रैना द्विवेदी, भोपाल, मध्य प्रदेश से, 6/1/2021
निश्चित रूप से यह एक बड़ा सवाल है कि हमारा रसूख यानि ‘स्टेटस’ सही मायने में आखिर बड़ा कैसे होता है? हमारा दिल बड़ा होने से या दिमाग चढ़ा होने से?
हम में से ज्यादातर लोग इसका ज़वाब में शायद पहला विकल्प ही चुनेंगे पर आचरण और व्यवहार में अक्सर दूसरा विकल्प दिखता है। अगली पीढ़ी में भी ये संस्कार इसी तरह आगे बढ़ जाता है। कभी जानबूझकर, कभी अनजाने ही। और फिर जब हम अपनी उम्र के उत्तरायण में होते हैं। हमारी सोच परिपक्व होती है, तो हम अपने आस-पास अक्सर ही एक दम्भी युवा पीढ़ी को पाते हैं। ऐसी पीढ़ी, जो अपना रसूख दिखाने के लिए अनाप-शनाप खर्च करती है। ऐसी पीढी, जो बात-व्यवहार में अपने से बड़ी उम्र वालों का लिहाज़ नहीं करती। ऐसी पीढ़ी, जो अपना आर्थिक, सामाजिक, बौद्धिक रसूख प्रदर्शित करने के लिए किसी की भी अवमानना या अपमान करने से नहीं हिचकती। यह देखकर हम ग़िले-शिकवे करते हैं। उलाहने देते हैं। पर क्या कभी पीछ़े मुड़कर देखते हैं? शायद नहीं।
यह कहानी हमें पीछे मुड़कर देखने का मौका देती है। आगे बढ़ने का तरीका भी सिखाती है। ये बताती है कि दिल बड़ा होने से हमारा जो रसूख बढ़ता है, सही मायने में वही एक बेहतर परिवार और समाज का आधार होता है। और इस रसूख को बढ़ाने की दिशा में पहल हमें ही करनी है। तभी ये संस्कार हमारी सन्तति में पहुँचेगे। वह एक ज़िम्मेदार नागरिक बनेगी और बेहतर समाज का निर्माण करेगी।
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(रैना द्विवेदी, गृहिणी हैं। वे लगातार व्हाट्स ऐप सन्देश के माध्यम से ऑडियो या वीडियो स्वरूप में अपनी पढ़ी हुई कहानियाँ #अपनीडिजिटलडायरी को भेज रही हैं।)