नीलेश द्विवेदी, भोपाल, मध्य प्रदेश से
भारतीय क्रिकेट की इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल)-2023 ख़त्म हो चुकी। इसी 29 मई को चेन्नई और गुजरात के बीच हुए फाइनल मैच के साथ आईपीएल की इस बार की गतिविधियों पर विराम लगा। लेकिन तीन दिन बीत जाने के बाद भी चेन्नई के कप्तान महेन्द्र सिंह धौनी को लेकर चल रही चर्चाओं पर विराम नहीं लगा। वे ख़त्म नहीं हुईं, बल्कि उसी तरह जारी हैं, जैसे आईपीएल के शुरू होते ही चल पड़ी थीं और पूरे आयोजन के दौरान चलती रहीं। मुख्य रूप से दो बातें हैं, इन चर्चाओं के केन्द्र में। पहली- क्या धौनी अब मैदान पर नज़र नहीं आएँगे? इसका ज़वाब धौनी दे चुके हैं, “मैं अगले छह-सात महीने में अपनी सेहत की स्थिति को देखते हुए फ़ैसला लूँगा।” इसके अलावा दूसरी बातें धौनी के व्यक्तित्त्व और नेतृत्त्व की ख़ासियतों से जुड़ी हैं। और यही हैं, जो सही मायने में सभी के लिए उपयोगी हैं। क्योंकि सफल नेतृत्त्व हर किसी की ज़रूरत है। कोई ख़ुद करना चाहता है, तो किसी को अन्य के प्रभावशाली नेतृत्त्व की दरकार रहती है। जबकि परिपक्व व्यक्तित्त्व वह विशिष्टता है, जो जिसमें आ गई, उसके लिए जीवन में बाकी चीज़ें बहुत आसान हो जाती हैं। लिहाज़ा, ये विशिष्टताएँ धौनी के बारे देख, सुन और समझकर उनसे सीखी जा सकती हैं।
मसलन, धौनी के साथ खेल चुके इरफान पठान जैसे खिलाड़ियों ने पूरे आयोजन के दौरान कई बार बताया कि धौनी टीम के किसी खिलाड़ी पर कोई दबाव नहीं बनाते। आँकड़ों के विश्लेषण आदि के ज़रिए दूसरी टीम की मज़बूती और अपने साथियों की कमज़ोरियों को वह ध्यान में रखते होंगे। मगर टीम के दूसरे खिलाड़ियों को इसका भय नहीं दिखाते। यहाँ तक कि अनौपचारिक-औपचारिक बैठकों, आदि में न तो अपना वक़्त ज़ाया करते हैं, न ही दूसरे साथी खिलाड़ियों का। वह व्यक्तिगत रूप से हर खिलाड़ी को टीम में, और मैच के दौरान मैदान पर, उसकी ज़िम्मेदारी बताते हैं। उसकी भूमिका समझाते हैं। फिर उस ज़िम्मेदारी के निर्वाह के लिए उसे पूरा वक़्त देते हैं। कुछ मामूली ग़लतियों के बावजूद उस पर भरोसा बनाए रखते हैं। इससे हर खिलाड़ी स्वयं की ज़िम्मेदारी समझते हुए खुलकर अपनी ताक़त, विशिष्टता और ख़ुद की योजना के अनुरूप टीम की जीत में, उसे आगे ले जाने में योगदान दे पाता है।
उदाहरण इस बार के आईपीएल फाइनल मैच का ही ले सकते हैं। फाइनल मैच के आख़िरी ओवर में चेन्नई को जीत के लिए 13 रन चाहिए थे। सामने मोहित शर्मा के रूप में गुजरात के वह गेंदबाज़, जिन्होंने पहले कई मैचों के आख़िरी ही ओवर में, विपक्षी बल्लेबाज़ों को इससे भी कम रन बनाने नहीं दिए। उनके सामने चेन्नई के रवीन्द्र जाडेजा और शिवम दुबे। फाइनल मैच का दबाव। जीत-हार की स्थिति में हजारों दर्शकों की निग़ाह में नायक या खलनायक बन जाने जैसी नाज़ुक स्थिति। इस सब के बावजूद दोनों धैर्य नहीं खोते। जैसा कि शिवम दुबे ने ही मैच के बाद बताया, “हम दोनों की अपनी योजना थी। वह ये कि छह में से बस दो कमज़ोर गेंदों का इंतिज़ार करना है। हम जानते थे कि वह (मोहित शर्मा) ज़्यादातर यॉर्कर गेंदें ही डालने वाला है। अधिकांश गेंदबाज़ ऐसे मौक़ों पर यही करते हैं। क्योंकि इस गेंद पर लम्बे शॉट मारना बेहद मुश्क़िल होता है। लेकिन हमें पता था कि दबाव में वह भी है ही। कोई ग़लती ज़रूर करेगा और इस समय हम में जो भी उसके सामने होगा, पूरी ताक़त से गेंद मैदान के बाहर भेजेगा। हमने यही किया। ओवर की आख़िरी गेंदों में मोहित की लय टूटी और जाडेजा ने दोनों गेंदों को मैदान से बाहर कर दिया। इन दो गेंदों पर जीत के लिए ज़रूरी 10 रन आ गए और ख़िताबी जीत हमारी हुई।”
ग़ौर कीजिए कि ये धौनी जैसे कप्तान की टीम के खिलाड़ी हैं, जिन्हें उनकी योजना बनाने और उस पर अमल करने की पूरी छूट मिली। इतने अहम मौक़े पर भी उन्हें किसी ने रोका-टोका नहीं। जबकि इसके ठीक उलट गुजरात की टीम में आख़िरी ओवर की चार गेंदें अच्छी निकल जाने के बावजूद कप्तान हार्दिक पांड्या ने मोहित से लम्बी बात की। पीछे से गुजरात के गेंदबाज़ी कोच आशीष नेहरा ने भी किसी सन्देश के साथ एक खिलाड़ी को मैदान में भेजा। वह भी मोहित और हार्दिक के साथ चर्चा में शामिल रहा। लेकिन इस चर्चा का नतीज़ा? मोहित की लय टूट गई। जैसा कि मोहित ने ही मैच के बाद कहा, “मैंने छह की छह गेंदें यॉर्कर डालने का ही सोचा था। चार गेंदों तक सब ठीक चल रहा था। तीन ही रन बन सके थे। हम लगभग मैच जीतने की दहलीज़ पर थे। लेकिन आख़िरी दो गेंदों की दिशा भटक गई।… मैंने अपनी पूरी क़ोशिश की, फिर भी…।” टीम का नेतृत्त्व कर रहे, या करने की मंशा रखने वाले हर व्यक्ति को यह फ़र्क समझना ज़रूरी है।
और देखिए…, धौनी की टीम किन्हीं नामी सितारों से सजी नहीं हैं। उसमें मथीसा पथिराना हैं, जिन्हें श्रीलंका की किसी छोटे स्तर की टीम से ढूँढकर, पहचानकर धौनी अपने दल में लाए हैं। इसमें अंबाती रायडू हैं, जो कई बार अपनी तुनकमिज़ाज़ी के लिए सुर्ख़ियों में रह चुके हैं। अजिंक्य रहाणे हैं, जिन्हें दूसरी टीमों ने 20-20 ओवर के मैचों के अनुरूप नहीं पाया। इसकी वज़ह से उन्हें अपनी फीस घटाकर 50 लाख रुपए तक लानी पड़ी। रहाणे की तरह शिवम दुबे हैं। उन्हें भी दूसरी टीमों ने अपनी अपेक्षा के अनुरूप नहीं पाया। तुषार देशपांडे हैं। दीपक चाहर हैं। इस तरह के तमाम अनाम, कम-नाम खिलाड़ी धौनी का साथ पाकर इस बार सितारे की तरह चमके। और धौनी 10वीं बार (कुल 12 में से) अपनी टीम को आईपीएल के फाइनल तक ले गए। पाँचवाँ ख़िताब भी जीत लाए।
इतना ही नहीं, ख़िताब जीतने के बाद जब ट्रॉफी लेने की बारी आई तो उन्होंने आगे किया रायडू को, जो अब आईपीएल से भी संन्यास ले रहे हैं। रायडू के साथ मंच पर ट्रॉफी लेने आए रवीन्द्र जाडेजा, जिनके साथ मैदान पर धौनी की थोड़ी सी सख़्त-मिज़ाज़ी भी बड़ी सुर्खी बनी थी। बाद में फाइनल में जीत का चौका लगाने के बाद अपने पास दौड़े आए जाडेजा को जब धौनी ने गोद में उठाया तो वह और बड़ी सुर्ख़ी बनी। मंच पर इन दो खिलाड़ियों के साथ ही धौनी भी थे। लेकिन उन्होंने ट्रॉफी को कुछ सेकंड के लिए, संकोच से, सिर्फ़ हाथ लगाया और फिर टीम के दूसरे खिलाड़ियों की भीड़ के पीछे हो लिए।
ध्यान दीजिए। इस वक़्त पीछे हो जाने वाले यह वही धौनी हैं, जो 2011 में विश्व-कप के फाइनल मैच के दौरान टीम की जीत-हार के सबसे नाज़ुक मौक़े पर ज़िम्मेदारी लेने के लिए ख़ुद सबसे आगे आए थे। तब वह भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान थे। और एक कप्तान को कब-क्या करना चाहिए, उसकी दिलचस्प मिसाल पेश कर रहे थे। उस दौरान वह परिणाम के उत्तरदायित्त्व का जोख़िम (टीम हारती तो उन्हें खलनायक बता दिया जाता) भी ख़ुद उठा रहे थे। हालाँकि तब भी, ख़िताब जीतने के बाद जब ट्रॉफी उठाने की बारी आई तो उन्होंने अपने साथ लिया सचिन तेन्दुलकर को, जो संन्यास लेने वाले थे।
इसी तरह की बात आईपीएल के एक मैच में कमेन्ट्री के दौरान हरभजन सिंह ने कही, “धौनी अपनी ज़िम्मेदारी बख़ूबी समझते हैं। वे जानते हैं कि उन्हें कब, क्या और कैसे करना है। उनकी टीम के सदस्यों को सिर्फ़ उन पर ध्यान देना होता है। मैंने ख़ुद कई बार यही देखा और किया भी है। मैच से पहले कभी हमें कोई विशेष रणनीति नहीं समझाई जाती थी। हम मैदान पर पहुँचते और वहाँ धौनी जिस तरह फील्डिंग की जमावट करते, बस वही हमें समझना होता था। उसके मुताबिक गेंद डालनी होती थी। वह बीच-बीच में कई बार फील्डरों को दो-चार क़दम आगे-पीछे, इधर-उधर करते रहते हैं। और हमने अक्सर देखा है कि उन्होंने गेंदबाज़ द्वारा गेंद फेंकने से कुछ सेकंड पहले किसी फील्डर को इधर-उधर किया और अगला कैच उसी जगह उसके हाथों में पहुँचा। इस तरह टीम के सदस्यों को बस, उनके इशारे पढ़ने होते हैं और नतीज़ा अपने-आप आता है।”
ऐसी बहुत सी चीज़ें हैं, जो धौनी के नेतृत्त्व और व्यक्तित्त्व के बारे में अक्सर लिखी, पढ़ी और कही जाती हैं। जैसे- वह हर परिस्थिति में दिमाग़ शान्त रखते हैं। इसीलिए विरोधी टीम के खिलाड़ियों के दिमाग़ में घुसकर उनकी योजना को, अपने मंसूबे से ध्वस्त कर देते हैं। सार्वजनिक रूप से अपनी भावनाएँ व्यक्त करने में संयम बरतते हैं। वग़ैरा, वग़ैरा। हालाँकि, इस सब के बाद भी उनकी सहजता देखिए। इस आईपीएल फाइनल के बाद कमेन्टेटर हर्ष भोगले से उन्होंने बातचीत के दौरान इतना ही कहा, “मैं चीज़ों को सहज, साधारण रखता हूँ। ख़ुद भी वैसा रहना चाहता हूँ। रहता भी हूँ। ज़मीन से जुड़ा। शायद मुझे पसन्द करने वालों को मेरी यही बात सबसे अच्छी लगती है।”
शायद नहीं, निश्चित रूप से। एक सफल नेतृत्त्व और परिपक्व व्यक्तित्त्व इन्हीं विशिष्टताओं से लोगों को अपना क़द्रदान बनाता है। सरलता, सहजता से उन्हें बहुत कुछ सिखा देता है।
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