समीर शिवाजीराव पाटिल, भोपाल मध्य प्रदेश
ज़िन्दगी में हम जिन चीज़ों को मूल्यवान समझते हैं, या जिनकी क़द्र करते हैं, उसे हम सबसे साझा भी करते हैं। अगर हम पान का शौक फ़रमाते हैं, ख़ुद पान का लुत्फ़ उठाते हैं तो बहुत मुमकिन है कि अपने आस-पास के लोगों को भी एक पान की गिलौरी पेश कर दें। यह कमोबेश उन सभी बातों पर लागू है, जिनसे हम गहरा नाता रखते हैं। इस बात को उलट कर देखें तो कह सकते हैं कि हम दूसरों से वहीं बातें साझा करना पसन्द करते हैं जो हमें भीतर तक आनन्द देती हैं, जिसे हम अपनी पहचान बनाना चाहते हैं।
इस सन्दर्भ में हम में से कई लोगों ने ग़ौर किया होगा कि यूट्यूब, इंस्टाग्राम, टिक-टाॅक आदि पर चीन से सैकड़ाें रील्स और क्लिप्स आती हैं। उनमें किसान बेहद ललचाने वाले पके आम, लीची, बेर, अंगूर, अमरूद, सन्तरा, जैसे न जाने कितने जाने-अनजाने फलों की नुमाईश करते हैं। वह भी बेहद रोचक तरीके से। इनमें सबसे ख़ास बात होती है, उन आम किसानों की गौरवानुभूति। वे जिस गर्व और उत्साह से अपनी फसल दिखाते हैं, उसे देखने वाला बरबस उस भावलोक में पहुँच जाता है। ऐसी ही रील्स खेतों में शाक-सब्जियों की, फसलों की आती है। एक पौधे से डेढ़-दो सेर भर से ज़्यादा पैदा होते आलू, शकरकंद, गोभी, मिर्च के पौधे दिलो-दिमाग़ को ख़ुश कर देते हैं। अपने काम और उत्पादों का ऐसा उत्सव मनाते देखना बहुत प्रेरक होता है।
इसी तरह, हमारे राजस्थान गुजरात, हरियाणा आदि के गौपालक अपनी गाय-भैसों को ऐसी ही शान से दिखाते हैं। उत्तरप्रदेश, बिहार, कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों की दादी माँ पारम्परिक रसोई की रील्स शेयर करती हैं और चन्द घंटों में लाखों लोगों की पसन्द बन जाती है। ठेठ ग्रामीण बोली में भजन-कीर्तन और कथाएँ भी लोगों को भीतर तक आल्हादित कर देती हैं। इसके मायने क्या हैं? यही कि जो बात हमें रसानुभूति देती है, जिससे हम गौरवान्वित होते हैं, वही दूसरों को भी अपील करती हैं।
इसीलिए हम-आप जैसे आम लोग यदि अपनी ज़िन्दगी की रोचक और आनन्द देने वाली अच्छी-अच्छी छोटी-बड़ी बातों का अधिक से अधिक प्रसार करना शुरू कर दें, तो इन्टरनेट की दुनिया बेहतर जगह बन जाएगी। रील्स, जो अभी हमारे बच्चों को बिगाड़ने, सम्बन्धों को ख़राब करने और युवाओं को भ्रमित करने वाली लगती हैं, वे हमारे ऐसे छोटे से प्रयास से सकारात्मकता फैलाने वाली बन सकती है। तो, बेहतर होगा कि हम जीवन में कुछ भी मूल्यवान, सकारात्मक, प्रेरक या रसपूर्ण से रूबरू हों, तो उसे इन्टरनेट के किसी भी माध्यम से दुनिया में साझा कर उसका उत्सव मनाएँ।
ध्यान रखें यदि हम अच्छी चीज़ों का प्रसार नहीं करते, तो निश्चित ही कोई वहाँ बुरी चीज़ें फैलाएगा। क्योंकि यहाँ निर्वात (खालीपन) के लिए कोई जगह नहीं।
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(नोट : #अपनीडिजिटलडायरी के शुरुआती और सुधी-सदस्यों में से एक हैं समीर। भोपाल, मध्य प्रदेश में नौकरी करते हैं। उज्जैन के रहने वाले हैं। पढ़ने, लिखने में स्वाभाविक रुचि रखते हैं। वैचारिक लेखों के साथ कभी-कभी उतनी ही विचारशील कविताएँ, व्यंग्य आदि भी लिखते हैं। डायरी के पन्नों पर लगातार अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराया करते हैं।)
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