टीम डायरी
मध्य प्रदेश के इन्दौर शहर को इन दिनों भिखारीमुक्त करने के लिए अभियान चलाया जा रहा है। ऐसा अभियान कई शहरों में पहले भी चलाया जा चुका है। लेकिन नतीज़ा अक्सर शून्य ही रहता है। जिस शहर में अभियान चलता है, वहाँ कुछ दिनोंं तक भिखारी नहीं दिखते या कम दिखते हैं। लेकिन कालान्तर में फिर उनकी आमद बढ़ने लगती है। पहले जैसा ही हाल हो जाता है। कभी सोचा है, ऐसा क्यों होता है?
शायद ही किसी ने सोचा हो। लेकिन अगर यह प्रश्न दिमाग़ में आएगा तो उत्तर भी उसके पीछे-पीछे आता दिखाई देगा। और न भी दिखे तो एक हालिया उदाहरण के आइने में उसे देखने की क़ोशिश की जा सकती है। इन्दौर का ही मामला है। शहर को भिखारीमुक्त करने के अभियान के तहत जिम्मेदार अधिकारी/कर्मचारी शहर के विभिन्न स्थानों पर जाकर छापे मार रहे हैं। इसी दौरान उन्होंने बड़े गणेश मन्दिर के पास स्थित शनि मन्दिर के सामने से एक महिला को पकड़ा। उसकी तलाशी तो उसके पास से 75,000 रुपए बरामद हुए। पूछने पर पता चला कि यह उसकी एक सप्ताह की कमाई है। मतलब- महीने का हिसाब लगाएँ तो क़रीब 3 लाख रुपए!
इतना पैसा बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में काम करने वाले शीर्ष अधिकारी भी महीनेभर में नहीं कमा पाते। सो,अब सोचिए कि किसी को बैठे-बिठाए, दूसरों के हाथ-पैर जोड़कर, थोड़ी आरजू-मिन्नत करके इतनी मोटी कमाई हो रही है, तो वह भला ऐसा धन्धा क्यों छोड़ेगा? उन शहरों, क़स्बों, इलाक़ों से दूर क्यों ही जाएगा, जहाँ के लोग उसे इतनी मोटी कमाई करा रहे हों? ज़ाहिर है, वह बार-बार ऐसी कमाई वाली जगहों पर लौटकर आएगा। बल्कि उसे किसी को रिश्वत खिलाकर भी ऐसी जगहों पर अपने लिए जगह बनानी हो, तो वह बनाएगा ही।
इसके अलावा समझने की बात यह भी है कि भीख माँगना आजकल किसी-किसी की मज़बूरी हो सकती है, सबकी नहीं। अधिकांश लोगों के लिए यह मोटी कमाई का धन्धा है। इसके उदाहरण जब-तब सामने आते रहते हैं। मसलन- मुम्बई का एक भिखारी है भरत जैन। ख़बरों की मानें तो वह दुनिया का सबसे अमीर भिखारी है। भीख माँगने से ही होने वाली उसकी सालाना कमाई क़रीब 9-10 लाख रुपए से ज़्यादा है। मुम्बई, ठाणे, पुणे, आदि में उसके कई फ्लैट और दुकानें भी हैं। इससे भी उसे पर्याप्त से अधिक आमदनी होती है।
ऐसे और भी तमाम उदाहरण हैं, जो हमसे सीधे हमारे मुँह पर सवाल पूछते हैं कि इन भिखारियों को इतना धनी-मानी किसने बनाया? अपने शहर को इन भिखारियों से मुक्त करने का असरदार तरीक़ा क्या है? और इसका पहला ज़िम्मा किसका है? और इन सवालों का सीधा सा ज़वाब यही हैं कि इन्हें इतना धनी-मानी हमने बनाया है। इसलिए अपने शहर, अपने इलाक़े को इनसे मुक़्त करने की पहली ज़िम्मेदारी भी हमारी है। हम इन्हें पैसे देना बन्द कर देंगे तो ये अपने आप ग़ायब हो जाएँगे। यही इनसे मुक्ति सबसे प्रभावी तरीक़ा है।
सोचिएगा।
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