संदीप नाईक, देवास, मध्य प्रदेश से, 07/02/2022
पचमढ़ी में किसी भी जगह जाओ- चाहे छोटे झरनों से झरते पानी को छूने के लिए बी-फॉल में नीचे उतरो, छुपने के लिए पांडव गुफ़ा जाओ, धूपगढ़ का सूर्योदय देखो या सूर्यास्त, दर्शन के लिए गुप्त महादेव जाओ या सिर्फ़ यूँ ही यायावरी करते हुए पहाड़ों में घूमते रहो, आपको उस वीराने में कोई न कोई गाने वाला मिल ही जाएगा। एक बूढ़ी औरत को बहुदा मैंने वहाँ देखा है। वह अकेले में अपनी धुन में गाती रहती है। पता नहीं कौन मीरा दीवानी है।
चित्रकूट जाओ, अनुसूया के मंदिर जाओ या पहाड़ पर किसी मंदिर जाओ। सरयू में पाँव डालकर घंटों बैठे रहो। एक बंजारा वहाँ गाता रहता है। तम्बूरे पर। उसके पास इतना दर्द है कि उसकी आवाज़ सुनकर आप पल भर ठहर जाते हैं।
समझ ही नहीं आता कि ये एकाकी स्वरों में गाने वाले, वीराने में भटकने वाले क्यों इतना विराट गाते हैं। इनके पास ऐसी कौनसी ऊर्जा और ताकत है जो ये बरसों से लगातार गा रहे हैं। हो सकता है, वे बदल भी जाते हों। परन्तु मुझे हर बार वही चेहरा नज़र आता है।
मांडव जाता हूँ तो जहाज महल में सुनाई देती है एक उदास दर्द में डूबी आवाज़। रानी रूपमती के महल में। लगता है, कोई नाद के स्वर बज रहे हों। मंडला में गौंड राजाओं के किले में बन्द पड़े उस कमरे में मधुमक्खियों की भिनभिनाहट मुझे पूर्वा धनश्री राग की याद दिलाती है।
ओंकारेश्वर जाता हूँ तो वहाँ नर्मदा नदी के किनारे कलकल बहती नदी में मालकौंस सुनाई देता है। महेश्वर जाता हूँ तो नर्मदा के घाटों पर यमन और ललित सुनाई देता है। ऊँचे महल की दीवारें मल्हार गाते सुनाई देती हैं।
भेड़ाघाट में ऐसा लगता है, जैसे हरिप्रसाद चौरसिया बैठकर बाँसुरी पर पहाड़ी कानड़ा की धुन बजा रहे हों। और जिस तेज़ी से वह पानी गिरता है, उससे लगता है कि ज़ाकिर हुसैन कोई नई बंदिश लेकर आए हैं।
थकी-हारी नर्मदा नदी जब मंडला में सहस्र धाराओं पर जाकर हाँफती है, तो लगता है कोई नृत्यांगना लगातार थाप पर नाचते हुए बैठ गई है। और अब मन ही मन आलाप लेकर दिल-दिमाग़ में थिरक रही है।
जब पानी, पहाड़, नदी, उजड़े महल, घुँघरुओं की थाप पर घूमती धरती या वीराने में गूँजती आवाज़ें, सब इश्क़ के सबब हैं तो प्रेम को बार-बार परिभाषित करने की क्या ज़रूरत है? यह प्रेम ही है जो सदियों से पागलों की तरह इसी उजाड़ में लगातार अनहद नाद की तरह बज रहा है। और फरवरी माह में जब बसंत मेरे पास से गुज़रता है तो ये आवाज़ ही है, जो मुझे पागल कर देती है। अब समझ आता है कि ऐसा क्यों होता है। जानते हैं न क्यों होता है? क्योंकि फरवरी इश्क़ का महीना है।
————————————————————————————
विशेष आग्रहः यदि आप भी छेड़ना चाहते हैं इश्क़ राग, तो हमें लिख भेजिए।
टेलीग्राम चैनलः सभी अपडेट्स सबसे पहले टेलीग्राम पर। क्लिक कर जुड़िए।
————————————————————————————
(संदीप जी स्वतंत्र लेखक हैं। डायरी का यह पन्ना उन्होंने लाड़-प्यार से हमें उपलब्ध कराया है। फरवरी का महीना जो है… यह डायरी के प्रेम का भी प्रतीक है। टीम डायरी उनकी आभारी है।)
'कल स्कूल आएगी/आएगा क्या?' ये सफ़र अब ख़त्म हुआ। मई 2018 से शुरू आरपीवीवी का… Read More
पहले #अपनीडिजिटलडायरी के इन्हीं पन्नों पर अमेरिका के वोक कल्चर और अतिउदारवाद के दुष्परिणामों पर… Read More
दिल्ली में ‘सत्ता का हरण’ हो गया। उनके हाथों से, जो जमीन से कटे हुए… Read More
प्रिय मुनिया, मेरी गिलहरी तुम आज पूरे तीन साल की हो गई हो। इस बार… Read More
इरावती नदी अनंत काल से होरी पर्वतों से लगकर बह रही है, अनवरत। इस नदी… Read More
अंग्रेजी के जाने-माने लेखक और कहानीकार रुडयार्ड किपलिंग की कालजयी रचना ‘द जंगल बुक’ में… Read More