ये पंछियों की चहचहाहट नहीं, समय का गीत है

दीपिका शर्मा, नीमराना, राजस्थान से, 21/05/2021

ये राजस्थान के एक गाँव का दृश्य है। सवेरा अभी हुआ नहीं है। बस होने को है। यह सूर्योदय से ठीक पहले की वेला है। मई का महीना है। लेकिन ‘ताऊ ते’ तूफ़ान का कुछ असर है। इससे बेख़बर कि इसने हज़ारों घर तबाह किए हैं और सैकड़ों जानें भी ली हैं। यहाँ दो दिन से लगातार बारिश हो रही है। इसलिए मई की बीती तारीख प्रदेश में 10 साल की सबसे कम गर्म रही। ये और बात है कि प्रदेश में अग्रणी और देश का नम्बर-एक अख़बार होने का दावा करने वाला समाचार पत्र मई को सबसे ठंडी कह देता है। अख़बार के पहले पन्ने पर मोटे-मोटे अक्षरों में लिखी यह बात पढ़कर मैं अपनी हँसी नहीं रोक पाती हूँ। 

बहरहाल! हम अख़बार देखकर 10 साल में पहली बार बन रही इतनी ख़ूबसूरत मई की सुबह को किरकिरा क्यों करें। अब हल्की-हल्की बूँदा-बाँदी शुरू हो गई है। ठंडी हवा चल रही है। पंछी चहक रहे हैं। जैसे सुर में सुर मिलाकर गा रहे हों। एक तरफ़ से मोरों का एक झुंड एक ताल उठाता है, तो दूसरी तरफ़ से दूसरा झुंड उस आलाप को आगे बढ़ाता है। मानो कव्वाली गा रहे हों। मोर थमते हैं तो चिड़ियों की चीं-चीं-चीं-चीं सुनाई पड़ने लगती है। कोयल जैसे इन्हें पार्श्व संगीत दे रही है। 

मैं उठकर घर की सारी खिड़कियाँ खोल देती हूँ। बाहर का उजाला रात का सारा अँधेरा हर चुका है। खिड़कियों के खुलने के साथ ही मेरे मन का अँधेरा भी कम हो जाता है। मेरे सामने कचरे का ढेर पड़ा है, जो महीनों से उठा नहीं है। इसी कचरे को उठाने के वादे पर ग्राम पंचायत के चुनाव में वोट भी माँगे और दिए गए थे। लेकिन चुनाव और वोट की अपनी प्रकृति है। फिलहाल इस चुनावी प्रकृति पर कुदरती प्रकृति भारी पड़ रही है। कचरे के ढेर के बावजूद मेरा ध्यान उसके ठीक बगल से गुज़र रहे बिजली के तारों पर बैठे पंछियों पर टिक जाता है। 

एक बेहद ख़ूबसूरत चिड़िया बैठी है यहाँ। मैं नहीं जानती कि यह किस प्रजाति की है। हल्की गुलाबी और भूरे रंग की चिड़िया। यह अपनी गर्दन को कभी दाएँ तो कभी बाएँ गिराकर आँखें मिचकाकर ऐसे देखती है कि मुझे पुराणों में इन्द्र की तपस्या भंग करने आई मेनका का प्रसंग याद आ जाता है। हमारे यहाँ सुन्दर स्त्री की उपमा मेनका से ही दी जाती रही है। यह चिड़िया मुझे किसी मेनका से कम नहीं नज़र आती। 

इसके बगल में ही इसकी एक और सखी आकर बैठ जाती है। इसके पाँव पीले हैं। गर्दन पीली है। पीठ भूरे रंग की है। आँखों के ऊपर कलंगी पर एकदम काले बाल हैं, जो थोड़े बड़े हैं। ये बाल तेज़ हवा में लहरा रहे हैं। लहराते बालों में यह चिड़िया इतनी ख़ूबसूरत लगती है कि मैं इसकी तस्वीरें खींचना भी भूल जाती हूँ। एक और चिड़िया है। हल्के भूरे रंग की। खुले-खुले से पंखों वाली। बाकी की तुलना में शरीर में थोड़ी-सी भारी। छोटी। ये पंछी संभवतः इन दिनों प्रवास पर होंगे। मैंने इससे पहले अपने गाँव में इन्हें कभी नहीं देखा।

सामने ही मुंडेर पर छह तोते कतार में लगकर दाना चुग रहे हैं। तीन एक तरफ और तीन उनके ठीक सामने। बीच में चुग्गा है। इन तोतों की कतार जहाँ ख़त्म होती है, उसी सिरे पर बीच में एक कबूतर भी बैठा दाना चुग रहा है। जैसे खाने की मेज पर तीन-तीन कुर्सियों की कतार में बैठकर खाया जाता है और घर का सबसे बड़ा व्यक्ति बीच वाली कुर्सी पर बैठता है। 

सामने बरगद के पेड़ पर आराम करने वाली मुद्रा में मोर बैठे हैं। इन सब मोरों की अपनी-अपनी डालियाँ हैं। यही डालियाँ इनका घर हैं। एक मोर है, जिसे मैं दो दिन से देख रही हूँ। वह थोड़ा बूढ़ा है। उसके पंख बारिश में भीगने से भारी हो गए हैं। वह उड़ने में असमर्थ है। दो दिन से वहीं बैठा भीग रहा है। उसे देखकर लगता है, जैसे उसे जाड़ा लग रहा है। मेरा मन होता है कि मैं उसे घर ले आऊँ। फिर सोचती हूँ कि जब बारिश शुरू होने लगी थी तो यह कहीं और जाकर क्यों नहीं बैठ गया। फिर सोचती हूँ कि अगर हमारी छत से भी पानी गिरने लगे, तो क्या हम अपना घर छोड़ देते हैं। हम भी तो नहीं छोड़ते। हम उपाय करते हैं। यह भी किसी उपाय में लगा होगा और संभवतः बारिश थमने पर उसे अंजाम देगा। 

बारिश से मौसम जैसे ही ख़ुशगवार होता है, ये पंछी बाहर निकलकर जैसे अपने स्टूडियो में लाइव परफॉर्मेंस पर लग जाते हैं।

ऐसे समय में जब कोरोना से एक दिन में सबसे ज़्यादा मौतों का आधिकारिक आंकड़ा भी मेरे देश के नाम हो चुका है। जब मेरे अपने परिवार से लेकर हर परिचित के परिवार में कोई न कोई अप्रिय घटना घट चुकी है, गाँव की यह सुबह मन में भरी उदासी को कुछ पल के लिए थोड़ा दूर करती है। गाँव की ठंडी हवा और सन्नाटे में शहर की चीत्कार नहीं है। ये सारे पंछी मिलकर समय का गीत रच रहे हैं।

————

(दीपिका आज तक, नई दुनिया, जागरण, पीपिंग मून और बायडान्स जैसे संस्थानों में काम कर चुकी हैं। इन दिनों स्वतंत्र पत्रकार हैं। नीमराना में रहती हैं। #अपनीडिजिटलडायरी की नियमित पाठक हैं। यह डायरी पर इनका पहला पन्ना है, जो इन्होंने वॉट्सऐप के ज़रिए साझा किया है।)

सोशल मीडिया पर शेयर करें
Apni Digital Diary

Share
Published by
Apni Digital Diary

Recent Posts

तिरुपति बालाजी के लड्‌डू ‘प्रसाद में माँसाहार’, बात सच हो या नहीं चिन्ताजनक बहुत है!

यह जानकारी गुरुवार, 19 सितम्बर को आरोप की शक़्ल में सामने आई कि तिरुपति बालाजी… Read More

8 hours ago

‘मायावी अम्बा और शैतान’ : वह रो रहा था क्योंकि उसे पता था कि वह पाप कर रहा है!

बाहर बारिश हो रही थी। पानी के साथ ओले भी गिर रहे थे। सूरज अस्त… Read More

1 day ago

नमो-भारत : स्पेन से आई ट्रेन हिन्दुस्तान में ‘गुम हो गई, या उसने यहाँ सूरत बदल’ ली?

एक ट्रेन के हिन्दुस्तान में ‘ग़ुम हो जाने की कहानी’ सुनाते हैं। वह साल 2016… Read More

2 days ago

मतदान से पहले सावधान, ‘मुफ़्तख़ोर सियासत’ हिमाचल, पंजाब को संकट में डाल चुकी है!

देश के दो राज्यों- जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में इस वक़्त विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया चल… Read More

3 days ago

तो जी के क्या करेंगे… इसीलिए हम आत्महत्या रोकने वाली ‘टूलकिट’ बना रहे हैं!

तनाव के उन क्षणों में वे लोग भी आत्महत्या कर लेते हैं, जिनके पास शान,… Read More

5 days ago

हिन्दी दिवस :  छोटी सी बच्ची, छोटा सा वीडियो, छोटी सी कविता, बड़ा सा सन्देश…, सुनिए!

छोटी सी बच्ची, छोटा सा वीडियो, छोटी सी कविता, लेकिन बड़ा सा सन्देश... हम सब… Read More

6 days ago