नीलेश द्विवेदी, भोपाल, मध्य प्रदेश से
…. तुम तो नदी की धारा के साथ दौड़ रहे हो।
उस सुख को कैसे समझोगे,
जो हमें नदी को देखकर मिलता है।
और वह फूल तुम्हें कैसे दिखाई देगा,
जो हमारी झिलमिल अँधियारी में खिलता है।…
… तुम जी रहे हो,
हम जीने की इच्छा को तौल रहे हैं।
आयु तेजी से भागी जाती है,
और हम अँधेरे में जीवन का अर्थ टटोल रहे हैं।
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ये कुछ पंक्तियाँ हैं, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कविता ‘शोक की सन्तान’ से। बहुत गहरे और सार्थक अर्थों वाली यह पूरी कविता ऑडियो में सुनिएगा। नीलेश द्विवेदी की आवाज़ में। जितना आनन्द आएगा, जितनी ‘रोचक’ यानी दिलचस्प लगेगी, उतनी ‘सोचक’ भी मतलब आप सोचने पर विवश भी होंगे। (कविता कोष से साभार)