ज़िन्दगी में कुछ अनुभव हमें विनम्र बना जाते हैं, बताता हूँ कैसे…पढ़िएगा!

निकेश जैन, इ्न्दौर मध्य प्रदेश

ज़िन्दगी में कुछ अनुभव हमें विनम्र बना जाते हैं, बताता हूँ कैसे…पढ़िएगा! 

मैं बस से बद्रीनाथ धाम से ऋषिकेश लौट रहा था। क़रीब 10 घंटे की यात्रा थी। लगभग 70 साल की उम्र के एक बुज़ुर्ग मेरी बगल वाली सीट में बैठे थे। मैंने उनसे बातचीत शुरू की। बिहार से उनका ताल्लुक़ था। बढ़ई का काम किया करते थे। उनकी बड़ी इच्छा थी कि वे बद्रीनाथ धाम का दर्शन करें तो अकेले ही तीर्थयात्रा पर चले आए थे। 

मैंने उनसे पूछा कि क्या उन्होंने केदारनाथ के भी दर्शन किए हैं? तो उन्होंने बताया कि वे 16 किलोमीटर की चढ़ाई पैदल नहीं कर सकते। घोड़े या पालकी से चढ़ाई करने के लायक उनके पास पैसे नहीं थे। उन्होंने यहाँ तक बताया कि वे तीन-चार दिनों से भरपेट भोजन भी नहीं कर पाए हैं। क्योंकि इस क्षेत्र में खाना बहुत महँगा है। 

कुछ समय बाद एक जगह बस रुकी। वहाँ सभी यात्री दोपहर के भोजन के लिए उतरे। मैंने देखा कि उन बुज़ुर्ग ने अपने लिए सिर्फ़ एक बिस्किट का पैकेट लिया, 10 रुपए का। मैं समझ गया कि उनके पास दोपहर के भोजन के लिए आज यही है। मुझे यह देखकर बहुत बुरा लगा। मुझसे रहा नहीं गया। मैंने उनसे पेशकश की कि वे आकर मेरे साथ भोजन कर सकते हैं। तब वे थोड़ा झिझकते हुए राजी हुए। साथ ही उन्होंने बताया कि उनके नजदीकी गाँव के एक और सज्जन हैं। उनकी भी स्थिति उन्हीं के जैसी है। तो मैंने कहा- आप उन्हें भी बुला लीजिए। 

इसके बाद हमने थाली मँगवाई। लेकिन जिस तरह उन दोनों ने उस दिन भोजन किया, मैं देखकर समझ गया कि सच में, उन्होंने बीते कई दिनों से भरपेट भोजन नहीं किया था। कभी-कभी मुझे ऐसे मौक़ों पर खीज होती है। ये सोचकर कि लोगों के पास जब पर्याप्त पैसा नहीं होता तो इतनी दूर-दूर तक यात्रा करने क्यों चल देते हैं। 

अलबत्ता वहाँ मेरी मन:स्थिति भिन्न थी। वहाँ मुझे एहसास हो रहा था कि चार धाम यात्रा करना हम जैसे कई भारतीयों का सपना होता है। इस यात्रा के लिए भारत में लोग जेब में पैसे या अवस्था नहीं देखते। बस, ‘भगवान के बुलावे’ पर अपनी आस्था देखते हैं। जैसे ही उन्हें महसूस होता है कि धाम से बुलावा आया है, वे चल देते हैं। 

सच में, भारत अद्भुत देश है, विविधताओं से भरा हुआ। इस देश को अगर समझना है तो हमें-आपको इसके गाँवों की ख़ाक छाननी होगी। तीर्थों में विचरण करना होगा। दूर-दराज़ के स्थलों में जाना होगा। वह भी एक सामान्य व्यक्ति की तरह। ऐसा होने पर जब हम स्थानीय लोगों और सहयात्रियों से मिलेंगे, बातचीत करेंगे, तब हमें जीवन में कभी न भूलने वाले अनुभव प्राप्त होंगे। ये अनुभव हमें एक इंसान के तौर पर बदलेंगे। विनम्र बनाएँगे। 

सहमत हैं क्या?

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निकेश का मूल लेख

Some experiences make you humble – this was one of those!

I was returning back to Rishikesh from Badrinath in a bus. Long 10 hours journey. An old man in his 70s; seemed from a humble background was sitting next to me.

I started talking to him. He was a retired carpenter by profession and came from Bihar. He had deep desire to visit Badrinath and was traveling alone.

I asked him if he would visit Kedarnath also but he said he couldn’t walk 16km and couldn’t afford a horse or a palki so wouldn’t visit.

In some context, he also mentioned that food is very expensive in this region and he didn’t have a proper meal in last 3-4 days.

After couple of hours bus stopped for lunch. I saw this gentleman buying a 10 Rs Parle G biscuit which meant that was his lunch!! I felt really bad.

I politely invited him to have his lunch with me; he had an acquaintance also (some guy with a near by village from a similar humble background). I asked him to call that person also to join us.

We ordered our lunch (the usual thali) and the way these two gentlemen ate, I could tell they had not eaten properly in last few days!

Sometimes it makes me angry also that why these people travel to such distant places when they don’t have enough money but then I realize “char dham” is a dream for many and its their faith which brings them there.

India is a diverse country and if you want to learn about India, you must travel to villages, pilgrims and far off places and that too like normal people. The interaction with co-passengers and locals will be a life time experience and will change you as a person!

Agree? 

——- 

(निकेश जैन, शिक्षण-प्रशिक्षण के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी- एड्यूरिगो टेक्नोलॉजी के सह-संस्थापक हैं। उनकी अनुमति से उनका यह लेख अपेक्षित संशोधनों और भाषायी बदलावों के साथ #अपनीडिजिटलडायरी पर लिया गया है। मूल रूप से अंग्रेजी में उन्होंने इसे लिंक्डइन पर लिखा है।)

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निकेश के पिछले 10 लेख

39 – भारत सिर्फ़ अंग्रेजी ही नहीं बोलता!
38 – भारत को एआई के मामले में पिछलग्गू नहीं रहना है, दुनिया की अगुवाई करनी है
37 – क्रिकेट ने मुझे बहुत कुछ सिखाया, सबसे अहम ‘टीम वर्क’
36 – किसी की क्षमताओं को कम आँकना हमेशा ग़लत ही होता है!
35 – इकोसिस्टम तब बनता है, जब एक सफल इकाई दूसरी को सफल बनाने में लग जाए!
34 – ये कहना झूठ है कि जहाँ लड़ाई हो रही है, काम वहीं हो रहा है!
33 – कर्मचारियों से काम लेते हुए थोड़ा लचीलापन तो हर कम्पनी को रखना चाहिए, बशर्ते…
32 – …तब तक ओलिम्पिक में भारत को पदक न मिलें तो शिकायत मत कीजिए!
31 – देखिए, कैसे अंग्रेजी ने मेरी तरक़्क़ी की रफ्तार धीमी कर दी !
30 – हिंडेनबर्ग रिपोर्ट क्यों भारत के विरुद्ध अन्तर्राष्ट्रीय साज़िश का हिस्सा हो सकती है?

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