ब्रिटिश शासन के शुरुआती दौर में भारत में शिक्षा की स्थिति कैसी थी?

माइकल एडवर्ड्स की पुस्तक ‘ब्रिटिश भारत’ से, 17/9/2021

अंग्रेज जब भारत आए तो यहाँ मुख्य रूप से धार्मिक शिक्षा ही दी जाती थी। हिंदु समाज की शिक्षा पर ब्राह्मणों का एकाधिकार था। वे संस्कृत भाषा के जरिए धार्मिक साहित्य का अध्ययन-अध्यापन किया करते थे। जबकि, मुसलिमों में अरबी भाषा के माध्यम से शिक्षा दी जाती थी। लेकिन यह भाषा हिंदुस्तान में ज़्यादा बोली नहीं जाती थी। कुछ विद्यालयों में फ़ारसी में भी पढ़ाई कराई जाती थी। यह 1837 तक हिंदुस्तान सरकार की अधिकृत भाषा रही। वैसे, हिंदु और मुसलिम शिक्षा में काफी-कुछ एक सा था। दोनों में ऐसी भाषाओं के ज़रिए पठन-पाठन हो रहा था, जिन्हें सामान्य लोग नहीं बोलते थे। दोनों परंपरागत ज्ञान के साथ आगे बढ़ रही थीं। हालाँकि हिंदुओं की तुलना में मुसलिम शिक्षा कहीं ज़्यादा लोकतांत्रिक थी। उनकी धार्मिक शिक्षा हर किसी के लिए उपलब्ध थी। फिर जहाँ तक शिक्षा को सरकारी मदद का सवाल है तो कुछ रियासतों को छोड़कर उस दौर के अधिकांश राज्य इस मामले में विशेष ज़िम्मेदारी नहीं उठाते थे। विद्यालय या तो निजी या फिर सामुदायिक धन से ही संचालित होते थे। हालाँकि, हिंदुओं की शिक्षा का एक बड़ा प्राचीन केंद्र बंगाल के नदिया में संचालित था। यह 1835 तक विश्वविद्यालय के रूप में अपनी विशिष्टता क़ायम रख सका क्योंकि स्थानीय राजा ने “भूमि आदि देकर इसके शिक्षकों की मदद की थी। ताकि वे विद्यार्थियों को निश्चिंत भाव से बेहतर शिक्षण-प्रशिक्षण दे सकें।” इसी तरह मुसलिम विद्यालयों को भी उसी समुदाय के शासक या समृद्ध लोग ही वित्तीय मदद देते थे। 

मग़र जब अंग्रेजों ने बंगाल में सत्ता संभाली तो देश में निजी शिक्षण संस्थानों को मिलने वाला दान काफ़ी कम हो चुका था। हालाँकि तभी 1780 में एक मुसलिम शिक्षक ने अपने समाज के अग्रणी लोगों की तरफ से वॉरेन हेस्टिंग्स के सामने आर्थिक मदद के लिए अर्ज़ी लगाई। इससे हेस्टिंग्स को यह दिखाने का अवसर मिल गया कि अंग्रेज भी शिक्षा के संरक्षण-सहायता के मामले में पूर्ववर्ती शासकों से पीछे नहीं हैं। इस तरह 1781 में सरकार के सहयोग से कलकत्ता मदरसे की स्थापना की गई। हेस्टिंग्स ने हिंदुओं को भी मदद दी और बनारस में 1792 में संस्कृत महाविद्यालय स्थापित किया गया। इसका उद्देश्य “राष्ट्र के कानून, साहित्य, धर्म के संरक्षण और उत्कर्ष का प्रयास करना था। उसे अपने धर्म के सभी वर्गों के लिए प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित करना था।” इस संस्कृत महाविद्यालय के विद्यार्थियों का सालभर में चार बार इम्तिहान होता था। वह भी बनारस में तैनात स्थानिक ब्रिटिश प्रशासक की मौज़ूदगी में। हालाँकि न तो हिंदु और न मुसलिम संस्थान ही सफल सिद्ध हुए। दोनों अंदरूनी झगड़ों में उलझ गए। सरकारी धन के दुरुपयोग की शिकायतें आने लगीं। कदाचरण और अव्यवस्था के मामले भी सुनाई देने लगे। 

इस बारे में वायसराय लॉर्ड मिंटो ने 1811 में लिखा था, “भारत के मूल निवासियों के बीच विज्ञान और साहित्य का लगातार क्षय हो रहा है। विद्वानों की संख्या न सिर्फ कम हो रही है बल्कि उनमें सीखने का दायरा भी सिकुड़ रहा है। गूढ़ विज्ञान को पूरी तरह छोड़ दिया गया। शिष्ट साहित्य की उपेक्षा की गई। अध्ययन की कोई शाखा विकसित नहीं हुई।…ऐसे में अगर सरकार ने मदद के लिए हाथ आगे नहीं बढ़ाया तो पुस्तकों की चाहत रखने वालों से, उनकी व्याख्या करने में सक्षम लोगों से, ज्ञान के पुनरुत्थान की उम्मीद ख़त्म हो सकती है।” इसके बावज़ूद 1813 का अधिकार पत्र कानून पारित होने तक इस दिशा में ख़ास कुछ नहीं हुआ। मग़र इस कानून में ईसाइयत के समर्थक प्रशासकों का वर्ग विशेष प्रावधान शामिल कराने में सफल रहा। इन प्रावधानों में कहा गया, “वायसराय परिषद के लिए न्यायसंगत होगा कि वह सरकार को निर्देश दे। कहे कि हर साल कम से कम एक लाख रुपए अलग से रखे जाएँ। इस रकम का इस्तेमाल भारत के स्थानीय साहित्य के पुनरुद्धार और सुधार तथा यहॉं के बुद्धिजीवियों को प्रोत्साहित करने में किया जाए। इसके अलावा अंग्रेजों के प्रभाव वाले भारतीय इलाकों में रहने वालों को विज्ञान के नए घटनाक्रमों से परिचित कराने, उन्हें इस दिशा में प्रोत्साहित करने का काम भी इस धन से किया जाए”। इस प्रावधान के बाद रकम आवंटित भी की गई। लेकिन वह बहुत मामूली थी। 

इस बीच, निजी संगठन और कुछ अन्य बड़े लोग अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में पश्चिमी शिक्षा की व्यवस्था कराने के लिए बेताब थे। लिहाज़ा इसी क्रम में 1817 में कुछ भारतीयों और ब्रिटिश समुदाय के सदस्यों ने मिलकर ‘कलकत्ता स्कूल बुक सोसायटी’ और हिंदु महाविद्यालय की स्थापना की। इसके बाद अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाने वाले कई विद्यालयों-महाविद्यालयों की स्थापना हुई। इनमें कुछ को ईसाई मिशनरियाँ वित्तीय मदद दे रही थीं। जबकि कुछ को भारतीयों द्वारा मदद मिल रही थी। अलबत्ता, इन संस्थानों को जहाँ ज़्यादातर भारतीय सरकारी नौकरी मिलने और व्यवसाय में संपर्क-संबंध सुगम बनाने की राहदारी मानते थे। वहीं, मिशनरियाँ इन्हें धर्मपरिवर्तन के माध्यम के रूप में देख रही थीं। 

बहरहाल, 1823 में सरकार ने लोकशिक्षण महासभा की स्थापना की। उसे सरकारी शिक्षण संस्थानों के लिए शैक्षिक अनुदान का इंतज़ाम करने की ज़िम्मेदारी दी गई। उसने शिक्षा के लिए आवंटित राशि को संस्कृत और अरबी शिक्षण संस्थानों पर ख़र्च करने का निश्चय किया। इस बीच, सरकार ने संस्कृत शिक्षण के लिए नए महाविद्यालय की स्थापना का जब समर्थन किया तो उसका बहुत विरोध हुआ। समाज सुधारक राममोहन राय ने भी वायसराय को विरोध-पत्र भेजा। इसमें लिखा, “हम इस विचार से ही डरे हुए हैं कि हमें ऐसा विद्यालय मिल रहा है, जो हमारे युवाओं के दिमागों में सिर्फ़ व्याकरण संबंधी बारीकियाँ और आध्यात्मिक महत्ता को भरने वाला है। ऐसी जानकारियाँ, जिनसे व्यक्ति या समाज को कोई लाभ नहीं होने वाला। अगर सरकार की यही नीति है कि इस देश को अंधेरे में रखा जाए तो इसके लिए संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना का विचार सर्वश्रेष्ठ है।” लेकिन इस विरोध का कोई प्रभाव नहीं हुआ। इस मसले पर विचार करने वाली समिति की राय थी कि “यूरोपीय विज्ञान-विषयों की शिक्षा को लेकर न लोगों में विशेष आग्रह है, न यह सरकार की ओर से किया जाने वाला सर्वश्रेष्ठ कार्य।”

(जारी…..)

अनुवाद : नीलेश द्विवेदी 
——
(‘ब्रिटिश भारत’ पुस्तक प्रभात प्रकाशन, दिल्ली से जल्द ही प्रकाशित हो रही है। इसके कॉपीराइट पूरी तरह प्रभात प्रकाशन के पास सुरक्षित हैं। ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ श्रृंखला के अन्तर्गत प्रभात प्रकाशन की लिखित अनुमति से #अपनीडिजिटलडायरी पर इस पुस्तक के प्रसंग प्रकाशित किए जा रहे हैं। देश, समाज, साहित्य, संस्कृति, के प्रति डायरी के सरोकार की वज़ह से। बिना अनुमति इन किस्सों/प्रसंगों का किसी भी तरह से इस्तेमाल सम्बन्धित पक्ष पर कानूनी कार्यवाही का आधार बन सकता है।)
——
पिछली कड़ियाँ : 
31. मानव अंग-विच्छेद की प्रक्रिया में हिस्सा लेने वाले पहले हिन्दु चिकित्सक कौन थे?
30. भारत के ठग अपने काम काे सही ठहराने के लिए कौन सा धार्मिक किस्सा सुनाते थे?
29. भारत से सती प्रथा ख़त्म करने के लिए अंग्रेजों ने क्या प्रक्रिया अपनाई?
28. भारत में बच्चियों को मारने या महिलाओं को सती बनाने के तरीके कैसे थे?
27. अंग्रेज भारत में दास प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या जैसी कुप्रथाएँ रोक क्यों नहीं सके?
26. ब्रिटिश काल में भारतीय कारोबारियों का पहला संगठन कब बना?
25. अंग्रेजों की आर्थिक नीतियों ने भारतीय उद्योग धंधों को किस तरह प्रभावित किया?
24. अंग्रेजों ने ज़मीन और खेती से जुड़े जो नवाचार किए, उसके नुकसान क्या हुए?
23. ‘रैयतवाड़ी व्यवस्था’ किस तरह ‘स्थायी बन्दोबस्त’ से अलग थी?
22. स्थायी बंदोबस्त की व्यवस्था क्यों लागू की गई थी?
21: अंग्रेजों की विधि-संहिता में ‘फौज़दारी कानून’ किस धर्म से प्रेरित था?
20. अंग्रेज हिंदु धार्मिक कानून के बारे में क्या सोचते थे?
19. रेलवे, डाक, तार जैसी सेवाओं के लिए अखिल भारतीय विभाग किसने बनाए?
18. हिन्दुस्तान में ‘भारत सरकार’ ने काम करना कब से शुरू किया?
17. अंग्रेजों को ‘लगान का सिद्धान्त’ किसने दिया था?
16. भारतीयों को सिर्फ़ ‘सक्षम और सुलभ’ सरकार चाहिए, यह कौन मानता था?
15. सरकारी आलोचकों ने अंग्रेजी-सरकार को ‘भगवान विष्णु की आया’ क्यों कहा था?
14. भारत में कलेक्टर और डीएम बिठाने की शुरुआत किसने की थी?
13. ‘महलों का शहर’ किस महानगर को कहा जाता है?
12. भारत में रहे अंग्रेज साहित्यकारों की रचनाएँ शुरू में किस भावना से प्रेरित थीं?
11. भारतीय पुरातत्व का संस्थापक किस अंग्रेज अफ़सर को कहा जाता है?
10. हर हिन्दुस्तानी भ्रष्ट है, ये कौन मानता था?
9. किस डर ने अंग्रेजों को अफ़ग़ानिस्तान में आत्मघाती युद्ध के लिए मज़बूर किया?
8.अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान को किसकी मदद से मारा?
7. सही मायने में हिन्दुस्तान में ब्रिटिश हुक़ूमत की नींव कब पड़ी?
6.जेलों में ख़ास यातना-गृहों को ‘काल-कोठरी’ नाम किसने दिया?
5. शिवाजी ने अंग्रेजों से समझौता क्यूँ किया था?
4. अवध का इलाका काफ़ी समय तक अंग्रेजों के कब्ज़े से बाहर क्यों रहा?
3. हिन्दुस्तान पर अंग्रेजों के आधिपत्य की शुरुआत किन हालात में हुई?
2. औरंगज़ेब को क्यों लगता था कि अकबर ने मुग़ल सल्तनत का नुकसान किया? 
1. बड़े पैमाने पर धर्मांतरण के बावज़ूद हिन्दुस्तान में मुस्लिम अलग-थलग क्यों रहे?

सोशल मीडिया पर शेयर करें
Apni Digital Diary

Share
Published by
Apni Digital Diary

Recent Posts

Dream of Digital India : A cashless India is the first step towards

“In a world that’s rapidly evolving, India is taking giant strides towards a future that’s… Read More

1 day ago

सनातन धर्म क्या है?

(लेखक विषय की गम्भीरता और अपने ज्ञानाभास की सीमा से अनभिज्ञ नहीं है। वह न… Read More

4 days ago

‘जानवरख़ोर’ बुलन्द हैं! हाथी मार दिए गए-सजा किसी को नहीं, बाघ गायब हैं-देखा जाएगा!!

दुनिया में तो होंगे ही, अलबत्ता हिन्दुस्तान में ज़रूर से हैं...‘जानवरख़ोर’ बुलन्द हैं। ‘जानवरख़ोर’ यानि… Read More

4 days ago

वे ‘देवदूत’ की तरह आते हैं, मदद करते हैं और अपने काम में लग जाते हैं!

हम अपने नित्य व्यवहार में बहुत व्यक्तियों से मिलते हैं। जिनके प्रति हमारे विचार प्राय:… Read More

5 days ago

‘मायावी अम्बा और शैतान’: मैं उसे ऐसे छोड़कर नहीं जा सकता, वह मुझसे प्यार करता था!

अंबा को यूँ सामने देखकर तनु बाकर के होश उड़ गए। अंबा जिस तरह से… Read More

7 days ago

भारत को एआई के मामले में पिछलग्गू नहीं रहना है, दुनिया की अगुवाई करनी है

“भारत को बुद्धिमत्ता (कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानि एआई) के आयात के लिए अपनी जानकारियों (डेटा) का… Read More

1 week ago