शिवाजी ‘महाराज’ : राजे को तलवार बहुत पसन्द आई, आगे इसी को उन्होंने नाम दिया ‘भवानी’

बाबा साहब पुरन्दरे द्वारा लिखित और ‘महाराज’ शीर्षक से हिन्दी में प्रकाशित पुस्तक से

शिवाजी राजे का ध्यान अब कोंकण किनारे पर लगा हुआ था। उन्हें साफ नजर आ रहा था कि पश्चिम का यह सिन्धु सागर स्वराज्य-सत्ता के गले न मिला तो निकट भविष्य में फिरंगी और हब्शी नौ-दलों (नाै-सेनाओं) की जड़ें यहाँ अत्यधिक गहरी हो जाएँगी। राजे को अब बलाढ्य नौ-दल की जरूरत थी। सो, कोंकण में प्रवेश कर उन्होंने झपट्टा मारा दाभोल बन्दरगाह पर (सन् 1656 के आखिर में)। गेरुए झंडे की परछाई समुन्दर में तैरने लगी। रघुनाथ बल्लाल अत्रे ने दाभोल बन्दरगाह पर विजय प्राप्त की।

अगले साल ऐन बारिश में रघुनाथ बल्लाल अत्रे ने महाड़ से हब्शियों की दंडाराजपुरी पर ही मोर्चा लगाया (दिनांक 14 अगस्त, 1657)। मुरूड, दंडाराजपुरी के बीच वाले सगरी मुल्क का काफी भू-भाग एवं किनारा, अत्रे ने स्वराज्य में शामिल कर लिया। सह्याद्रि, शिवाजी और समुन्दर अब इक्टठा हो गए। सिद्दी एवं फिरंगियों के दिल दहल गए। कोंकण में उनके लिए एक जानी दुश्मन पैदा हो गया। मोर्चे में रघुनाथ पन्त खासे सिद्दियों का जंजीरा, समुद्री किला जीत न पाए। लेकिन जब से जंजीरे में सिद्दियों की सत्ता स्थापित हुई थी, तब से (लगभग 1458 से) मराठे, सिद्दियों की ठोकरें ही खाते चले आ रहे थे। पर अब उन्होंने सिद्दियों को करारा जवाब दिया था।

इस साल राजे के दो सरदारों ने कल्याण, भिवंडी पर धावा बोल दिया। एक ही दिन दादाजी बापूजी राँझेकर और सखो कृष्ण लोहोकरे ने कल्याण, भिवंडी जीत लिए। कल्याण के दुर्गाड़ी किले पर स्वराज्य का निशान लग गया। जीत की खबर मिलते ही स्वयं राजे कल्याण पधारे। कल्याण की खाड़ी में मराठों के जीते हुए जहाज खड़े थे। इन्हीं जहाजों से स्वराज्य के नौ-दल का शुभारम्भ हुआ। इसी कोंकण अभियान में शिवाजी राजे ने कल्याण प्रान्त का बहुत बड़ा किला माहुलीगढ़ जीत लिया (दिनांक 8 जनवरी, 1658)। इस चंड पराक्रम से मराठों के सीने चौड़े हो रहे थे। जलयानों के पाल अभिमान से फूल रहे थे। राजे ने नौ-दल के प्रमुख अधिकारी, दर्यासारंग को सरखेल (नौ-सेना प्रमुख) बनाया। इब्राहिम खान दौलत खान और मायनाक भंडारी को उसके मातहत तैनात किया।

शिवाजी राजे सह्याद्रि, समुन्दर और स्वामिनिष्ठ मावलों की प्रचंड ताकत जानते थे। इन तीनों ताकतों का युक्ति के साथ उपयोग कर महाबलवान् स्वराज्य की स्थापना करना चाहते थे। सह्याद्रि और मावलों की मदद से उन्होंने आदिलशाही, मुगलशाही और निजामशाहियों को नाकों चने चबवाए थे। बलशाही नौ-सेना की मदद से वह फिरंगी और सिद्दियों की गुलामी से समुन्दर को मुक्त करना चाहते थे।

लिहाजा, शिवाजी राजे ने कुलाबा प्रान्त पर धावा बोल दिया। आदिलशाही की तले तथा घोसाले नाम की दो चीकियाँ उन्होंने जीत लीं (अप्रैल, 1658)। दक्षिण कोंकण पर भी उन्होंने हमला किया। कुलाबा एवं रत्नागिरि प्रान्त के काफी सारे समुन्दरी थाने तथा किनारे का बड़ा हिस्सा राजे ने अख्तियार में कर लिया। रत्नागिरि, खारेपाटन, घेरिया वगैरा थाने जीतकर वह कुदाल मोर्चे पर गए। इसी समय संगमिरी नामक नए गतिशील लड़ाकू जहाज स्वराज्य के नौ-दल में शामिल हुए। इनसे घेरिया, कल्याण और सुवर्णदुर्ग जैसे नौ-दलीय थानों की स्थिति मजबूत हुई।

इसी बीच (सन् 1658 उत्तरार्ध), मोरोपन्त जी ने प्रतापगढ़ किले के निर्माण का काम पूरा किया। लगातार दो साल से यह काम जारी था। किले में एक प्रमुख तथा छह चोर दरवाजे रखे गए थे। यद्यपि किला छोटा था, फिर भी बहुत दुर्गम था। चारों तरफ प्रचंड चट्टानें, कन्दराएँ, दर्रे एवं उन्नत शिखर थे। इर्द-गिर्द घना जंगल था। किले की चहारदीवारी मजबूत थी। सूर्य बुर्ज, केदार बुर्ज, रेडे बुर्ज, यशवन्त बुर्ज, दख्खन बुर्ज, सुराग बुर्ज, राजपहरा, किले के भीतर की प्रमुख इमारत, राजसभा, राजमहल, तालाब, मचान और केदारेश्वर का मन्दिर बनकर तैयार थे। किले के परकोटों में छोटी-बड़ी चौकियाँ रखी गई थीं। प्रतापगढ़ के मातहत मंगलगढ़, चन्द्रगढ़ और मकरन्दगढ़ किले थे। वे भी स्वराज्य में ही थे। जावली के अत्यन्त विकट दर्रे में बसा प्रतापगढ़ बहुत बलाढ्य हो गया था। राजे और जिजाऊ साहब को प्रतापगढ़ बेहद पसन्द आया। उन्होंने गढ़ का किलेदार अर्जोजी यादव को बनाया।

इसके बाद अब राजे कुड़ाल जा धमके। कुड़ाल पर उन्होंने अख्तियार कर लिया। सावन्तवाड़ी के आदिलशाही जागीरदार लखम सावन्त भोसले शिवाजी राजे के साथ शामिल हुए। इसी कुड़ाल मुकाम में गोवलेकर सावन्तों ने शिवाजी राजे को एक बढ़िया फिरंगी तलवार नजर की। यह तलवार रेखा की तरह सरल थी और उसके दोनों तरफ सान चढ़ी हुई थी। राजे ने तलवार की भेंट स्वीकार की। गोवलेकर को बदले में तीन सौ होन (स्वर्ण मुद्राएँ) तथा सम्मान-सूचक वस्त्र दिए गए। राजे को तलवार बहुत पसन्द आई। आगे चलकर इसी तलवार को उन्होंने नाम दिया ‘भवानी’।

स्वराज्य की अमृत कल्पना अब सच्चाई में परिणत होने लगी थी। स्वराज्य का संसार फूलने-फलने लगा था। सम्भाजी राजे के जन्म से शिवाजी राजे की निजी गृहस्थी भी फूलने-फलने लगी थी। लेकिन तभी पत्नी सईबाई साहब पर बीमारी का साया पड़ा। राजे कुडाल से लौटे तब सईबाई रानी साहिबा सख्त बीमार थीं। राजे मुहिम जीत कर आए थे। पर पत्नी की बीमारी से मन में एक टीस सी उठी थी। 
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(नोट : यह श्रृंखला #अपनीडिजिटलडायरी पर डायरी के विशिष्ट सरोकारों के तहत प्रकाशित की जा रही है। छत्रपति शिवाजी के जीवन पर ‘जाणता राजा’ जैसा मशहूर नाटक लिखने और निर्देशित करने वाले महाराष्ट्र के विख्यात नाटककार, इतिहासकार बाबा साहब पुरन्दरे ने एक किताब भी लिखी है। हिन्दी में ‘महाराज’ के नाम से प्रकाशित इस क़िताब में छत्रपति शिवाजी के जीवन-चरित्र को उकेरतीं छोटी-छोटी कहानियाँ हैं। ये कहानियाँ उसी पुस्तक से ली गईं हैं। इन्हें श्रृंखला के रूप में प्रकाशित करने का उद्देश्य सिर्फ़ इतना है कि पुरन्दरे जी ने जीवनभर शिवाजी महाराज के जीवन-चरित्र को सामने लाने का जो अथक प्रयास किया, उसकी कुछ जानकारी #अपनीडिजिटलडायरी के पाठकों तक भी पहुँचे। इस सामग्री पर #अपनीडिजिटलडायरी किसी तरह के कॉपीराइट का दावा नहीं करती। इससे सम्बन्धित सभी अधिकार बाबा साहब पुरन्दरे और उनके द्वारा प्राधिकृत लोगों के पास सुरक्षित हैं।) 
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शिवाजी ‘महाराज’ श्रृंखला की पिछली कड़ियाँ 
15- शिवाजी महाराज : कमजोर को कोई नहीं पूछता, सो उठो! शक्ति की उपासना करो
14- शिवाजी महाराज : बोलो “क्या चाहिए तुम्हें? तुम्हारा सुहाग या स्वराज्य?
13- शिवाजी ‘महाराज’ : “दगाबाज लोग दगा करने से पहले बहुत ज्यादा मुहब्बत जताते हैं”
12- शिवाजी ‘महाराज’ : सह्याद्रि के कन्धों पर बसे किले ललकार रहे थे, “उठो बगावत करो” और…
11- शिवाजी ‘महाराज’ : दुष्टों को सजा देने के लिए शिवाजी राजे अपनी सामर्थ्य बढ़ा रहे थे
10- शिवाजी ‘महाराज’ : आदिलशाही फौज ने पुणे को रौंद डाला था, पर अब भाग्य ने करवट ली थी
9- शिवाजी ‘महाराज’ : “करे खाने को मोहताज… कहे तुका, भगवन्! अब तो नींद से जागो”
8- शिवाजी ‘महाराज’ : शिवबा ने सूरज, सूरज ने शिवबा को देखा…पता नहीं कौन चकाचौंध हुआ
7- शिवाजी ‘महाराज’ : रात के अंधियारे में शिवाजी का जन्म…. क्रान्ति हमेशा अँधेरे से अंकुरित होती है
6- शिवाजी ‘महाराज’ : मन की सनक और सुल्तान ने जिजाऊ साहब का मायका उजाड़ डाला
5- शिवाजी ‘महाराज’ : …जब एक हाथी के कारण रिश्तों में कभी न पटने वाली दरार आ गई
4- शिवाजी ‘महाराज’ : मराठाओं को ख्याल भी नहीं था कि उनकी बगावत से सल्तनतें ढह जाएँगी
3- शिवाजी ‘महाराज’ : महज पखवाड़े भर की लड़ाई और मराठों का सूरमा राजा, पठाणों का मातहत हुआ
2- शिवाजी ‘महाराज’ : आक्रान्ताओं से पहले….. दुग्धधवल चाँदनी में नहाती थी महाराष्ट्र की राज्यश्री!
1- शिवाजी ‘महाराज’ : किहाँ किहाँ का प्रथम मधुर स्वर….

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Neelesh Dwivedi

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