टीम डायरी
देश के कई हिस्सों में यह ग़लत धारणा किसी परम्परा की तरह प्रचलित है कि दीवाली पर जुआ खेलना चाहिए। इसके पीछे तर्क दिया जाता है कि दीवाली के समय स्वयं देवाधिदेव महादेव और योगेश्वर श्री कृष्ण ने भी अपनी पत्नियों के साथ ‘जुआ’ खेला था। कई लोग यह भी दलील देते हैं कि हिन्दू धर्म के प्राचीन ग्रन्थों में भी दीवाली की रात ‘जुआ’ खेले जाने के प्रसंग मिलते हैं। इसी आधार पर देश के कई शिव, कृष्ण और विष्णु मन्दिरों में दीवाली के दौरान रात के समय भगवान के विग्रहों के सामने चौसर सजाकर रखी जाती है।
जबकि सच्चाई यह है कि भगवान ने अपनी पत्नियों के साथ जब भी खेला तो सिर्फ चौसर ही खेला, जुआ नहीं। दीवाली पर इसलिए खेला क्योंकि हमेशा से ही इस रात्रि को जागरण की परम्परा रही है। और चूँकि प्राचीन काल से चौसर एक सामान्य मनोरंजन तथा समय बिताने का साधन रहा है। इसलिए भगवान ने भी यही साधन चुना, तो कोई अचरज नहीं। यानि प्राचीन ग्रन्थों में जो भी प्रसंग हैं, वे सब इसी से सम्बन्धित हैं। उनमें इसका उल्लेख कहीं नहीं मिलता कि भगवान ने चौसर खेलते हुए धन को, लक्ष्मी को दाँव पर लगाया।
बल्कि इसके ठीक उलट ग्रन्थों में यह स्पष्ट विवरण मिलता है कि जुआ खेलने वाले यानि लक्ष्मी को दाँव पर लगाने वाले से माता लक्ष्मी हमेशा के लिए नाराज़ हो जाती हैं। उसके पास धन भले आ जाए लेकिन ऐश्वर्य, सुख, शान्ति आदि कभी नहीं आती। जुए से कमाया धन हमेशा क्लेष का कारण बनता है। स्कन्द पुराण, गरुड़ पुराण, आदि में जुआरी को मिलने वाले विभिन्न नरकों का वर्णन है। ऋगवेद में भी लिखा है, “जुआ खेलने वाले की सुन्दर पत्नी उसे छोड़ जाती है। पुत्र मारे-मारे फिरते हैं। ऐसे व्यक्ति को कोई पास नहीं बिठाता।”
अब ज़रा इन पुरानी बातों की पुष्टि करने वाले कुछ ताज़ातरीन उदाहरण देखिए। कर्नाटक के बेंगलुरू की घटना है। वहाँ पुलिस ने महिलाओं की मदद के लिए ‘परिहार’ नाम का प्रभाग बना रखा है। उसमें पिछले साल एक महिला ने शिक़ायत दर्ज़ कराई कि उसके पति को ऑनलाइन जुआ खेलने की लत है। वह अब तक 70 लाख रुपए गँवा चुका है। उसे मदद की ज़रूरत है। पति के ठीक होने तक वह उसे छोड़कर मायके जा रही है। कर्नाटक के ही रहने वाले ये पति-पत्नी दोनों सूचना-प्रौद्योगिकी (आईटी) क्षेत्र में काम करते हैं।
यानि जुए की लत ने इस व्यक्ति से धनलक्ष्मी, गृहलक्ष्मी और सन्तानलक्ष्मी (दो बेटियाँ) सब छीन लीं। हालाँकि पुलिस की पहल के बाद युवक को राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य एवं तंत्रिका विज्ञान संस्थान (निमहंस) में दाख़िल कराया गया। वहाँ सात महीने तक इलाज़ चला। इसके बाद जब उसने जुए की लत छोड़ने का वचन दिया, तब पत्नी दोनों बेटियों के साथ उसके जीवन में वापस लौटी। धनलक्ष्मी भी लौट ही आएगी।
एक और मामला देखिए। महाराष्ट्र के नागपुर का मामला है। वहाँ के एक व्यवसायी को किसी झाँसेबाज़ ने ऑनलाइन जुए से होने वाली मोटी कमाई का प्रलोभन दिया। थोड़ी ना-नुकुर के बाद उन्होंने आठ लाख रुपए लगा दिए। कुछ ही दिनों में उन्होंने पाँच करोड़ रुपए जीत भी लिए। और अचानक 58 करोड़ रुपए का फटका खा गए। अब वे पुलिस के चक्कर काटते फिर रहे हैं कि कोई राहत मिल जाए।
कश्मीर से तो इसी साल जून में एक जानकारी सामने आई थी कि वहाँ के ग्रामीण इलाक़ों में ऑनलाइन जुए की लत ने किसी महामारी की तरह युवाओं के बीच पैठ बना ली है। बारामूला के दो परिवार क्रमश: 32 और 42 लाख रुपए तक गँवा चुके हैँ। और चार-पाँच लाख गँवाने वाले तो गिनती में ही नहीं हैं। ज़ाहिर तौर पर इन स्थितियों का सामना करने वाले लोग मानसिक विकारों- तनाव, अवसाद या आत्महत्या के ख़्याल, आदि के भी शिकार हो रहे हैं। कई युवा आत्महत्या भी कर रहे हैं। अरुणाचल आदि से ऐसे मामले सामने आए हैं।
मतलब, लक्ष्मीजी की कृपा चाहिए तो जुए से दूरी बनाइए। ऑनलाइन हो या ऑफलाइन। खेल के माध्यम से हो या शर्त आदि में, लक्ष्मी को दाँव पर मत लगाइए। जिस किसी भी बहाने से लक्ष्मीजी को दाँव पर लगाया जाए, सब जुए के रूप हैं। किसी भी रूप में लक्ष्मीजी को दाँव पर लगाना उनका अपमान है। और उनके ऐसे अपमान से सिर्फ वे ही नहीं उनके स्वामी श्रीनारायण भी नाराज़ होते हैं। याद रखिए यह बात।
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