्य प्रदेश के इन्दौर शहर को इन दिनों भिखारीमुक्त करने के लिए अभियान चलाया जा… Read More

6 days ago

साधना-साधक-साधन-साध्य… आठ साल-डी गुकेश-शतरंज-विश्व चैम्पियन!

इस शीर्षक के दो हिस्सों को एक-दूसरे का पूरक समझिए। इन दोनों हिस्सों के 10-11… Read More

1 week ago

‘मायावी अम्बा और शैतान’ : मैडबुल दहाड़ा- बर्बर होरी घाटी में ‘सभ्यता’ घुसपैठ कर चुकी है

आकाश रक्तिम हो रहा था। स्तब्ध ग्रामीणों पर किसी दु:स्वप्न की तरह छाया हुआ था।… Read More

1 week ago