जहाँ सिंह, वही सिंहासन

टीम डायरी, 22/1/2021

अभी हाल में एक तस्वीर सामाजिक मंचों (सोशल मीडिया) पर तेजी से प्रसारित हुई। इसमें एक सिंह सामान्य घरेलू सोफे पर बैठा दिखाई दिया। तस्वीर कहाँ की थी, असल थी या गढ़ी हुई, यहाँ ये बहुत मायने नहीं रखता। मायने रखता है, इस तस्वीर के पीछे छिपा सन्देश, जो हमारे काम का हो सकता है। इसीलिए यह सामान्य और सहज हँसी-मज़ाक जैसा दिखने वाला विषय भी #अपनीडिजिटलडायरी के इस लेख का कारण है।

तस्वीर में छिपी बड़ी सीख, वर्तमान में निजी क्षेत्र के पेशे से जुड़ती है। इस क्षेत्र में एक जुमले जैसा शब्द है, ‘लीडरशिप’ (Leadership)। हालाँकि दिलचस्प ये कि इसका असल लीडरशिप यानि नेतृत्व से कोई लेना-देना नहीं होता। बल्कि वहाँ ‘बॉसिज़्म’ (Bossism) को ही लीडरशिप नाम दिया जाता है। जो जानते हैं, वे समझते भी हैं कि ‘बॉसिज़्म’ और ‘लीडरशिप’ में मूलभूत अन्तर होते हैं। जैसे- ‘बॉसिज़्म’ कभी भी संघर्ष के मोर्चें पर आगे बढ़कर ज़िम्मेदारी नहीं लेता। बल्कि वह ऐसे अवसरों पर अपनी टीम को आगे करता है। उसमें कुछ योग्य या कहें कि सही मायने में ‘अगुवा’ (Leader) जैसे लोगों को लगाता है। कारण कि तब सफल और असफल होने का जोख़िम बराबर होता है। अलबत्ता, जब उसी काम में सफलता मिल जाती है तो ‘बॉस’ किस्म के जीव सबसे आगे खड़े दिखाई देते हैं। श्रेय लेने के लिए। दूसरी बात, इस श्रेणी के लोग हमेशा अपने पद-प्रतिष्ठा को लेकर असुरक्षित रहते हैं। इसलिए वे ऐसे लोगों का ‘झुंड’ अपने आस-पास आवश्यक रूप से रखते हैं, जो उनके लिए चुनौती बनने लायक न हों। सिर्फ ‘हाँ’ में ‘हाँ’ मिलाते हों। और तीसरा सबसे अहम- ‘बॉसिज़्म’ की प्रकृति वाले लोगों का ‘अन्तिम लक्ष्य’ हमेशा वह ‘सिंहासन’ होता है, जिस पर उनका मौजूदा ‘बॉस’ बैठकर हुक्म चला रहा होता है। उन्हें पता रहता है कि यह ‘सिंहासन’ येन, केन, प्रकारेण मिलता है। कौशल निखारने से नहीं, इसलिए वे पूरे समय ‘येन, केन, प्रकारेण’ में लगे रहते हैं। कुशलता प्राप्त करने में नहीं।

इसके ठीक उलट ‘लीडरशिप’ एक ऐसा गुण है, जो जिसमें आ गया, वह ‘येन, केन, प्रकारेण’ का भाव ही सबसे पहले छोड़ता है। वह सिर्फ़ हुनर निखारने पर ध्यान केन्द्रित करता है। आगे बढ़कर बड़े जोख़िम लेने से नहीं डरता। बल्कि लगातार लेता ही है। अपने व्यक्तित्व विकास के लक्ष्य के लिए। और अपनों के लिए भी। हौसला मजबूत करने और बनाए रखने की कोशिश करता है। क्योंकि उसे पता होता है कि जिस राह पर वह है, ये हौसला ही उसका सबसे विश्वस्त साथी है। अकेला रह लेता है। पर नाकाबिल, कमकाबिल किस्म के लोगों की संगति या बराबरी बर्दाश्त नहीं होती। क्योंकि ‘तरबूज की संगति में तरबूज रंग बदलता है’ इसका उसे अहसास होता है। उसे इस बात का भान भी होता है कि ये तरीके ही उसका ‘हुनर’ चमकाने का ज़रिया हैं, उसमें मददगार हैं। ये भी कि अपना कौशल निखारने के बाद ही वह उस स्थिति में आ सकेगा, जिसमें शायर बशीर बद्र कहते हैं, ‘हम वो दरिया हैं, जिसे अपना हुनर मालूम है। जिस तरफ़ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा।।’ श्रेय या सफलता, संपत्ति या सुकून। सब उसे इसी स्थिति में, इस रास्ते पर मिलेगा। ख़ुद-ब-ख़ुद पीछे आते हुए। जहाँ वह खड़ा होगा, पंक्ति वहीं से शुरू होगी। जिस कुर्सी पर बैठेगा, वह अहम हो जाएगी। दूसरे शब्दों में ‘जहाँ सिंह, वही सिंहासन’ वाला भाव उसमें ठहर जाता है। इसलिए किसी और ‘सिंहासन’ की जरूरत नहीं लगती।

लिहाज़ा, गौर कर सकते हैं कि कहीं सोफे को ‘सिंहासन’ बनाकर बैठा कोई ‘लीडर’ हमारे आस-पास ही, किसी व्यवस्था में तो नहीं है। हो, तो वह हमारे सम्मान का हक़दार होना चाहिए। क्योंकि यही वे लोग हैं, जो दुनिया की हर व्यवस्था में बड़े, सकारात्मक बदलाव का कारण बने हैं। वरना, इफ़रात में मिलने वाले ‘बॉस’ तो सिर्फ़ ‘लॉस’ (Loss) की वज़ह ही बनते हैं।  

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